• पंचायतों के चुनाव बेहद अहम्

    त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं के पहले चरण का मतदान 28 जनवरी को होने जा रहा है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की दृष्टि बेहद अहम पंचायत चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण रुप से कराना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण परिवेश में भी आज राजनैतिक दखल काफी बढ़ गया है। ...

    त्रिस्तरीय पंचायत राज संस्थाओं के पहले चरण का मतदान 28 जनवरी को होने जा रहा है। लोकतांत्रिक शासन प्रणाली की दृष्टि बेहद अहम पंचायत चुनाव स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण रुप से कराना प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती है। ग्रामीण परिवेश में भी आज राजनैतिक दखल काफी बढ़ गया है। वार्ड पंच तक के लिए बहुकोणीय मुकाबले हो रहे हैं। पहले चरण में राज्य के 54 विकास खंडों में जिला पंचायत सदस्य, जनपद सदस्य और पंचायतों में पंच-सरपंच चुनने के लिए वोट डाले जाएंगे। 55 लाख से अधिक मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। चुनाव आयोग ने पहले ही शांतिपूर्ण चुनावों के लिए तिथियों में संशोधन कर प्रशासनिक अधिकारियों को यह मौका दिया है कि वे सुरक्षा के माकूल इंतजाम कर सकें।  प्रथम चरण के मतदान की तिथि पहले 24 जनवरी तय की गई थी और जब चुनाव तैयारियों की समीक्षा के लिए कलेक्टरों की मीटिंग बुलाई गई तो यह बात सामने आई कि गणतंत्र दिवस के चलते चुनाव तैयारियोंं पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है और आयोग ने चुनाव तिथियां आगे बढ़ा दीं। आयोग ने अपनी ओर से स्वतंत्र, निष्पक्ष और शांतिपूर्ण मतदान के लिए पूरी सतर्कता का परिचय दिया है और उम्मीद की जा सकती है कि ये चुनाव भी पिछले चुनावों की तरह शांतिपूर्ण ढंग से संपन्न हो जाएंगे। इस बीच जहां-तहां से चुनाव को लेकर तनाव फैलने की आ रही खबरें चिंतित करने वाली हैं। ज्यादातर शिकायतें मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए प्रलोभन देने से जुड़ी हुई हैं। इसका विरोध करने पर बाहुबल के प्रयोग से गांवों का माहौल बिगड़ रहा है। ऐसे मामलों में पुलिस को किसी दबाव में आकर कार्रवाई करने के बजाए निष्पक्ष कार्रवाई करनी चाहिए ताकि लोगों में असंतोष न फैले। पंचायत चुनावों में मतदाताओं को प्रलोभन दिया जाता है, इसकी शिकायतें पहले भी रही हैं। अब इसका रुप थोड़ा बड़ा हो गया है, इसलिए लोगों की नजर में ज्यादा लग रहा है। पिछले माह ही हुए नगरीय निकाय चुनावों में सुना गया कि प्रत्याशियों ने वोट खरीदने की कोशिश की। एक वोट के लिए एक हजार रूपए, टीवी, फ्रिज तक देने के वादे किए गए। इस तरह की बुराइयां पंचायत चुनावों में भी सुनी जा रही हैं।  शराब से लेकर कपड़े तक बांटे जा रहे हैं। इसे रोकने का कोई प्रभावी तंत्र काम नहीं कर रहा है। प्रत्याशियों में इस बात का डर भी नहीं है कि पकड़ेे जाने उनके खिलाफ कार्रवाई हो सकती है। इन परिस्थितियों में धनबल व बाहुबल के प्रभाव से चुनाव जीतने की जुगत में लगे रहने वालों को सब कुछ अनुकूल दिख सकता है। यह स्थिति ठीक नहीं है। चुनाव आयोग की सख्ती पंचायत चुनावों में दिखाई देनी चाहिए। अगर आयोग सबसे नीचे के स्तर की लोकतांत्रिक संस्थाओं के चुनाव में लोगों को निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनावों का पाठ सिखा दे तो ऊपरी संस्थाओं के चुनावों में वैसे ही काफी कुछ ठीक हो जाएगा।

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