• आम आदमी का खास चितेरा

    आज की युवा पीढ़ी आम आदमी का जुमला सुनते ही उसे अरविंद केजरीवाल और उनकी बनाई आम आदमी पार्टी से जोड़ती है, लेकिन इसी हिन्दुस्तान में कुछ समय पहले तक एक और आम आदमी हुआ करता था, जो कहींकिसी चुनावी रैली में कोने में खड़ा रहकर नेताओं के वादों भरे भाषण सुनता, कहींसरकारी अधिकारियों के दौरों को तिरछी चितवनों से देखता, कहींसूखे या बाढ़ में बर्बाद लोगों की हताशा मेंंमौन शामिल होता, कहींझुग्गी-झोपड़ी या सड़क पर रहने वाले लोगों का दयनीय जीवन दूसरे किनारे पर खड़े होकर देखता, कहींराशन की कतार में प्रतीक्षारत लोगों के साथ खड़ा होता। ...

    आज की युवा पीढ़ी आम आदमी का जुमला सुनते ही उसे अरविंद केजरीवाल और उनकी बनाई आम आदमी पार्टी से जोड़ती है, लेकिन इसी हिन्दुस्तान में कुछ समय पहले तक एक और आम आदमी हुआ करता था, जो कहींकिसी चुनावी रैली में कोने में खड़ा रहकर नेताओं के वादों भरे भाषण सुनता, कहींसरकारी अधिकारियों के दौरों को तिरछी चितवनों से देखता, कहींसूखे या बाढ़ में बर्बाद लोगों की हताशा मेंंमौन शामिल होता, कहींझुग्गी-झोपड़ी या सड़क पर रहने वाले लोगों का दयनीय जीवन दूसरे किनारे पर खड़े होकर देखता, कहींराशन की कतार में प्रतीक्षारत लोगों के साथ खड़ा होता। चेक का थोड़ा ऊंचा, कालर वाला कुर्ता, धोती, गोल ऐनक और सिर पर आधे उड़े हुए बालों वाला एक प्रौढ़वय व्यक्ति यह आम आदमी था। इसे सुप्रसिद्ध कार्टूनिस्ट आर.के.लक्ष्मण ने बनाया था। उनका बनाया यह किरदार कामन मैन के नाम से इतना विख्यात हुआ कि मुंबई और पुणे में इसकी प्रतिमा बनी हुई है,। टाइम्स आफ इंडिया अखबार मेंंइसका 50 सालों तक एक कोने में नियमित प्रकाशन होता रहा और कहना न होगा कि एक कोना पूरे अखबार पर भारी पड़ता था। जब अखबार की 150वींवर्षगांठ मनाई गई तो डाक विभाग ने इस कामन मैन पर एक टिकट भी जारी किया। हिंदुस्तान में शायद कामन मैन यानी आम आदमी की मूर्ति लगने और टिकट जारी होने का यह पहला अवसर था। यह शायद इसलिए संभव हुआ कि आर.के.लक्ष्मण का यह कामन मैन कई मायनों में खास था। यह चुपचाप रहता था, कार्टून में यह सीधे कोई संवाद नहींकरता था, बल्कि जो वास्तविकता है, उसे देखता था, जनता को दिखाता था कि देखो राजनीति में, प्रशासन में, खेल में और समाज में कैसे-कैसे प्रपंच और तिकड़में रची जा रही हैं। एक कार्टून में पाइप के बीच में लेटा व्यक्ति गुस्साए हवलदार से कहता है कि वह यहां छिपा नहींहै, बल्कि इस पाइप में ही रहता है। एक अन्य में एक क्रिकेटर को देखकर बच्चा कहता है मैं इन अंकल को जानता हूं, ये सबसे अच्छा टूथपेस्ट, शीतलपेय, साबुन इस्तेमाल करते हैं। एक कार्टून में कुपोषित व्यक्ति नेताओं से कहता है कि वह भूख हड़ताल या अनशन पर नहींहै, बल्कि बेहद भूखा है। एक बेहद चुटीले कार्टून में गांधी फिल्म देखकर हाल से निकलते नेताजी को यह कहते दिखाया गया है कि बेहद प्रेरणास्पद, मैं समझता हूं यह असली कहानी होगी। एक कार्टून में भवन निर्माण और जमीन का लेखा-जोखा करते लोगों को देख एक व्यक्ति कहता है कि मैं सोच रहा था ये किसी गृह परियोजना के लिए आए होंगे, लेकिन वे तो मंदिर निर्माण के लिए ये सब कर रहे थे। ऐसे सैकड़ों कार्टून हैं, जो किसी न किसी तरह से समाज और राजनीति की सड़ी-गली व्यवस्था और परंपरा पर चोट करते हैं। इन तमाम कार्टूनों में कामन मैन किसी एक कोने में खड़ा देखता है और हमें सिखाता है कि अपने आसपास की घटनाओं को देखना सीखो। यह कामन मैन लोकतंत्र की नींव मजबूत करता है। हमें शिक्षित करता है कि हम आत्मकेन्द्रित न रहें, बल्कि जिस समाज, देश और दुनिया में रहते हैं, उसकी घटनाओं को देखें और उन पर विचार करें। हमारे सोचने से क्या होगा, ऐसी नकारात्मक सोच को हटाने का काम यह कामन मैन करता है। हर बात पर प्रतिक्रिया देना, बोलना या जवाब देना सक्रिय होने की निशानी है। लेकिन यह सक्रियता तब खतरनाक हो जाती है जब इसमें जल्दबाजी दिखाई जाती है, पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाया जाता है। सोशल मीडिया के जमाने में ऐसा बहुत हो रहा है। सूचनाएं तेजी से यहां से वहां पहुंच रही हैं और उतनी ही तेजी से प्रतिक्रियाएं दर्ज हो रही हैं। बिना यह विचारे कि व्यापक जनहित में यह है या नहीं। ऐसी बातों से कितना नुकसान है, कितना लाभ। धारणाएं बहुत जल्दी बनाई जा रही हैं, उतनी ही जल्दी ध्वस्त भी हो रही हैं। इंस्टेंट के इस युग में कामन मैन का यह किरदार नसीहत की तरह है कि बिना खास हैसियत और साजो सामान के बिना भी कोई व्यक्ति मात्र अपनी सक्रिय उपस्थिति से कितना खास हो सकता है। कामन मैन को गढऩे वाले आर.के.लक्ष्मण अब हमारे बीच नहींहैं, लेकिन कामन मैन हमेशा उन्हें याद करता रहेगा, सीखता रहेगा कि गलत और सही के बीच किस तरह तटस्थ, निडर होकर लक्ष्मण रेखा खींची जाती है।

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