पीओके पर दावे की रणनीति में उलझा विस्थापितों का दर्दमीरपुर के जे एंड के बैंक में जमा है पीडि़तों का पैसादस्तावेजी सबूतों के अभाव में पैसा नहीं दे रहा है बैंककैंपों में 12 लाख विस्थापितों की हालत बदतरजम्मू ! आजादी के साथ ही हुए विभाजन के बाद पाकिस्तानी कबीलों के बर्बर हमले, कत्लेआम और जुल्मो सितम से बचकर मुजफ्फराबाद, मीरपुर और पुंछ आदि से भागे अल्पसंख्यकों की तीसरी पीढी भी दरबदर ठोकर खा रही है क्योंकि पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) पर भारत का दावा कमजोर होने की आशंका से आज तक उनकी कोई मदद नहीं की गई। दरअसल पीओके पर भारत की राजनीतिक स्थिति के कारण वहां के बाशिंदे रहे इन अल्पसंख्यकों के दर्जा तय नहीं हो सका है। इन्हें शरणार्थी, विस्थापित, आंतरिक रूप से विस्थापित या पलायित में किस श्रेणी में रखा जाए, इसे लेकर 67 वर्षों बाद भी भ्रम बना हुआ है। पीओके पर तो यथास्थिति बनी हुई है लेकिन वहां से भागे करीब 12 लाख विस्थापितों की स्थिति बद से बदतर हो गई। जम्मू के विभिन्न हिस्सों में मूलभूत सुविधाओं से वंचित फटे चीथडे, बदबूदार शिविरों में रह रहे इन विस्थापितों की शिकायत है कि 27 अक्टूबर 1947 को जम्मू कश्मीर का भारत में विलय होने के बावजूद तत्कालीन सरकार आततायी कबीलों से उनकी रक्षा नहीं कर सकी। वहां मची मारकाट और खूनखराबे का आलम यह था कि अकेले मीरपुर जिले में एक दिन में 12 हजार से ज्यादा अल्पसंख्यक हलाक कर दिए गए। उन पर रोंगटें खड़े कर देने वाले जुल्म ढाए गए। भूखे-प्यासे, अधनंगे बचे खुचे लोग किसी तरह जान बचाकर भागे। कई ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया। विस्थापितों के संगठन एसओएस इंटरनेशनल ने प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्यमंत्री जितेंद्र सिंह को हाल में सौंपे ज्ञापन में उनकी समस्या के हल के लिए विकास बोर्ड गठित करने, कश्मीरी पंडितों की तर्ज पर उनके लिए उपनगर विकसित करने, संपत्ति का मुआवजा देने तथा बेरोजगार युवकों को विशेष पैकेज देने की मांग की। इनमें से अधिकांश की गाढी कमाई मीरपुर के जे एंड के बैंक में जमा है लेकिन दस्तावेजी प्रमाण के बिना बैंक उनका पैसा देने को तैयार नहीं हैं। पीडि़तों पर भारी पीओके की राजनीतिअपनी चल-अचल संपत्ति छोड़कर बदहवाशी में भागे इन लोगों ने सरकारी विभागों के दिलासे पर कई वर्षों इस उम्मीद में काट दिए कि जल्द ही पीओके पर भारत का कब्जा होगा और वे अपने घर जाएंगे। वर्षों के इंतजार के बाद जब उन्होंने अपनी संपत्ति का मुआवजा मांगना शुरू किया तो दलील दी गई कि ऐसा करने से पीओके को लेकर संयुक्त राष्ट्र में भारत का पक्ष कमजोर पड़ जाएगा।