देश के 66वें गणतंत्र दिवस पर अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा बतौर मुख्य अतिथि पधार रहे हैं। 65 बरसों से करोड़ों भारतीय अपने इस राष्ट्रीय पर्व को उत्साह से भर, पूरे जोश के साथ मनाते आए हैं। गणतंत्र दिवस के समारोह में सुरक्षा बलों की विभिन्न टुकडिय़ां कदम से कदम मिलाकर चलतीं, स्कूल-कालेज के विद्यार्थी सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत करते, विभिन्न प्रदेशों की, विभागों की सुंदर झांकियां निकलतीं, हेलीकाप्टर से पुष्पवर्षा होती, 21 तोपों की सलामी दी जाती, और लड़ाकू विमान कलाबाजियां दिखाते हुए उड़ते, देश की सामरिक ताकत का प्रदर्शन करते हुए अत्याधुनिक मिसाइलों, राकेटों, बख्तरबंद गाडिय़ों को जब साक्षात देखने मिलता तो जनसमुदाय के जोश, खुशी का ठिकाना न रहता। देश की राजधानी दिल्ली में गणतंत्र दिवस के समारोह को देखने दूर-दूर से लोग आते। परेड स्थल तक पहुंचने के लिए पुलिस द्वारा निर्देशित रास्तों पर कई-कई किलोमीटर पैदल चलते, कोई बच्चों की उंगली पकड़ उन्हें भीड़ से बचाता है, तो कोई बच्चे को कंधे पर उठाए चलता है। दिल्ली में ठंड का मौसम और सुबह का वक्त, फिर भी नागरिकों के हौसले कम नहींहोते। अपने गणतंत्र का उत्सव मनाने का सबसे पहला हक उनका ही है। देश के भावी नागरिकों को भी गणतंत्र की गरिमा का एहसास वे कराना चाहते हैं, उसका महत्व समझाना चाहते हैं, इसलिए सारी तकलीफेें उठाकर बच्चों को परेड दिखाने लाते हैं। देश के 66वें गणतंत्र दिवस पर भी समारोह उसी परंपरागत तरीके से मनाया जाएगा, पर इस बार गणतंत्र दिवस समारोह की तैयारियों से अधिक चर्चा बराक ओबामा की सुरक्षा की हो रही है। दिल्ली को अभेद्य किले की तरह बनाया जा रहा है और यह अंदेशा उपजना स्वाभाविक है कि परिंदा भी पर न मार सके, ऐसी कड़ी सुरक्षा व्यवस्था में क्या नागरिक अपने गणतंत्र को उसी उत्साह के साथ मना पाएंगे, जैसा विगत 65 सालों से मनाते आए हैं। गणतंत्र दिवस समारोह में किसी अन्य देश के राषट्राध्यक्ष को मुख्यअतिथि के रूप में आमंत्रित करने की परिपाटी चली आई है। वे हमारे समारोह के कई आकर्षणों में से एक होते। भारत को स्वतंत्र, संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य होने की घोषणा हम जिस संविधान के जरिए करते हैं, वे उसका सम्मान करते हुए हमारी खुशी में शरीक होते। उनकी मेहमाननवाजी और सुरक्षा व्यवस्था मेंंकोई कसर नहींछोड़ी जाती। अमरीकी राष्ट्रपति की सुरक्षा भी हमारे लिए महत्वपूर्ण है और उन्हें किसी बात की तकलीफ न हो, यह ध्यान रखना भी हमारा कर्तव्य है। लेकिन उनका आतिथ्य-सत्कार और सुरक्षा हम भारत के लोगों के गणतंत्र दिवस में सर्वोपरि हो जाए, यह ध्यान रखने की अपेक्षा अपने मेहमान से की ही जा सकती है। अमरीका की यात्रा पर गए किसी भारतीय प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति की सुरक्षा के लिए राजधानी वाशिंगटन डीसी भारतीय सुरक्षादस्तों के हवाले हो गई है, ऐसा नजारा हकीकत में तो दूर, किसी फिल्म का दृश्य भी नहींहो सकता। अगर ऐसी कोई फिल्म बने तो कौन जानता है अमरीकियों की भवें टेढ़ी हो जाएं। अमरीका यात्रा करने वाले नामी-गिरामी लोगों को किस तरह सुरक्षाजांच के नाम पर अप्रिय स्थितियों का सामना करना पड़ा, ऐसे कई प्रसंग अतीत में घट चुके हैं और राष्ट्रवाद, उग्रराष्ट्रवाद की लीक पर चलने वाले इस पर आपत्ति भी जतला चुके हैं। लेकिन अभी अमरीकी सुरक्षाबलों के डर से राष्ट्रवाद, उग्रराष्ट्रवाद भी किसी कोने में जा दुबके हैं। गणतंत्र दिवस के दो-तीन पहले से नई दिल्ली की कई सरकारी इमारतें, सड़केें, प्रमुख भवन अमरीकी सुरक्षाबलों के हवाले हो जाएंगे। सात स्तरों की सुरक्षा अमरीकी राष्ट्रपति को दी जा रही है। पूरी दिल्ली में 15 हजार सीसीटीवी कैमरे दिल्ली की सड़कों पर लगाए गए हैं। काश महिलाओं के लिए असुरक्षित होती दिल्ली में पहले से ऐसी व्यवस्था हो गई होती, तो निर्भया कांड शायद रोका जा सकता था। लगभग 50 हजार सुरक्षा जवान 26 जनवरी को तैनात रहेंगे। अमरीकी सुरक्षा एजेंसियों के लोग हर प्रमुख जगह पर यहां तक कि भारतीय सुरक्षा बलों के कंट्रोल रूम में भी उपस्थित होंगे। हमारी सुरक्षा व्यवस्था की गोपनीयता, अमरीकियों के समक्ष पूरी तरह उजागर होगी। क्या अमरीका कभी भारतीयों को इतनी छूट लेने देता? शांति के लिए नोबेल पुरस्कार जीत चुके बराक ओबामा विगत दिनों पेरिस में शार्ली एब्दो पर हुए हमले के बाद निकाले गए जुलूस में शामिल नहींहुए, जबकि कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष अपनी संवेदनाएं और आतंक का विरोध जतलाने के लिए वहां उपस्थित थे। ओबामा की गैरमौजूदगी का कारण सुरक्षा का पर्याप्त इंतजाम न होना बताया गया था। विश्व के सबसे ताकतवर देश के राष्ट्रपति अगर अपनी सुरक्षा की चिंता दरकिनार कर चरमपंथ के खिलाफ रैली में शामिल होते तो उसका सकारात्मक संदेश जा सकता था। फ्रांस के बाद भारत में भी अमरीकी राष्ट्रपति ऐसा संदेश देने मेंंविफल रहेंगे। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ, बराक ओबामा भी भारतीयों के साथ मन की बात में मुखातिब होंगे। मोदीजी और उनके मन की तो देश-दुनिया ने बहुत सुनी, गणतंत्र दिवस पर तो गण के मन की ही सुनना चाहिए।