हर दिन मौत से जूझते हैं जवान व नागरिक जम्मू फ्रंटियर ! यहां जिन्दगी और मौत के बीच कोई अंतर नहीं है। अगर मौत पाक गोलीबारी देती है तो पलायन भी जिन्दगी नहीं देता। बस मौत का साम्राज्य है। ऐसा साम्राज्य जिसके प्रति अब यह कहा जाए कि वह अमर और अजय है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इस साम्राज्य पर शासन करने वाले हैं तोप के गोले और उनकी रानियां हैं बंदूकों की नलियों से निकलने वाली गोलियां। कोई फासला भी नहीं है यहां जिन्दगी और मौत के बीच। अभी आप खड़े हैं और अभी आप कटे हुए वृक्ष की तरह ढह भी सकते हैं। आपको ढहाने के लिए सीमा के उस पार से मौत बरसाई जाती है। खेतों में जाना या फिर नित्यकर्म के लिए खेतों का इस्तेमाल तो भूल ही जाइए। घरों के भीतर भी बाथरूम का इस्तेमाल डर के कारण लोग नहीं करते। ऐसा इसलिए कि कहीं गोली दीवार को चीर कर आपके शरीर में घुस गई तो आपकी क्या स्थिति होगी। यह सच है प्रतिदिन लोग मौत का सामना कर रहे हैं। रात को जमीन पर सोने के बजाय खड्डे में सोने पर मजबूर हैं सीमावासी। हालांकि अब वहां भी खतरा बढ़ा है। मोर्टार के इस्तेमाल के उपरांत खड्डे में ही कहीं दफन न हो जाएं इसी डर से रात कहीं तथा दिन कहीं ओर काटने का प्रयास कर रहे हैं उन गांवों के लोग यहां पाक गोलाबारी ने जिन्दगी और मौत के बीच के फासले को कम कर दिया है। एलओसी पर तो 1947 के पाकिस्तानी हमले के उपरांत ही जिन्दगी और मौत के बीच फासला कम होने लगा था और आज 68 सालों के उपरांत वहां के निवासी आदी हो गए हैं। लेकिन जम्मू फ्रंटियर की जनता के लिए भी यह नया नई है। वे भी अब इसके अभ्यस्त होने लगे हैं। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि अंतरराष्ट्रीय सीमा होने के कारण वे अभी भी इसी धोखे में हैं कि पाकिस्तान यह सब करना छोड़ देगा। परंतु सैनिकों को विश्वास नहीं है। पाकिस्तान इसे वर्किंग बाउंडरी कहने लगा है 1995 के बादए से तो वह कैसे ऐसा करेगा, अब्दुल्लियां सीमा चौकी पर हथियारों की सफाई में जुटे सूबेदार ने कहा था। उसकी पलाटून को सीमा सुरक्षा बल के जवानों की सहायता के लिए तैनात किया गया था। वैसे एक अन्य अधिकारी के शब्दों मेंरूष्अब तो एलओसी और आईबी में कोई खास अंतर नहीं रह गया है सिवाय नाम के। गोली वहां भी चलती है यहां भी। मोर्टार यहां भी चल रहे हैं वहां भी।