• जापान यात्रा के दौरान बेहद सधे होंगे मोदी के कदम

    मॉस्को ! भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान-यात्रा न केवल उनकी अपनी छवि को सुधारने में सहायक होगी, बल्कि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होगी, जिन्होंने चीन और दक्षिणी कोरिया के साथ अपने रिश्ते तनावपूर्ण बना लिए हैं लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि तोक्यो में होने वाली बातचीत चीन-समर्थक बातचीत ही होगी, किसी भी हालत में वह स्पष्ट रूप से चीन-विरोधी वार्ता नहीं होगी। ...

    अनिल जन विजयजापान-चीन के खराब रिश्तों की छाया से बचेगा भारतमॉस्को !   भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जापान-यात्रा न केवल उनकी अपनी छवि को सुधारने में सहायक होगी, बल्कि जापान के प्रधानमंत्री शिंजो एबे के लिए भी काफी महत्वपूर्ण होगी, जिन्होंने चीन और दक्षिणी कोरिया के साथ अपने रिश्ते तनावपूर्ण बना लिए हैं लेकिन ऐसा माना जा रहा है कि तोक्यो में होने वाली बातचीत चीन-समर्थक बातचीत ही होगी, किसी भी हालत में वह स्पष्ट रूप से चीन-विरोधी वार्ता नहीं होगी। भारतीय मीडिया का भी यह मानना है कि तोक्यो में होने वाली बातचीत में ज्यादातर विषय चीन से ही संबंध रखते हैं। एक अखबार का कहना है कि तोक्यो के अलावा एक और जापानी नगर की भी यात्रा करने का नरेंद्र मोदी ने जो फैसला किया है, वह चीन को एक साहसिक संकेत है। एक अन्य लेख में कहा गया है नरेंद्र मोदी की यह यात्रा इस सिलसिले में विशेष महत्व रखती है कि चीन ने दक्षिणी चीन सागर को अपनी झील बनाने का निर्णय ले लिया है (यह बात हाल ही में जापान के प्रधानमंत्री ने कही थी) पर मेरा मानना है कि सारे इलाके पर अपना नियंत्रण स्थापित करने की दिशा में चीन ने अभी पहला ही कदम उठाया है। नरेंद्र मोदी की इस जापान-यात्रा के दौरान भारत-जापान संबंधों में भी चीन की भूमिका ही प्रमुख रहेगी। भारत के साथ सक्रिय राजनीतिक रिश्ते बनाकर शिंजो एबे पेइचिंग के सामने  जापान के इस उद्देश्य को प्रदर्शित कर रहे हैं कि जापान सिर्फ  पूर्वी चीन सागर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि उसके रणनीतिक हित हिन्द महासागर तक भी फैले हुए हैं। जापान का उद्देश्य है कि चीन के साथ तेजी से बिगड़ रहे संबंधों की पृष्ठभूमि में भारत को अपना विश्वसनीय सहयोगी बनाना। इस तरह यह यात्रा चीन विरोधी न भी हो, लेकिन चीन से संबंधित तो होगी ही। भारत-जापान और चीन के त्रिकोण में बहुत से विवादास्पद मुद्दे और तीखे विषय भी हैं। इस वजह से इस यात्रा की ओर बहुत ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है और इस यात्रा के परिणामों और उद्देश्यों का गहरा विश्लेषण करने की भी जरूरत पड़ेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़े दूरदर्शी और व्यावहारिक व्यक्ति हैं। तभी तो जापान उनकी नीतियों में एक प्रमुख और प्राथमिक स्थान रखता है। मोदी ने कहा भी है, 'मैं इस यात्रा को जापान के साथ हमारे संबंधों को नए स्तर पर ले जाने और विभिन्न क्षेत्रों में सहयोग के एक मौके के तौर पर देखता हूं।Ó हालांकि इन रिश्तों के बीच चीन को लाना नामुमकिन हो, ऐसा भी नहीं हो सकता है, खासकर जब चीन और जापान के बीच कुछ द्वीपों को लेकर सीमा-विवाद चल रहा हो। यह मानना कि इस स्थिति में नरेंद्र मोदी जापान का पक्ष लेंगे, एक बचकाना बात होगी। नरेंद्र मोदी जापान और चीन के बीच एक निश्चत सन्तुलन बनाने की कोशिश करेंगे और यह दिखाएंगे कि भारत की अपनी स्वतंत्र विदेश-नीति है, जो न तो चीन और न ही जापान के नजरियों से प्रभावित होती है। शिंजो एबे भारत-जापान रिश्ते को मजबूत बनाने की पूरी-पूरी कोशिश करेंगे, लेकिन यह कहना भोलापन होगा कि तोक्यो नई दिल्ली को अपने चीन-विरोधी खेल में जापान के पक्ष में झुका लेगा।

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