• ..जब क्रिकेट प्रतियोगिता पर पड़ा बंटवारे का साया

    मुंबई ! देश के प्रख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने देश के खेल इतिहास को भी उसके सभी पहलुओं के साथ अपनी नई आई पुस्तक में पेश किया है। गुहा ने अपनी पुस्तक में देश की राजनीति में चल रहे उथल-पुथल और खेलों पर पड़ने वाले उसके प्रभाव और खेलों की राजनीति की गहरी पड़ताल पेश की है। सांप्रदायिकता जैसे गंभीर मुद्दे पर गुहा बड़ी बारीकी से खेल को जोड़ते हैं।...

    मुंबई !  देश के प्रख्यात इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने देश के खेल इतिहास को भी उसके सभी पहलुओं के साथ अपनी नई आई पुस्तक में पेश किया है। गुहा ने अपनी पुस्तक में देश की राजनीति में चल रहे उथल-पुथल और खेलों पर पड़ने वाले उसके प्रभाव और खेलों की राजनीति की गहरी पड़ताल पेश की है। सांप्रदायिकता जैसे गंभीर मुद्दे पर गुहा बड़ी बारीकी से खेल को जोड़ते हैं।गुहा ने अपनी पुस्तक 'विदेशी खेल अपने मैदान पर' में लिखा है, "1946 की गर्मियों में जबकि देश में सांप्रदायिक माहौल गरमाया हुआ था, तब एक भारतीय क्रिकेट टीम इंग्लैंड का दौरा कर रही थी। इसके कप्तान नवाब पटौदी थे और शेष सदस्यों मे हिंदू, मुस्लिम और ईसाई शामिल थे।"पुस्तक में लिखा है, "यह टीम टेस्ट मैचों में हरा दी गई, परंतु इसने कांउटियांे के खिलाफ खुद को बड़े प्रशंसनीय रूप से साबित किया। इसके कुछ क्रिकेटरों ने खुद को विश्व स्तर का साबित किया। विजय मर्चेट ने सुंदर ढंग से बल्लेबाजी करते हुए दौरे पर 2000 से अधिक रन बनाए और वीनू मांकड़ ने 1000 रनों और 100 विकेटों के साथ ऑल राउंडर की दोहरी भूमिका अदा की। उनके भारत के लिए विदाई की संध्या को विदाई के दो संदेश प्राप्त हुए।"पुस्तक में आगे लिखा है, "श्रीमान स्टेफोर्ड क्रिप्स एक समाजवादी और व्यापार के बोर्ड के प्रधान थे। स्टेफोर्ड क्रिप्स स्वतंत्र भारत के प्रति आशावान थे। उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि दौरे पर बनाई गई दोस्ती उन दो देशों के बीच अच्छे संबंध बनाएगी जिसकी हम उम्मीद करते हैं और जिसके लिए हम आगे की सोच रखते हैं।"पुस्तक के अनुसार, "एमसीसी के पूर्व अध्यक्ष श्रीमान पहलाम वार्नर ने अपने संदेश में उन पिछली गांठांे का ध्यान दिलाया जो भारत को साम्राज्य से बांधती थीं। उन्होंने खिलाड़ियों की उनके मोहक बर्ताव के लिए प्रशंसा की और फिर कहा कि अभी हुए युद्ध के दौरान आपके सैनिकों की शानदार बहादुरी को इंग्लैंड नहीं भूला है और संभवत: वह भूल भी नहीं पाए।"पुस्तक के अनुसार, "चुनावी सफलता ने जिन्ना को आवाज उठाने का साहस दिया। अपनी पूरी जिंदगी वह एक संविधानविद रहे थे जो कि अपने मुद्दे पर विधानसभा, कचहरी और प्रेस में बहस करने को तैयार थे। अब उन्होंने डायरेक्ट एक्शन डे की अपील की। उन्होंने अपने अनुयायियों से सार्वजनिक सभाएं, मार्च और हड़तालें करने को कहा। यह हिंसा के लिए एक खुला निमंत्रण था। जिन्ना के तयशुदा दिन यानी 16 अगस्त को पूरे भारत में दंगे भड़क गए। सबसे बुरी तरह से प्रभावित शहर कलकत्ता था जिसमें दंगों में 4000 लोग मारे गए।"पुस्तक में आगे लिखा है, "जे.सी. मैत्र ने बीसीसीआई अध्यक्ष को फटकारा कि देश में बढ़ रहे सांप्रदायिक तनाव से उन्हें कोई मतलब नहीं है। वह सहज ढंग से सुझाव देता है कि खेल के मैदान पर सांप्रदायिक प्रतिद्वंद्विता सांप्रदायिक सौहार्द के प्रोत्साहन का श्रेष्ठ तरीका है।"गुहा ने लिखा है, "दो महीने बाद इसकी अगली मीटिंग में बोर्ड ने एक प्रस्ताव पास किया जिसके तहत 'यह सांप्रदायिक क्रिकेट को मान्यता नहीं देता' और यदि बीसीसीआई इस बात पर राजी होता है कि वह किसी भी सांप्रदायिक प्रतियोगिता को नहीं करवाता है तो बोर्ड बीसीसीआई को जोनल प्रतियोगिता का संचालन करने का अधिकार अध्यक्ष और सीसीआई के बीच शर्तो और नियमों पर परस्पर सहमति के आधार पर सौंप कर प्रसन्न होगा।"(पेंगुइन बुक्स इंडिया द्वारा प्रकाशित रामचंद्र गुहा की किताब विदेशी खेल अपने मैदान पर का एक संपादित अंश। प्रकाशक की अनुमति से प्रकाशित।)

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