• बचपन में बिछड़ी गुडिय़ा 17 साल बाद मिली

    पटना ! तेईस साल की गुडिय़ा की जि़ंदगी में जो कुछ घटा है वो किसी फिल्मी कहानी सा लगता है. 1996 में छह साल की उम्र में एक ट्रेन सफर के दौरान वह घर-वालों से बिछड़ गई. करीब 17 साल बाद 15 अगस्त को वह वापस अपने माता-मिता के घर वापस पहुंचा दी गई. 15 अगस्त की सुबह से छोटे लाल यादव के यहां जश्न का माहौल था. वह क्लिक करें पटना के फुलवारीशरीफ इलाके के सबजपुरा मोहल्ले में रहते हैं. छोटेलाल यादव की इकलौती बेटी गुडिय़ा के सत्रह साल बाद घर वापसी से घर पर यह ख़ुशी का माहौल था। गुडिय़ा असम के गुवाहाटी में रहने वाले दंपति नीलाक्षी शर्मा और राजू सिंह की कोशिशों से अपने घर वापस पहुंच पाई है....

    पटनातेईस साल की गुडिय़ा की जि़ंदगी में जो कुछ घटा है वो किसी फिल्मी कहानी सा लगता है. 1996 में छह साल की उम्र में एक ट्रेन सफर के दौरान वह घर-वालों से बिछड़ गई. करीब 17 साल बाद 15 अगस्त को वह वापस अपने माता-मिता के घर वापस पहुंचा दी गई. 15 अगस्त की सुबह से छोटे लाल यादव के यहां जश्न का माहौल था. वह क्लिक करें पटना के फुलवारीशरीफ इलाके के सबजपुरा मोहल्ले में रहते हैं. छोटेलाल यादव की इकलौती बेटी गुडिय़ा के सत्रह साल बाद घर वापसी से घर पर यह ख़ुशी का माहौल था।गुडिय़ा असम के गुवाहाटी में रहने वाले दंपति नीलाक्षी शर्मा और राजू सिंह की कोशिशों से अपने घर वापस पहुंच पाई है. नीलाक्षी असम राज्य बाल संरक्षण समिति के लिए काम करती हैं और उनके पति राजू व्यवसायी हैं. गुडिय़ा के बिछडऩे के बारे में छोटे लाल यादव बताते हैं, वह अपने मामा अजित के साथ ट्रेन से गुवाहाटी जा रही थी. अजित बरौनी स्टेशन पर उतरे तो उन्हें प्लेटफॉर्म पर ही नींद आ गई और गुडिय़ा ट्रेन के साथ गुवाहाटी पहुंच गई. इसके बाद लगभग 15 साल का लंबा समय गुडिय़ा ने गुवाहाटी और नवगांव के सरकारी शिशु गृहों में बिताया. फिर वह 2012 में नीलाक्षी और राजू के परिवार का हिस्सा बनी.गुडिय़ा नीलाक्षी के घर तो आ गई लेकिन वह गुमसुम, उदास रहती थी. ऐसे में नीलाक्षी और राजू ने गुडिय़ा के परिवार को ढूंढऩे का फैसला किया. गुडिय़ा को अपने अतीत के बारे में कुछ ही बातें याद थीं. गुडिय़ा बताती थी कि उनके पिता का नाम सतन राय है, जो एक बिस्कुट फैक्टरी में काम करते है. उसके घर के पास से रेल गुजरती है और घर के सामने एक कुम्हार का घर है. इतनी सी जानकारी के सहारे ही दंपति ने गुडिय़ा का परिवार ढूंढना शुरू किया. उन्होंने पहले गूगल सर्च के सहारे बिहार की बिस्कुट फैक्टरियों की सूची निकाली और उसके साथ पिछले महीने के अंतिम सप्ताह में पटना आ गए. पटना में उन्होंने राज्य चुनाव आयोग कार्यालय जाकर सतन राय नाम के ऐसे लोगों का ढूंढना शुरू किया जो इन बिस्कुट फ़ैक्टरियों के पास रहते थे. फिर नाम और पतों के साथ उन्होंने मोकामा और हाजीपुर जाकर नए-पुराने बिस्कुट फैक्टरियों वाले इलाके में जाकर गुडिय़ा के परिवार को ढूंढने की कोशिश की. लेकिन उन्हें वहां निराशा हाथ लगी. लेकिन दंपति ने हिम्मत नहीं हारी. वापस गुवाहाटी पहुंचकर दंपति ने गूगल के सहारे नालंदा बिस्कुट फैक्टरी के निदेशक सुनील अग्रवाल का नंबर खोजा और उन्हें फोन किया. संजय ने पूरी बात धैर्य से सुनी और दस ही मिनट बाद उन्होंने वापस फोन कर बताया कि सतन राय नहीं लेकिन सत्येंद्र राय नाम का उनका एक कर्मचारी है. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि सत्येंद्र का मकान मालिक छोटेलाल यादव भी उनकी ही फैक्टरी में काम करता है और छोटेलाल यादव की बेटी भी 1996 में गुम हो गई थी. इसके बाद दंपति ने ई-मेल के जरिए छोटेलाल और उनकी पत्नी पंजीरिया देवी की तस्वीर मंगाई. और फिर चेहरा, घटना क्रम और छोटेलाल यादव के घर के आस-पड़ोस की तस्दीक करने के बाद उन्हें यह यकीन हो गया कि गुडिय़ा छोटेलाल की ही गुम हुई बेटी है. गुडिय़ा इस तस्वीर में असम बाल संरक्षण समिति में काम करने वाली नीलाक्षी शर्मा के साथ दिख रही है.इस सबके बाद अगस्त के शुरुआत में छोटे लाल अपनी पत्नी और बेटे के साथ गुवाहाटी जाकर गुडिय़ा से मिल भी आए. गुडिय़ा की मां पंजीरिया देवी की आंखें 17 साल पहले के दर्दनाक वाकये को याद कर आज भी भर आती हैं. वह बताती हैं कि इस हादसे के बाद उनके छोटे भाई अजित ने उनके पैरों पर गिरते हुए कहा था कि उनसे बहुत बड़ी ग़लती हो गई है और हर सज़ा उन्हें कबूल है गुडिय़ा के  ठ्ठशेष पृष्ठ 8 पर

अपनी राय दें