• एक भू-भाग पर अधिकार चाहते हैं कश्मीरी पंडित

    कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन छेडऩे वाले कश्मीर की आजादी का सपना देख रहे हैं तो जम्मू और लद्दाख की जनता चाहती है ...

    कश्मीर में सबके हैं अपने अलग-अलग  सपने श्रीनगर !   कश्मीर में अलगाववादी आंदोलन छेडऩे वाले कश्मीर की आजादी का सपना देख रहे हैं तो जम्मू और लद्दाख की जनता चाहती है कि दोनों संभागों को कश्मीर से अलग कर दिया जाए। ऐसे में आतंकवाद का शिकार होने वाला कश्मीरी पंडि़त समुदाय अपने विकल्प के तहत कश्मीर के एक भूभाग पर अधिकार चाहता है। यही अधिकार उनकी नजर में कश्मीर समस्या का हल है।अपने विकल्प के बतौर कश्मीरी समुदाय चाहता है कि जम्मू कश्मीर की उलझन को सुलझाने की खातिर उसके चार हिस्से किए जाएं। हालांकि अन्य ताकतें इसके तीन हिस्से करने की मांग कर रही हैं। चौथा हिस्सा वह राज्य का नहीं चाहता बल्कि कश्मीर घाटी का चाहता है जिसे वे होमलैंड आदि का नाम देते हैं। ऐसा सुझाव देने वाले कश्मीरी पंडि़त समुदाय के संगठनों में सबसे आगे हमारा कश्मीर नामक गुट है। उसके सुझाव के अनुसारए इसे केंद्र शासित प्रदेश के रूप में तैयार किया जा सकता है जहां वह कश्मीरी समुदाय सुख-चैन तथा अलगाववादी आतंकवादी संगठनों की पहुंच से दूर होकर रह सकेगा जहां मानवाधिकारों के उल्लंघन की कोई बात ही नहीं होगी और अल्पसंख्यक समुदाय आजादी महसूस करेगा। इस संगठन का कहना है कि हालांकि भारत सरकार के लिए यह कदम बहुत ही कठिनाईयों से भरा होगा परंतु एक कौम को बचाने की खातिर तथा जम्मू कश्मीर की समस्या को सुलझाने के लिए राज्य को चार हिस्सों में बांटना आज के परिप्रेक्ष्य में जरूरी है। इसके लिए पनुन कश्मीर क्रोएशिया में रहने वाले सर्ब लोगों का उदाहरण भी देता है जिन्होंने करजीना क्षेत्र को इसी की खातिर छोड़ दिया था और अब पनुन कश्मीर की नजर में ऐसा होने पर ही भारतीय उपमहाद्वीप में शांति का आगमन होगा। कश्मीरी पंडि़त समुदाय की नजर में यह केंद्र शासित क्षेत्र ए जो होगा कश्मीर घाटी का ही एक हिस्सा लेकिन उसमें सिर्फ और सिर्फ हिंदू अल्पसंख्यक समुदाय के लोग ही रहेंगे इनको जेहलम दरिया के किनारे के क्षेत्रों में बसाना होगा। अर्थात कश्मीर के सबसे उपजाऊ क्षेत्र में जहां खेती और व्यापार तेजी से उपज रहा है।वैसे पिछले कुछ अरसे से पनुन कश्मीर सहित अन्य होमलैंड समर्थक संगठन खामोश बैठे हुए थे। उन्होंने इसे पुन: उसी समय उठाना आरंभ किया जब सरकार ने कश्मीर में संघर्ष विराम की घोषणा करते हुए अलगाववादी तथा आतंकवादी ताकतों के साथ बिना शर्त बातचीत करने की इच्छा जाहिर की थी। इसके उपरांत तो जैसे कश्मीरी पंडि़त संगठनों में फुर्ती आ गई। उन्होंने इस मांग को फिर से दोहराते हुए इसको लेकर आंदोलन की तैयार भी कर ली है।हालांकि राज्य सरकार ने कश्मीरी विस्थापितों की घर वापसी के लिए जो योजनाएं बनाई हैं वे भी होमलैंड की तर्ज पर ही हैं जिन्हें सुरक्षित जोनों के रूप में जाना जा रहा है। सनद रहे कि राज्य सरकार चाहती है कि प्रत्येक जिले में कुछ सुरक्षित जोनों का निर्माण कर वहां कश्मीरी पंडि़तों के विस्थापित परिवारों को वापस लाकर बसाया जाए। कश्मीरी पंडित संगठनों द्वारा मांगे जा रहे होमलैंड तथा इन सुरक्षित जोनों में अंतर सिर्फ इतना है कि ये शायद ही जेहलम दरिया के किनारे नहीं होंगें।

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