• महज सांसदों से जुडें मामलों की सुनवाई से न्याय प्रक्रिया नही सुधरेगी

    उच्चतम न्यायालय ने आपराधिक न्याय प्रक्रिया को दुरुस्त करने की केंद्र सरकार को सलाह देते हुए आज कहा कि केवल सांसदों के खिलापं चल रहे कुछ आपराधिक मामले जल्द निपटा देने से ही न्याय प्रक्रिया में तेजी नहीं लायी जा सकती। ...

    नयी दिल्ली  !   उच्चतम न्यायालय ने आपराधिक न्याय प्रक्रिया को दुरुस्त करने की केंद्र सरकार को सलाह देते हुए आज कहा कि केवल सांसदों के खिलापं चल रहे कुछ आपराधिक मामले जल्द निपटा देने से ही न्याय प्रक्रिया में तेजी नहीं लायी जा सकती।     मुख्य न्यायाधीश आर एम लोढा की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि केवल सांसदों के विरुद्ध लंबित कुछ मामले निपटा देने से आपराधिक न्यायिक व्यवस्था में तेजी नहीं लायी जा सकती। यह तभी संभव होगा जब अतिरिक्त अदालतें शुरू की जाएं और सभी अदालतों में जरूरी बुनियादी ढांचे को व्यापक और मजबूत बनाया जाये।       शीर्ष अदालत की इस टिप्पणी को प्रधानमंत्री नरेंन्द्र मोदी के उस बयान से जोड़कर देखा जा रहा है जिसमें उन्होंने पद संभालने के बाद राज्यसभा में अपने पहले संबोधन में कहा था कि संसद में दागी सदस्यों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिये। इसके लिए उन्होनें सांसदों के खिलाफ लंबित मामलों को एक साल के अंदर निपटाने का सुझाव दिया था।     न्यायमूर्ति लोढा ने जम्मू कश्मीर पैंथर्स पार्टी के प्रमुख भीम सिंह की एक जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान देश की आपराधिक न्याय व्यवस्था की कच्छप गति पर चिंता जताते हुए कहा ..हमें देश की आपराधिक न्यायिक प्रक्रिया की गति पर बहुत दुख होता है। मैं इससे बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हूं। इस प्रक्रिया में सुधार की तत्काल आवश्यकता है।..न्यायालय ने कहा कि वह विशेष रूप से सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामलों पर सुनवाई जल्द पूरी नहीं कर सकता है। उसका कहना था कि महिला तथा वरिष्ठ नागरिकों जैसी कयी श्रेणियां हैं जहां आपराधिक मामलेां पर जल्द सुनवाई पूरी होनी ही चाहिये। न्यायमूर्ति लोढा ने सभी राज्यों के विधि सचिवों और मुख्य सचिवों की बैठक बुलाने की भी सरकार को सलाह दी। उच्चतम न्यायालय ने मोदी सरकार से कुछ संवेदनशील मामलों में विशेष अदालतें गठित करने की जगह आपराधिक न्यायिक व्यवस्था को प्रभावी और तेज बनाने के लिए चार सप्ताह में ठोस प्रस्ताव लाने को कहा। अदालत ने कहा कि सुशासन का मतलब है लोगों को जल्द न्याय मिले। दस..दस साल तक मामलों का लंबित रहना लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है।     इससे पहले याचिकार्कता ने दलील दी कि भारत की विभिन्न जेलों में बंद पाकिस्तानी नागरिक अपनी सजा काट चुके हैं. लेकिन उन्हें अब तक रिहा नहीं किया जा सका है। याचिकार्कता ने ऐसे पाकिस्तानी नागरिकों को जल्द से जल्द रिहा करने की मांग की है।

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