• इराक से लौटी नर्सें खाड़ी देशों में तलाश रहीं नौकरी

    इराक में सुन्नी आतंकवादियों के चंगुल से आजाद होकर स्वदेश लौटीं नर्से अब मध्य पूर्व के दूसरे मुल्कों में अपने लिए नौकरी की तलाश में जुट गई हैं। इन नर्सों को लौटे चार सप्ताह भी पूरे नहीं हो पाए हैं।...

    वापस इराक नहीं लौटना चाहती नर्सेंतिरुवनंतपुरम !  इराक में सुन्नी आतंकवादियों के चंगुल से आजाद होकर स्वदेश लौटीं नर्से अब मध्य पूर्व के दूसरे मुल्कों में अपने लिए नौकरी की तलाश में जुट गई हैं। इन नर्सों को लौटे चार सप्ताह भी पूरे नहीं हो पाए हैं। सुन्नी आतंकवादियों के चंगुल से आजाद हुई 46 नर्सों में से कोई भी अब इराक नहीं लौटना चाहती हैं। इराक अब गृह युद्ध की आग में जलने लगा है और वहां स्थितियों में कोई बदलाव का कोई लक्षण नहीं दिख रहा है। लेकिन खाड़ी देशों से मिलने वाले बेहतर पैकेज की ओर अभी भी नर्सों का आकर्षण कम नहीं हुआ है और उनकी इच्छा अभी भी वहां नौकरी करने की है।कोट्टयम की रहने वाली जे. मेरेना अभी भी चर्चो में जा रही हैं। उन्हें लगता है कि भगवान की मर्जी से ही वह अपने घर सकुशल लौट सकी हैं। मेरेना ने  कहा, मेरे पति कतर में काम करते हैं और बच्चे यहां पढ़ते हैं। इराक की इस त्रासदी के बाद हमने साथ ही रहने का फैसला किया है। इसीलिए मैंने कतर में नौकरी के लिए आवेदन दिया है। यदि मैं अपने चार बच्चों के साथ वहां गई तो परिवार के साथ रह सकूंगी।मेरेना शीघ्र ही कतर में नौकरी के लिए होने वाली परीक्षा पास करने के लिए एक पाठ्यक्रम में शामिल होंगी। एक अन्य नर्स रेणु बालकृष्णन ने कहा कि जिस सपने के साथ उन्होंने इराक में नौकरी की वह आज भी अधूरा है। उन्होंने कहा कि उन्होंने भारत में नर्सों को जो मिलता है उससे कहीं ज्यादा कमाने का सपना देखा था।वह केरल में खुद का एक घर, बड़ी बहन की शादी में मदद करने और मानसिक रूप से कमजोर छोटी बहन की मदद करने के लिए संघर्ष में जुटी हैं। भरी हुई आंखों से रेणु ने कहा, यदि भगवान नहीं होते तो मुझे संदेह है कि हम इराक से घर भी लौट पाते। मेरे पास और कोई रास्ता नहीं है। मुझे मध्य पूर्व में दूसरी नौकरी की जरूरत है। कुछ नर्सो ने इराक में नौकरी पाने के लिए दो लाख रुपये तक खर्च किए थे। कुछ एक वर्ष से वहां थीं तो कई अन्य फरवरी में वहां पहुंची थीं। महीने भर के ही दौरान वे इराक संकट में फंस गईं। जल्दबाजी में लौटने के कारण उन्हें कुछ महीनों का वेतन भी गंवाना पड़ा। मध्य पूर्व में कारोबार करने वाले सी. के. मेनन ने नर्सो को तीन लाख रुपये मदद के तौर पर दिए हैं। इन रुपयों से नर्सो ने कर्ज चुकता किए हैं।कम नहीं हुआ खाड़ी देशों का आकर्षणकेरल सहित देश की नर्सों में खाड़ी देशों के प्रति आकर्षण कम नहीं हुआ है, खाड़ी देशों में परिवार के किसी न किसी सदस्य के काम करने से इन्हें वहां जाने में आसानी भी होती है साथ ही साथ खाड़ी देशों में मिलने वाले आकर्षण पैकेजों के प्रति बढ़ते रूझान के कारण नर्सें खाड़ी देशों को यूरोप व अन्य देशों के की अपेक्षा प्रथामिता देती हैं।

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