• भारत को कोढ़ मुक्त बनाने में लगेंगे 40 साल

    भारत का कुष्ठ या कोढ़ उन्मूलन कार्यक्रम सफल नहीं रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ ने कहा कि देश को इससे पूरी तरह निजात दिलाने में अभी कम से कम 40 साल और लगेंगे। वर्ष 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत से कुष्ठ रोग का सफाया होने की घोषणा की थी। हालांकि, भारत में पिछले पांच वर्षों में कुष्ठ रोग के नए मामलों में सालाना पांच से सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है।...

    कुष्ठ रोग के नए मामलों में सालाना पांच से सात प्रतिशत की वृद्धि देश में हर साल कोढ़ के 1,27,595 नए मामले  सुदूरवर्ती इलाकों में कुष्ठ रोगियों की एक बड़ी संख्या भारत, दुनिया में कोढ़ के 58 प्रतिशत नए मामलों के लिए जवाबदेहनई दिल्ली !  भारत का कुष्ठ या कोढ़ उन्मूलन कार्यक्रम सफल नहीं रहा है। एक अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञ ने कहा कि देश को इससे पूरी तरह निजात दिलाने में अभी कम से कम 40 साल और लगेंगे। वर्ष 2005 में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत से कुष्ठ रोग का सफाया होने की घोषणा की थी। हालांकि, भारत में पिछले पांच वर्षों में कुष्ठ रोग के नए मामलों में सालाना पांच से सात प्रतिशत की वृद्धि हुई है। राष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (एनएलईपी) के मुताबिक, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने भारत में हर साल कोढ़ के 1,27,595 नए मामलों का पता लगाया है। अंतरराष्ट्रीय कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम (आईएलईपी) के निदेशक रेने स्टैहेली ने यहां एक साक्षात्कार में बताया कि  भारत को अहसास होना चाहिए कि कुष्ठ उन्मूलन कार्यक्रम एक जन स्वास्थ्य कार्यक्रम के रूप में सफल नहीं हुआ है, क्योंकि संचरण की संख्या बढ़ी है। उन्होंने कहा, भारत पर आर्थिक रूप से पिछड़े राज्यों के उन सुदूरवर्ती इलाकों में कुष्ठ रोगियों का एक बहुत बड़ा भार है, जहां अभी तक कुष्ठ रोग के लिए दवाइयां नहीं पहुंची हैं। ऐसा शायद कई कारणों से हुआ हो। उल्लेखनीय है कि कोढ़ एक संक्रामक रोग है, जो त्वचा की कुरूपता का सबब बनता है और साथ ही हाथों और पैरों की तंत्रिका को नुकसान पहुंचाता है। स्टैहेली ने कहा, सबसे पहली बात, उन क्षेत्रों में कोढ़ के लिए दवाइयां पहुंचाना बहुत जरूरी है। इस रोग का खात्मा करने के लिए अभी कम से कम 40 साल और लगेंगे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत, दुनिया में कोढ़ के 58 प्रतिशत नए मामलों के लिए जवाबदेह है। स्टैहेली भारत में गुडबाय कुष्ठ ट्रस्ट (जीबीएलटी) के लांच के लिए पहुंचे थे। उन्होंने कहा, अगर भारत कुष्ठ रोग से छुटकारा चाहता है, तो इसे समुचित वित्तीय संसाधन मुहैया कराने और संगठनों के गठबंधन को अंजाम देने के लिए काम करने के अलावा, सर्वप्रथम एक राजनीतिक इच्छाशक्ति विकसित करने की जरूरत है।  विदित हो कि देश में इस दिशा में सरकारी स्तर पर बड़े-बड़े कार्यक्रम चलाए गए थे लेकिन राज्य सरकारों की उदासीनता के चलते  इसका असल लाभ पीडि़तों को नहीं मिल सका। इस अभियान के पीछे राज्य सरकारों की इच्छा शक्ति में कमी भी काफी हद तक जिम्मेदार है। इस रोग के बचाव व इलाज के लिए प्रचार व प्रसार भी कम किया गया। 

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