• घाटे का रोना रोते-रोते करोड़ों कमा गई तेल कंपनियां

    घाटे के नाम पर आए दिन पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ा बढ़ा कर तेल कंपनियों की चांदी हुई है, जबकि जनता पर महंगाई की मार पड़ी है। ...

    नई दिल्ली !  घाटे के नाम पर आए दिन पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के दाम बढ़ा बढ़ा कर तेल कंपनियों की चांदी हुई है, जबकि जनता पर महंगाई की मार पड़ी है। कम्प्ट्रोलर एंड ऑडिटर जनरल (कैग) की ओर से सरकारी तेल मार्केटिंग कंपनियों के पेट्रोलियम प्रोडक्ट की प्राइसिंग पर संसद में पेश की गई ऑडिट रिपोर्ट के मुताबिक इन कंपनियों ने वर्ष 2007 से 2012 के बीच 50513 करोड़ रूपए का मुनाफा कमाया है। कैग ने रिपोर्ट में कहा है कि एलपीजी, केरोसीन, डीजल और पेट्रोल के दाम आयात के आधार पर तय करने वाले इस प्राइस मैकेनिज्म का तेल कंपनियों को अच्छा खासा फायदा हुआ है और यही नहीं इस गलत प्राइस मैकेनिज्म से निजी रिफायनरीज को भी मुनाफा हुआ है।इस प्राइस मैकेनिज्म में नोशनल इम्पोर्ट से संबंधित खर्चे जैसे कि कस्टम ड्यूटी, इंश्यॉरेंस, ओशियन फ्रेट आदि को भी शामिल किया गया है। यह वो खर्चे हैं जो असल में हुए नहीं लेकिन इन्हें भी रीएम्बर्स किया गया है और इस बूते 50513 करोड़ रूपया इन पांच सालों में कमाया गया है। यही नहीं इस प्राइस मैथेडोलॉजी से रिफाइनरीज ने कच्चे तेल के आयात पर जो इम्पोर्ट संबंधी खर्चे किए हैं, उन पर भी तेल कंपनियों ने कम से कम 26626 करोड़ रूपए का मुनाफा कमाया है। गौरतलब है कि सरकारी रिफायनरीज जरूरतों को पूरा करने के लिए निजी रिफायनरीज से पेट्रोलियम प्रोडक्ट लेती हैं और इन प्रोडक्ट्स के लिए तेल कंपनियां रिफाइनरीज को इंपोर्ट-लिंक्ड प्राइस अदा करती हैं। वहीं निजी रिफायनरीज अपने बचे हुए प्रोडक्ट्स को एक्सपोर्ट पैरिटी प्राइस पर निर्यात करती हैं। एक्सपोर्ट पैरिटी प्राइस इंपोर्ट-लिंक्ड प्राइस (रिफाइनरी गेट प्राइस) से कम होते हैं। कैग रिपोर्ट मे कहा गया है, इससे रलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड और इसार ऑयल लिमिटेड जैसी निजी रिफायनरीज को मोटा मुनाफा होता है। केवल हाई स्पीड डीजल पर ही वर्ष 2011-12 में 667 करोड़ रूपए का मुनाफा कमाया गया है। कैग ने कहा कि प्राइस रेगुलेटिड पेट्रोलियम प्रोडक्ट्स के मैकेनिज्म से रिफायनरीज की एक्चुअल कॉस्ट ऑफ ऑपरेशंस पता नहीं चलती।

अपनी राय दें