छत्तीसगढ़ में निवास करने वाली कुछ जनजातियों को विशेष संरक्षित जनजाति की श्रेणी में रखा गया है क्योंकि इनकी आबादी में वृद्धि औसत से कम पाई गई है। इन जनजातियों के उत्थान के लिए विभिन्न स्तरों पर विशेष कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। बैगा जनजाति भी इन्हीं जनजातियों में एक है, जो बिलासपुर तथा आसपास के जिलों में निवास करती है। इसी तरह पहाड़ी कोरवा और पंडों जनजाति भी संरक्षित जनजातियों में शामिल है जिसकी आबादी सरगुजा तथा उससे लगे हुए जिलों में है। पिछले दिनों इन जनजातियों में बैगा जनजाति सुर्खियों में आई जब इस जनजाति की महिलाओं की भी नसबंदी कर देने का मामला सामने आया। नसबंदी का उद्देश्य ही परिवार को नियोजित करना है और जब किसी जनजाति विशेष की आबादी घटने के कारण उसे संरक्षण मिला हुआ है तो ऐसी जनजाति की महिला या पुरुष की नसबंदी के मामले मेें क्या सरकारी दिशा-निर्देश हैं, इस बारे में स्वास्थ्य मंत्री अमर अग्रवाल के विधानसभा में दिए बयान से सरकारी रुख का अंदाजा लगाया जा सकता है। विधानसभा में कांग्रेस विधायकों की ओर से पूछे गए सवाल पर स्वास्थ्य मंत्री का जवाब है कि बैगा महिलाओं की नसबंदी उनकी सहमति से की गई। और यह भी कि पिछले 5 साल में 384 बैगा महिलाओं की नसबंदी की गई है। नसबंदी के लिए किसी महिला या पुरुष की सहमति लेना सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है, कोई असहमत हो तो जोर-जबर्दस्ती से उनकी नसबंदी तो की नहीं जा सकती। बैगा महिलाओं की नसबंदी का मामला उनकी सहमति या असहमति का मामला नहीं है बल्कि एक संरक्षित जनजाति की महिलाओं की नसबंदी का है और सरकार को इस मामले में अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करना चाहिए ताकि निचले स्तर पर सावधानी बरती जा सके। राष्ट्रीय तथा राज्य स्तर पर अनुसूचित जाति-जनजाति के मामलों की निगरानी के लिए गठित आयोगों की ओर से भी इस मामले में किसी प्रतिक्रिया का न आना आश्चर्यजनक है। परिवार नियोजन का कार्यक्रम सामाजिक-आर्थिक विकास का एक राष्ट्रीय कार्यक्रम है और नसबंदी कांड से इस कार्यक्रम को धक्का लगना स्वाभाविक है। शिक्षित और समर्थ समाज में तो लोग परिवार नियोजन का महत्व समझ सकते हैं लेकिन वह समाज जिसमें ऐसी जागरुकता नहीं है, उनके लिए कार्यक्रम का आकर्षण ही नसबंदी के लिए प्रोत्साहित करता है। लोगों का नसबंदी करने वाले डाक्टरों तथा इससे अपनाई जाने वाली तकनीकी पर लोगों का विश्वास बना रहे इसलिए यह साफ किया जाना भी जरूरी है कि आखिर महिलाओं की मौत तथा उनके पीडि़त होने का मुख्य कारण क्या है। अभी तक जांच पड़ताल में शंका चिकित्सक तथा जहरीली दवा दोनों पर जताई जा रही है। सामान्य समझ तो यही कहती है कि इतनी संख्या में नसबंदी के बाद महिलाओं की मौत और उनके बीमार होने दो कारण एक साथ नहीं हो सकते।