• जीएसएलवी मार्क-3 की तिहरी सफलता

    इस वर्ष सितम्बर में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को मंगलयान भेजने की बड़ी कामयाबी मिली थी और अब उसकी उपलब्धियों में एक नया नगीना जुड़ गया है जीएसएलवी मार्क-3 के सफल प्रक्षेपण से। यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केेंद्र से किया गया। ...

    इस वर्ष सितम्बर में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) को मंगलयान भेजने की बड़ी कामयाबी मिली थी और अब उसकी उपलब्धियों में एक नया नगीना जुड़ गया है जीएसएलवी मार्क-3 के सफल प्रक्षेपण से। यह प्रक्षेपण सतीश धवन अंतरिक्ष केेंद्र से किया गया। जिओ सिंक्रोनस लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी मार्क-3) यानी भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान 630 जन वजन का एक विशालकाय राकेट है। आंध्रप्रदेश के श्रीहरिकोटा में भारत के इस सबसे बड़े राकेट का निर्माण किया गया, जिसकी खासियत यह है कि यह अपने साथ 4 टन वजन ले जा सकता है। इस यान के सफल प्रक्षेपण के बाद अब भारत अमरीका, रूस और चीन की उस बिरादरी में शामिल हो गया है, जो अपने यान से मानव को अंतरिक्ष भेजने की क्षमता रखते हैं। भूस्थिर उपग्रह प्रक्षेपण यान अंतरिक्ष में उपग्रह के प्रक्षेपण में सहायक यान होता है। ये यान उपग्रह को पृथ्वी की कक्षा में स्थापित करने में मदद करता है। जीएसएलवी मार्क-3 रॉकेट के साथ इंसान को अंतरिक्ष में ले जाने वाले कैप्सूल (यान) को भी लॉन्च किया गया है। ये कैप्सूल 2-3 लोगों को अंतरिक्ष में ले जा सकता है। सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र की दूसरी प्रक्षेपण पट्टी (लॉन्च पैड) से इसके प्रक्षेपण के ठीक 5.4 मिनट बाद मॉड्यूल 126 किलोमीटर की ऊंचाई पर जाकर रॉकेट से अलग हो गया और फिर समुद्र तल से लगभग 80 किलोमीटर की ऊंचाई पर पृथ्वी के वातावरण में पुन: प्रवेश कर गया। यह बहुत तेज गति से नीचे की ओर उतरा और फिर इंदिरा प्वाइंट से लगभग 180 किलोमीटर की दूरी पर बंगाल की खाड़ी में उतर गया। गौरतलब है कि इंदिरा प्वाइंट अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह का दक्षिणतम बिंदू है। 3 टन से ज्यादा वजन और 2.7 मीटर लंबाई वाले कप-केक के आकार के इस कैप्सूल को आगरा स्थित डीआरडीओ की प्रयोगशाला एरियल डिलीवरी रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट एस्टेबलिशमेंट में विशेष तौर पर तैयार किए गए पैराशूटों की मदद से समुद्र में उतारा जाना था। 3.1 मीटर के व्यास वाले इस कैप्सूल की आंतरिक सतह पर एल्यूमीनियम की मिश्र धातु लगी है और इसमें विभिन्न पैनल एवं तापमान के कारण क्षरण से सुरक्षा करने वाले तंत्र हैं। इस परीक्षण के तहत देश में बने अब तक के सबसे बड़े पैराशूट का भी इस्तेमाल किया गया। 31 मीटर के व्यास वाले इस मुख्य पैराशूट की मदद से ही कैप्सूल ने जल की सतह को सात मीटर प्रति सेकेंड की रफ्तार के साथ छुआ। यह कहा जा सकता है कि जीएसएलवी मार्क-3 से केवल एक नहींबल्कि तीन तरह की सफलताएं भारत को मिली हैं। पहली, मानव को अंतरिक्ष में भेजने की क्षमता हासिल करना। दूसरी, सबसे बड़े राकेट का निर्माण और सफल प्रक्षेपण और तीसरी, देश में ही बने सबसे बड़े पैराशूट का सफल प्रयोग। इस तिहरी सफलता से निश्चित ही इसरो के वैज्ञानिकों के हौसले बुलंद होंगे, भारत की आम जनता के लिए भी यह गर्व का सबब है। अब उस दिन की कल्पना करना और सहज हो गया है, जब भारत में निर्मित अंतरिक्ष यान में, भारतीय जमीन से, भारतीय अंतरिक्ष यात्री चांद समेत अंतरिक्ष की अनंत संभावनाओं को टटोलने के लिए उड़ान भरेंगे। इसरो के वैज्ञानिकों की इस उपलब्धि पर जितनी तारीफ की जाए कम है। भारत ने सचमुच 21वींसदी में अपनी वैज्ञानिक सक्रियता का परिचय दिया है। अब जरूरत इस सक्रियता के विस्तार की है। जन-जन तक वैज्ञानिक सोच के फैलाव की है। यह कार्य विद्यालयों से प्रारंभ तो होता है, किंतु उच्च शिक्षा के स्तर तक आते-आते गिने-चुने विद्यार्थी ही सही अर्थों में विज्ञान के शिष्य रह जाते हैं। भारतीय समाज में पसरी अंधविश्वास की जड़ें, रूढि़वादी सोच और कुंठित मानसिकता के चलते वैज्ञानिक दृष्टिकोण का प्रसार बाधित होता रहता है। जिसका असर विज्ञान की उच्च शिक्षा, शोध कार्यों व अनुसंधानों पर पड़ता है। भारतीय अंतरिक्ष यान में बैठकर चांद के आगे की दुनिया हमें देखनी है तो सड़ी-गली मान्यताओं, पौराणिक कथाओं और वैज्ञानिक उपलब्धियों का घालमेल और कट्टरपंथी नजरिए को छोडऩा होगा।

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