सप्ताह के पहले दिन, सोमवार की सुबह सिडनी मेंंआतंकी हमले की खबर आई। यहां के लिंट चाकलेट कैफे में एक आतंकी ने वहां मौजूद लगभग 40 लोगों को बंधक बना लिया था। इस घटना की जानकारी मिलते ही यह अंदेशा प्रकट किया जाने लगा कि मुंबई में 26 नवंबर को हुए हमले की तरह यह घटना हो सकती है। हमलावर ने कैफे में मौजूद लोगों से आस्ट्रेलियाई सरकार के नाम संदेश जारी करवाए और अपनी कुछ मांगें रखीं। सुबह 9 बजे के आसपास इस कैफे में हमलावर हथियारबंद होकर पहुंचा और दोपहर तक आस्ट्रेलियाई पुलिस व कमांडों ने कार्रवाई करना प्रारंभ की। वे कैफे मेंंघुस गए, हमलावर को मार गिराया, बंधकों को छुड़ाया गया, एक बंधक की मौत भी हो गई। रात तक आस्ट्रेलिया का यह संकट खत्म माना गया। पता चला कि हमलावर ईरान का शरणार्थी था और पहले भी उसके खिलाफ कई मामले दर्ज थे। विश्व के एक कोने में दिन भर चले इस तनावपूर्ण घटनाक्र्रम को दूसरे छोरों पर बसे देशों में महसूस किया गया। आतंकवाद से विश्व का कोई भी देश अछूता नहींरह गया है। सब किसी न किसी तरह से इसकी आंच में झुलस ही रहे हैं। सिडनी में जान-माल की अधिक हानि हुए बगैर मामला खत्म हुआ तो सबने चैन की सांस ली। लेकिन मंगलवार दोपहर तक फिर एक बड़ी आतंकी घटना की खबर आ गई। इस बार निशाने पर रहा पाकिस्तान। आतंकियों ने नृशंसता की तमाम हदें पार करते हुए इस बार निशाना बनाया स्कूल के बच्चों को। पेशावर के आर्मी द्वारा संचालित स्कूल में आतंकी संगठन तहरीके तालिबान के आतंकियों ने हमला कर दिया, जिसमें इन पंक्तियों के लिखे जाने तक 100 बच्चों समेत 126 लोगों के मारे जाने की खबर है, और लगभग 250 लोग घायल बताए जा रहे हैं। तहरीके तालिबान ने इस हमले की जिम्मेदारी लेते हुए इसे उत्तरी वजीरिस्तान में आतंकियों के खिलाफ की जारी सैन्य कार्रवाई का जवाब कहा है। अब तक आतंकवादी भीड़ भरे इलाकों, जैसे बाजार, सार्वजनिक परिवहन, धार्मिक स्थल आदि में हमलों को अंजाम देते आए हैं, जिनमें आम आदमी बेमौत मारा जाता है। इस बार उन्होंने उन मासूम बच्चों को अपना निशाना बनाया है, जिनमें राजनीतिक, धार्मिक या सामाजिक धारणाएं अब तक न ठीक से पनप पाई हैं, न विकसित हो पाई हैं। इन बच्चों ने तो दुनिया भी ठीक से नहींदेखी होगी। उनका जीवनवृत्त अपने घर-परिवार, दोस्तों और पढ़ाई तक ही सीमित रहा होगा। ऐसे बच्चों को गोलियों और बमों का निशाना बनाकर आतंकी क्या संदेश देना चाहते हैं? यही कि वे वर्तमान और भावी जीवन में हिंसा का ऐसा शोर भर देंगे, बारूद की ऐसी गंध भर देंगे, खून-खराबे का ऐसा नजारा पैदा कर देंगे कि बच्चे हंसना, खेलना, शरारत करना भूल जाएंगे। अगर आतंकवादियों के ऐसे मंसूबों को विफल करना है, तो पाकिस्तान को ईमानदारी से आतंकवाद की समस्या पर विचार करना होगा। बेशक इस हमले से पाकिस्तान सरकार एक बार फिर मुसीबत में पड़ गई है। हाल ही में वाघा सीमा पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें 50 से ज्यादा लोग मारे गए थे। अब यह नया संकट सामने है। पाकिस्तान सरकार ने हमेशा आतंकवाद से लडऩे की प्रतिबद्धता दोहराई है। अपनी जमीन से आतंकियों को प्रशिक्षण न देने का दावा बार-बार किया है। लेकिन इस आधे-अधूरे सच को वो स्वयं अच्छे से जानती है। देश की एक सीमा पर आतंकियों के खिलाफ कार्रवाई और दूसरी सीमा पर उन्हें पनपने की जगह देना उसकी नीति और नीयत दोनों को उजागर कर देता है। एक आतंकी संगठन के विरूद्ध सेना को खड़ा करना और दूसरे संगठन को सेना का सहयोग देना, ऐसा दोहरापन जितना भारत जैसे पड़ोसी देशों के लिए खतरनाक है, उतना ही उसके लिए भी है, यह बात आज फिर सिद्ध हो गई है। सेना और आईएसआई के दबाव में नवाज शरीफ सरकार अपने बहुत से वचनों को नहींनिभा रही है। यह लोकतांत्रिक मूल्यों और पाकिस्तान की जनता के साथ भी छल है। बच्चों पर आतंकियों के हमले की जितनी निंदा की जाए कम है। इस मौके पर पाकिस्तान की सरकार को सोचना होगा कि उसके ही हथियार कैसे उसके प्राण लेने पर तुले हैं। सिडनी और पाकिस्तान पर आतंकी हमला विश्व के विभिन्न कोनों में हो रहे आतंकी हमलों की ताजा कड़ी हैं। इनके खिलाफ सैन्य कार्रवाई, खुफिया एजेंसियों की सतर्कता, राजनीतिक घोषणाएं होती रहेंगी, किंतु आतंकवाद से लड़ाई मात्र इनके भरोसे पूरी नहींहो सकती। इसके लिए विश्व समाज को सामने आना होगा। यह सोचना होगा कि आधुनिक होने और तकनीकी में दक्ष होने के मायने क्या आत्मकेन्द्रित होना है? क्या आर्थिक विकास ही सब समस्याओं का हल है? हम बच्चों को अपने समाज के लिए संवेदनशील कैसे बनाएं, कैसे बेजान होते सामाजिक जीवन में नए प्राण फूंके, कट्टरता पर उदारता की जीत कैसे साबित करें? ऐसे तमाम सवाल समाज, देश और विश्व स्तर पर जब पूछे जाएंंगे, तभी आतंक की आग को बुझाने की उम्मीदें कायम होंगी।