• महाराष्ट्र में भाजपा सरकार

    विदर्भ सुनते ही दो बातें दिमाग में सबसे पहले उभरती हैं, पृथक राज्य की मांग और किसानों की आत्महत्या। लेकिन अब विदर्भ देवेन्द्र फडऩवीस के लिए भी जाना जाएगा, जो महाराष्ट्र में भाजपा सरकार की बागडोर संभालने जा रहे हैं। मात्र 27 साल की उम्र में ही नागपुर के महापौर का पद संभाल चुके देवेन्द्र फडऩवीस के लिए नागपुर से मुंबई तक की राह आसान नहींथी। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय का दबदबा रहा है, और देवेन्द्र ब्राह्म्ïाण हैं। ...

    विदर्भ सुनते ही दो बातें दिमाग में सबसे पहले उभरती हैं, पृथक राज्य की मांग और किसानों की आत्महत्या। लेकिन अब विदर्भ देवेन्द्र फडऩवीस के लिए भी जाना जाएगा, जो महाराष्ट्र में भाजपा सरकार की बागडोर संभालने जा रहे हैं। मात्र 27 साल की उम्र में ही नागपुर के महापौर का पद संभाल चुके देवेन्द्र फडऩवीस के लिए नागपुर से मुंबई तक की राह आसान नहींथी। महाराष्ट्र की राजनीति में मराठा समुदाय का दबदबा रहा है, और देवेन्द्र ब्राह्म्ïाण हैं। यूं चुनावों में भाजपा का एक नारा यह था कि केेंद्र मेंंनरेन्द्र और राज्य में देवेन्द्र, फिर भी प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने की दावेदार स्व.गोपीनाथ मुंडे की बेटी पंकजा मुंडे भी थींऔर एकनाथ खड़से भी। देवेन्द्र फडऩवीस को उनके पिता की मौत के बाद राजनीति में आगे बढ़ाने वाले नितिन गडकरी को भी उनके समर्थक इस पद पर देखना चाहते थे। भाजपा के लिए चयन कठिन था, किंतु नरेन्द्र मोदी के लिए नहीं। जिस तरह लोकसभा चुनावों में प्रदेश में मोदी के लिए माहौल बनाने में देवेन्द्र फडऩवीस ने काम किया, उससे जाहिर था कि वे नरेन्द्र मोदी की पहली पसंद होंगे। 44 वर्षीय फडऩवीस के कामकाज का तरीका भी बहुत कुछ नरेन्द्र मोदी की शैली का है। सोशल नेटवर्किंग साइट्स के जरिए अधिकाधिक लोगों से संपर्क साधना, मोदी की तरह की जैकेट पहनना और इन सबके साथ-साथ वे संघ के करीबी हैं या यूं कह लें कि मुख्यमंत्री के रूप में संघ की पसंद भी हैं। उनके पिता गंगाधर राव भी जनसंघ व भाजपा से जुड़े थे। महाराष्ट्र के पहले हरियाणा में भी भाजपा सरकार का मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर को बनाया गया है, जो नरेन्द्र मोदी और संघ की पसंद हैं। देवेन्द्र फडऩवीस गैर मराठा हैं तो मनोहर लाल खट्टर गैर जाट। हरियाणा में भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल किया था, इसलिए वहां मुख्यमंत्री तय करना आसान था। महाराष्ट्र में यह मुद्दा यहां की राजनीति की तरह जटिल था। 288 सीटों में भाजपा को 122 सीटें हासिल हुईं, जो सबसे अधिक तो हैं, किंतु बहुमत के आंकड़े को नहींछूती। इसलिए त्रिशंकु सरकार बनने की आशंका थी। लेकिन नतीजे आते न आते राकांपा ने बाहर से समर्थन देने की घोषणा कर राजनीति के चक्रव्यूह को थोड़ा और गहरा दिया। राकांपा स्वयं सत्ता में नहींआ सकती, किंतु सत्ताधारी का सहयोगी होने का सुख तो ले ही सकती है। वैसे शरद पवार की यह रणनीति मात्र भाजपा को समर्थन देकर सरकार बनवाने की नहींहै। वे इसके जरिए एक ओर शिवसेना की परेशानियां को थोड़ा और बढ़ा रहे हैं, साथ ही अपनी भावी परेशानियों का हल भी तलाश रहे हैं। याद रहे कि महाराष्ट्र में पूरे चुनाव प्रचार के दौरान देवेन्द्र फडऩवीस ने राकांपा के कथित भ्रष्टाचार के खिलाफ खूब प्रहार किए और घोषणाएं की कि घोटाला करने वालों को जेल भेजा जाएगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी राकांपा यानी एनसीपी का शब्द विस्तार नेचुरल करप्ट पार्टी कहकर किया। अब देखना यह है कि सरकार बनाने के बाद भाजपा राकांपा पर आरोपों की जांच कितनी सख्ती से करती है। देवेन्द्र फडऩवीस वानखेड़े स्टेडियम में शपथ लेंगे, और इसके लिए महाराष्ट्र क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष शरद पवार ने सहर्ष अनुमति दी होगी। भाजपा ने इससे पहले शिवसेना के साथ गठबंधन सरकार महाराष्ट्र में बनाई थी, तब वह छोटे भाई की भूमिका में थी, अब वह निर्णायक भूमिका अदा कर रही है और शिवसेना असमंजस में है कि भाजपा के साथ आए या विपक्ष में बैठे। भाजपा महाराष्ट्र में सरकार गठन तो कर रही है, लेकिन आगामी पांच साल उसके लिए चुनौतीपूर्ण रहेंगे। राजनीतिक जटिलताओं को सुलझाने के साथ-साथ प्रदेश की स्थायी बन चुकी समस्याओं, जैसे पृथक राज्य की मांग, किसानों की बदहाल स्थिति, औद्योगिकरण के कारण बढ़ती विषमता, नक्सलवाद का समाधान भी भाजपा के लिए चुनौती रहेगी।

अपनी राय दें