• मोदी के राजनीतिक व्यक्तित्व के पीछे 'गोधरा

    आज की भारतीय राजनीति पर गोधरा कांड का सीधा असर पड़ा है। अगर 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में इसी गोधरा स्टेशन के पास आग न लगी होती तो न तो गुजरात में वह भयानक नरसंहार हुआ होता ...

    मौजूदा चुनाव में हो रहा गुजरात के मुख्यमंत्री की राजनीति पर एक तरह का जनमत संग्रह गोधरा । आज की भारतीय राजनीति पर गोधरा कांड का सीधा असर पड़ा है। अगर 2002 में साबरमती एक्सप्रेस के एस-6 कोच में इसी गोधरा स्टेशन के पास आग न लगी होती तो न तो गुजरात में वह भयानक नरसंहार हुआ होता और न ही गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी का वह व्यक्तित्व होता जो आज है। आज वे लोकसभा चुनाव के केंद्र बिंदु न होते। भारत में नरेंद्र मोदी को किस तरह से देखा-समझा जाता है, वह मुद्दा नहीं है। दरअसल मौजूदा चुनाव नरेंद्र मोदी और उनकी राजनीति पर एक तरह का जनमत संग्रह है। मार्च 2002 में जब पत्रकारों ने गोधरा की यात्रा की तो एक ऐसी कॉलोनी का नाम पता चला जिसका नाम बिल्कुल अलग तरह का था। सिग्नल फालिया, घनी आबादी वाला इलाका था। यहां कूड़ेदान महीनों से नहीं साफ किए गए थे। अभी भी यहां वैसी ही कॉलोनी है और यह उस विकास कथा के चेहरे पर बदनुमा दाग है जिसके कारण देश के बहुत बड़े इलाके के लोग बहुत पीछे छूट गए हैं। इस कॉलोनी का राजनीतिक महत्व यह है कि इसमें रहने वाले सभी लोग मुसलमान हैं। गोधरा कस्बे के बाहर बसे इस गंदगी भरे इलाके में उन 31 लोगों के  घर भी हैं जिनको गोधरा एक्सप्रेस पर हुए हमले के लिए सजा मिल चुकी है। सजा याफ्ता लोगों में से एक की मौत हो चुकी है जबकि तीन पैरोल पर छूट कर आए  हुए हैं। बाकी 27 लोगों का परिवार जब भी समय मिलता है जिला जेल में बंद अपने परिजनों से मिलकर आते हैं। यहां खलीजा बी हैं, शमीना, ताहिरा और रजिया हैं जिनके परिवार के लोग सजा काट रहे हैं। सबकी कहानियां एक जैसी हैं। औरतें लोगों के घरों में घरेलू कामवाली के रूप में कम करती हैं जबकि मर्द दिहाड़ी मजदूर हैं या ठेला लगाते हैं। बच्चे शुरू में तो स्कूल जाते हैं लेकिन बड़े होने के पहले ही काम करने लगते हैं। जिससे परिवार की आमदनी में कुछ वृद्धि हो। गोधरा कांड के बाद कुछ समय तक तो इनको कुछ मदद मिली थी लेकिन बाद में राज्य सरकार ने इनको राष्ट्रद्रोही, साजिशकर्ता और अपराधी का परिवार कह कर पूरी तरह से भुला दिया। अब सिग्नल फालिया में कोई नेता नहीं आता। भाजपा वाले गोधरा के किसी भी मुसलमान से वोट मांगने का कोई औचित्य नहीं मानते जबकि, कांग्रेस वाले कहते हैं कि अगर मुस्लिम इलाके में बार-बार जाते देखे गए तो बहुसंख्यक हिंदू नाराज हो जाएंगे। मुसलमान वैसे भी कांगे्रस को वोट देते हैं। शायद इसी वजह से गोधरा सीट पर 2012 के चुनाव में कांग्रेस ने जीत पाई थी। इस रवैए से गरीब और अपेक्षाकृत कम गरीब मुसलमानों में भारी नाराजगी है। रमजानी सिग्नल फालिया की आबादी से थोड़ा हट कर नजर आते हैं। करीब 25 साल के हैं। अपने दो बच्चों और पत्नी के साथ रहते हैं। उनकी टीवी और मोबाइल की मरम्मत की दूकान है। उनकी खासियत यह है कि वे वड़ोदरा के एक लोकल टीवी चैनल के स्ट्रिंगर भी हैं। वे इस इलाके के मुसलामानों के बारे में खबरें कवर करते है। जब चैनल से कोई रिपोर्टर आ जाता है तो रमजानी कैमरामैन के रूप  में भी काम कर लेते हैं। उनका मानना है कि मुसलमानों को अब एक नया नेता चुन लेना चाहिए। रमजानी से बात करके लगता है कि गोधरा में बहुत अंदर तक धुव्रीकरण प्रवेश कर चुका है।  गोधरा वास्तव में पंचमहल लोकसभा सीट का एक हिस्सा है। यह मध्यप्रदेश की सीमा के पास है। गोधरा के अलावा इस लोकसभा क्षेत्र में क रीब छह और सीटें हैं। पंचमहल मूलरूप से एक ग्रामीण क्षेत्र है जबकि गोधरा उसका अर्धशहरी हिस्सा है। इस क्षेत्र में चुनाव लगभग पूरी तरह से धार्मिक धु्रवीकरण के आधार पर होता  है। 2002 में गोधरा शहर में कोई दंगा नहीं हुआ था लेकिन आसपास के ग्रामीण इलाकों से हिंसा की खबरें आईं थीं। जिन गावों में मुसलमानों को मारा-पीटा गया था, वे अभी तक अपने घरों में वापस नहीं आए हैं। आसपास के  शहरी इलाकों में बसे हुए हैं। वड़ोदरा और गोधरा के बीच कलोल कस्बे में मुसलमानों के लिए कॉलोनियां बन गई हैं। लेकिन इस कॉलोनी को लोगों ने ही बनाया है, सरकार का कोई सहयोग नहीं मिला है। गोधरा में मुसलिम वोट करीब 30 प्रतिशत है जो कांग्रेस को ही मिलते हैं। भाजपा वालों को यहां कोई वोट नहीं मिलता और यह बात भाजपा वाले कहते भी हैं। पंचमहल सीट के भाजपा प्रभारी ब्रह्मभट्ट का कहना है कि मुस्लिम इलाकों में समय बर्बाद करने से कोई लाभ नहीं है और न ही जरूरत है। गोधरा नगरपालिका के दो कांग्रेसी सदस्यों ने मुसलामानों से चुनाव  का बहिष्कार  करने की अपील की है। महबूब पटेल और हनीफ कलंदर ने अपील जारी की और कहा कि कांग्रेस को वोट देने का कोई फायदा नहीं है क्योंकि उसने भी सरकार पर इस बात के लिए दबाव नहीं डाला कि मुसलमानों की हालत सुधारी जाए। इस अपील का मुसलमानों पर कोई खास असर नहीं पड़ा  है लेकिन, यह इस बात का संकेत है कि यहां कांग्रेस से भी नाराजगी है । भाजपा भी अब  हिंदुत्व की राजनीति से बहुत अलग तरह की राजनीति कर रही है। यह अलग बात है कि भाजपा की इस राजनीति का इस शहर पर कोई असर नहीं पड़ता क्योंकि, यही शहर 2002 के नरसंहार का सबसे  बड़ा गवाह  है। दुख की बात यह है कि दोनों ही पार्टियों ने दोनों समुदायों को पास लाने की कोई कोशिश नहीं की और किसी तरह के भाईचारे की कोशिश नहीं की गई।               

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