• शिक्षा का बने अनुकूल माहौल

    प्रदेश के आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप ने आश्रम-छात्रावासों व स्कूलों में अधोसंरचना के विकास के लिए 1350 करोड़ की केन्द्रीय सहायता की मांग की है। इस राशि में 168 करोड़ रूपए राज्य के 625 हायर सेकेण्डरी स्कूलों को स्मार्ट क्लास से सुसज्जित करने के लिए मांगे गए हैं...

    प्रदेश के आदिम जाति कल्याण मंत्री केदार कश्यप ने आश्रम-छात्रावासों व स्कूलों में अधोसंरचना के विकास के लिए 1350 करोड़ की केन्द्रीय सहायता की मांग की है। इस राशि में 168 करोड़ रूपए राज्य के 625 हायर सेकेण्डरी स्कूलों को स्मार्ट क्लास से सुसज्जित करने के लिए मांगे गए हैं जबकि 789 करोड़ की लागत से 667 आश्रमों व छात्रावासों के लिए भवनों का निर्माण कराया जाएगा। राज्य में 2743 आश्रम और छात्रावास संचालित किए जा रहे हैं, जिनमें डेढ़ लाख से अधिक बच्चों को आवासीय सुविधा उपलब्ध कराई जा रही है। राज्य में भवन विहीन आश्रम-छात्रावासों की हालत किसी से छिपी नहीं है। किराए के खपरापोश मकानों में चलने वाले आश्रमों में रहकर पढ़ाई करने वाले बच्चों की मनोदशा समझी जा सकती है, जहां पीने के साफ पानी का बंदोबस्त है और न ही शौचालयों की सुविधा है। बस्तर के झलियामारी कांड को कौन भूल पाया होगा। बच्चियों के यौन शोषण की घटना से चर्चा में आए इस आश्रम में तब राष्टï्रीय महिला आयोग की टीम भी पहुंची थी। बच्चियां खपरापोश तंग मकान में जिस अवस्था में रह रही थीं, उसे देखकर टीम ने घोर असंतोष जाहिर किया था। झलियामारी कांड का असर यह हुआ कि सारे कन्या आश्रमों में सुरक्षा के लिए महिला नगर सैनिकों को तैनात कर दिया गया, लेकिन बाकी बुनियादी सुविधाएं अभी भी बहाल नहीं की जा सकी हैं। बच्चों को सुविधाएं उपलब्ध कराने के लिए आश्रम छात्रावास तो खोल दिए गए हैं मगर भवनों का निर्माण नहीं हो सका है। ऐसे आश्रम-छात्रावासों में दूरदराज से आकर रहने वाले बच्चों को कठिन परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है। सरकार ने भरसक कोशिश की है कि भवनों का निर्माण जल्द से जल्द हो। यदि केन्द्रीय सहायता मिल जाती है तो भवनों के निर्माण के साथ अन्य जरुरी सुविधाएं जल्द बहाल हो सकती हैं। अविभाजित मध्यप्रदेश में छत्तीसगढ़ की किस तरह उपेक्षा हो रही थी, वह शिक्षा सुविधाओं के मामले में अब भी दिखाई देती है। राज्य के गठन के बाद हालांकि शिक्षा सुविधाएं पहले की तुलना में काफी बढ़ी हैं पर अधोसंरचना के विकास के मामले में अभी काफी दूरी तय करना बाकी है। राज्य की अपनी सीमाएं है फिर भी राज्य ने इस क्षेत्र में भी काफी प्रगति की है। केन्द्रीय सहायता इसे और आगे ले जाने में सहायक होगी। एक तिहाई से अधिक आदिवासी आबादी वाले राज्य में इस समुदाय के बच्चे भी शिक्षा ग्रहण कर कदम से कदम मिलाकर चल सकें इसके लिए सुविधाओं के विकास पर विशेष ध्यान देना केन्द्र की भी जिम्मेदारी है। राज्य ने जो सहायता राशि मांगी है वह तात्कालिक जरुरतों पर आधारित है जिसे मंजूर करने में देर नहीं होनी चाहिए। जनजातीय मामलों के मंत्री जुएल उरांव आदिवासी क्षेत्रों की समस्याओं से अच्छी तरह परिचित है। उम्मीद की जा सकती है कि राज्य में यह सहायता जल्द ही मिल जाएगी।

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