• भारत-वियतनाम संबंध

    भारत की लुक ईस्ट नीति दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के साथ आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक संबंध विकसित करने के साथ-साथ रक्षा क्षेत्र में आपसी सहयोग तक दिखाई देती थी, लेकिन अब इसमें जो उग्रता नजर आ रही है, वह पहले नजर नहीं आती थी। इसका ताजा प्रकरण वियतनाम के प्रधानमंत्री नगुएन तान डुंग की दो दिवसीय भारत यात्रा में भारत-वियतनाम के बीच हुए समझौते। ...

    भारत की लुक ईस्ट नीति दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों के साथ आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक संबंध विकसित करने के साथ-साथ रक्षा क्षेत्र में आपसी सहयोग तक दिखाई देती थी, लेकिन अब इसमें जो उग्रता नजर आ रही है, वह पहले नजर नहीं आती थी। इसका ताजा प्रकरण वियतनाम के प्रधानमंत्री नगुएन तान डुंग की दो दिवसीय भारत यात्रा में भारत-वियतनाम के बीच हुए समझौते। लुक ईस्ट नीति के तहत व्यापार और सैन्य साझेदारी को दी जा रही खास तवज्जो में भारत वियतनाम को महत्वपूर्ण कारक के रूप में देख रहा है। दक्षिणपूर्व एशिया के हिन्दचीन प्रायद्वीप के पूर्वी भाग में स्थित इस देश के उत्तर में चीन, उत्तर पश्चिम में लाओस, दक्षिण पश्चिम में कंबोडिया और पूर्व में दक्षिण चीन सागर स्थित है। 86 लाख की जनसंख्या के साथ वियतनाम दुनिया में 13वाँ सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश है। 938 ई. में चीन से अलग होकर यह वियतनाम स्वतंत्र देश बना, फिर 19वींमें फ्रांस का उपनिवेश बना, उससे मुक्ति मिली लेकिन देश में राजनीतिक उथल-पुथल जारी रही और 20वींसदी के मध्य में देश में थोड़ी राजनीतिक स्थिरता का माहौल रहा। वियतनाम में सैन्य संघर्ष का लंबा इतिहास है, लेकिन पिछले एक-डेढ़ दशकों में इस देश में काफी परिवर्तन देखने मिले हैं। 2000 तक वियतनाम ने प्राय: सभी देशों के साथ राजनयिक संबंधों की स्थापना कर ली। पिछले एक दशक में यहां आर्थिक विकास दुनिया में सबसे अधिक दर्ज किया गया। 2007 में वियतनाम विश्व व्यापार संगठन में शामिल हुआ और 2008 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थाई सदस्य बना। भारत और वियतनाम के प्राचीन सांस्कृतिक संबंध हैं और भारत के पहले प्रधानमंत्री पं.जवाहरलाल नेहरू व वियतनाम के राष्ट्रपति हो ची मिन्ह के कार्यकाल में दोनों देशों की मित्रता राजनीतिक स्तर पर भी प्रगाढ़ हुई। दोनों ही देश इस पुरानी राजनैतिक व सांस्कृतिक मैत्री को सैन्य, ऊर्जा, व्यापार के क्षेत्र में परस्पर सहयोग से और आगे ले जाना चाहते हैं ऐसा प्रधानमंत्री डुंग की यात्रा से जाहिर हुआ। भारत की विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने अगस्त में वियतनाम की यात्रा की, उसके बाद राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी सितम्बर में वहां गए। वियतनामी प्रधानमंत्री की भारत यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच जो समझौते हुए उनमें प्रमुख हैं- भारत से नौसैनिक पोत खरीदने पर रजामंदी,-ब्रह्मोस मिसाइल बिक्री और सुखोई विमान प्रशिक्षण, अंग्रेजी भाषा एवं सूचना प्रौद्योगिकी प्रशिक्षण केंद्र, वियतनाम के उपग्रह अंतरिक्ष में पहुंचाने पर सहायता, रेडियो सहित अडियो-विजुअल संचार सहयोग, वियतनाम के चाम मंदिरों के संरक्षण में भी मदद । लेकिन भारत ने हाइड्रोकार्बन समृद्ध दक्षिण चीन सागर में अपनी उपस्थिति बढ़ाने का निर्णय करते हुए दो अतिरिक्त तेल और गैस ब्लॉक में रिसर्च संबंधी समझौतों पर वियतनाम के साथ जो हस्ताक्षर किए हैं, वह इन तमाम समझौतों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस समझौते से चीन की भवें टेढ़ी हो गई हैं, इस क्षेत्र पर वह अपना एकाधिकार समझता है और नहींचाहता कि भारत या कोई अन्य देश इसमें दखल दें। इसलिए भारत-वियतनाम के बीच समझौते के कुछ घंटों बाद ही चीन की प्रतिक्रिया आई कि वह दक्षिण चीन सागर में उसके क्षेत्राधिकार और हित का उल्लंघन करने वाली किसी भी उत्खनन गतिविधि का विरोध करेगा। दक्षिण चीन सागर में किसी तरह की कानूनी व उचित उत्खनन गतिविधि से हमें कोई दिक्कत नहीं है। लेकिन यदि किसी गतिविधि से चीन के क्षेत्राधिकार या हितों का उल्लंघन होता है, तो हम कड़ाई से उसका विरोध करेंगे। इसके अलावा चीनी एतराज को दरकिनार करते हुए भारत ने समुद्री परिवहन की स्वतंत्रता को लेकर वियतनाम के रुख का समर्थन किया। प्रधानमंत्री ने कहा कि भारत और वियतनाम इस बात के पक्षधर हैं कि सामुद्रिक व्यापार में कोई बाधा नहीं होना चाहिए और इस मसले पर किसी भी तरह के विवाद को अंतरराष्ट्रीय नियमों के अनुसार सुलझाया जाना चाहिए। ज्ञात हो कि दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीयता संबंधी विवाद के मद्देनजर वियतनाम चीनी दादागिरी का विरोध कर रहा है। चीन दक्षिण चीन सागर में आवाजाही पर नियंत्रण चाहता है। इधर वियतनाम के प्रधानमंत्री ने भी कहा कि उनका देश भारत के जहाजों को अपने यहां आने का निमंत्रण देना जारी रखेगा। उल्लेखनीय है कि लगभग एक महीना पहले वियतनाम पोर्ट जा रहे नेवी वारफेयर आईएनएस एरावत को चीन ने अपने जलक्षेत्र से बाहर जाने को कहा था। कुल मिलाकर भारत और वियतनाम के बीच संबंधों में आई इस हालिया गति से चीन परेशान दिख रहा है और इसे चुनौती की तरह ले रहा है। भारत व चीन के बीच सीमा विवाद पहले से कायम है, बीच-बीच में सेना की घुसपैठ की खबरें आती रहती हैं, चीन पाकिस्तान को सामरिक सहयोग देता है, लेकिन भारत का बहुत सा कार्य-व्यापार चीन के जरिए ही संपन्न हो रहा है। ऐसे में भारत-वियतनाम के बीच बढ़ते सैन्य संबंधों का असर चीन के साथ रिश्तों पर कैसे पड़ता है, यह देखने वाली बात होगी।

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