• नरेन्द्र मोदी से कौन डर रहा है?

    इस तरह ऐसा लग रहा है कि भारत की भावी सरकार विदेशनीति के क्षेत्र में जिस गम्भीर समस्या का सामना कर सकती थी, वह समस्या अब दूर हो गई है। ...

    लंदन  ! जैसाकि ब्रितानियाई अख़बार ’डेली टेलिग्राफ़’ ने सूचना दी है पाकिस्तान के उच्चस्तरीय राजनयिकों ने बताया है कि उन्हें भारत में हो रहे संसदीय चुनाव में न केवल नरेन्द्र मोदी की जीत होने की आशा है, बल्कि वे यह भी मानते हैं कि दुपक्षीय समस्याओं पर व्यापक बातचीत करने के लिए भी मोदी बहुत अच्छे रहेंगे।इस तरह ऐसा लग रहा है कि भारत की भावी सरकार विदेशनीति के क्षेत्र में जिस गम्भीर समस्या का सामना कर सकती थी, वह समस्या अब दूर हो गई है। लेकिन पाकिस्तान का मूड बदल जाने का मतलब यह नहीं है कि दुनिया में सभी ने इस बात को स्वीकार लिया है कि मोदी भारत के भावी प्रधानमन्त्री बन सकते हैं।समाचारपत्र " डेली टेलिग्राफ़’ को पिछले महीने ही पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री के राष्ट्रीय सुरक्षा और विदेशनीति सलाहकार सरताज अज़ीज़ ने यह बात बताई थी कि पाकिस्तान की सरकार नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने से चिन्तित नहीं है। और सरताज अज़ीज़ को पाकिस्तान का विदेशमन्त्री माना जा सकता है क्योंकि पाकिस्तान में विदेश विभाग प्रधानमन्त्री नवाज़ शरीफ़ के ही पास है। अब फिर पाकिस्तान के किन्हीं अज्ञात उच्चस्तरीय राजनयिकों ने अख़बार से यह बात कही है कि पाकिस्तान की नज़र में मोदी ही प्रधानमन्त्री पद के लिए सबसे उपयुक्त व्यक्ति हैं। रेडियो रूस के विशेषज्ञ और रूस के सामरिक अध्ययन संस्थान के एक विद्वान बरीस वलख़ोन्स्की ने इस सिलसिले में टिप्पणी करते हुए कहा :पाकिस्तानी राजनयिकों का तर्क सीधा-सा है कि मोदी एक ताक़तवर नेता हैं और वे विश्वसनीय ढंग से ऐसी बातचीत कर सकते हैं, जिसके बाद खाली घोषणाएँ नहीं होंगी, बल्कि दो देशों के बीच तनाव घटाने के लिए वास्तविक क़दम उठाना भी सम्भव होगा। यही नहीं, विगत मार्च में ’डेली टेलिग्राफ़’ को इण्टरव्यू देते हुए सरताज अज़ीज़ ने वह पुराना अनुभव भी याद दिलाया था, जब भारतीय जनता पार्टी के ही प्रधानमन्त्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ दो देशों के रिश्तों को बहुत ज़्यादा बेहतर करना सम्भव हुआ था।तो ऐसा लग रहा है कि मोदी के प्रधानमन्त्री बनने के बाद अपने पड़ोसियों के साथ भारत के भावी रिश्तों में जो सबसे बड़ा ख़तरा दिखाई दे रहा था, वह दूर हो गया है। लेकिन आश्चर्य की बात तो यह है कि एक और तथ्य की तरफ़ ध्यान नहीं दिया जा रहा है, जिसे लेकर न सिर्फ़ पश्चिम के प्रभावशाली क्षेत्र, बल्कि भारत में भी बड़ी बेचैनी बनी हुई है।मोदी के सिलसिले में पाकिस्तानी राजनयिकों के नज़रिए में आए बदलाव की चर्चा करते हुए उसी ’डेली टेलिग्राफ़’ समाचारपत्र ने भी लेख के शुरू में लिखी गई प्रस्तावना में इस तथ्य की याद दिलाई थी कि सन 2002 में गुजरात में हुए मुस्लिम नरसंहार से भी मोदी का नाम जुड़ा हुआ है। अख़बार ने लिखा था कि इस्लामाबाद का मानना है कि सन 2002 में 700 से ज़्यादा मुसलमानों की हत्या का दोषी एक ताक़तवर नेता है, जिसके साथ शान्ति स्थापित करने के बारे में बातचीत की जा सकती है। इस तरह शुरू से ही उस बदनाम आदमी के साथ भावी शान्ति वार्ता की बात की जा रही है, जिसपर मानवजाति के विरुद्ध अपराध करने का आरोप लगा हुआ है। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :पश्चिम के कुछ निश्चित क्षेत्रों की भावनाओं को व्यक्त करने वाले अख़बार का यह विचार भी यही सिद्ध करता है कि आज नरेन्द्र मोदी वास्तव में भारत के सबसे ताक़तवर नेता हैं। लेकिन यदि भारत के पुराने दुश्मन पाकिस्तान के लिए मोदी की ताक़त इस बात में व्यक्त होती है कि उनके साथ विश्वसनीय बातचीत की जा सकती है तो पश्चिम के लिए मोदी के शासनकाल में भारत की स्वतन्त्र नीतियों का मतलब होगा कि कम से कम पाँच साल के लिए एशिया में पश्चिमी नीति के ’विश्वसनीय एजेण्ट’ के रूप में भारत से विदाई।इस पृष्ठभूमि में भारत के उदार मीडिया द्वारा मतदाताओं के सामने मोदी की छवि को धूमिल करने का प्रयास देखकर ज़रा भी आश्चर्य नहीं होता है। नरेन्द्र मोदी की पार्टी को राष्ट्रवादी और साम्प्रदायिक बताते हुए यह उदार मीडिया ख़ुद नरेन्द्र मोदी को नरसंहारक बताता है। हालाँकि यह बात भी सच है कि भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता और उससे जुड़े हुए कुछ संगठन भी उन्हें इस तरह की बात करने का मौक़ा देते हैं। जैसे हाल ही में हिन्दू संगठन ’विश्व हिन्दू परिषद’ के एक नेता प्रवीण तोगड़िया ने भारत की जनता से यह अपील की कि वे मुसलमानों को ज़मीन-जायदाद न बेचें। बरीस वलख़ोन्स्की ने कहा :लेकिन यदि कुल मिलाकर स्थिति पर नज़र डाली जाए तो हम देखते हैं कि सभी आरोपों के बावजूद सिर्फ़ नरेन्द्र मोदी ही ऐसे नेता हैं जो भारतीय समाज के धर्म-निरपेक्ष स्वरूप पर ज़ोर दे रहे हैं, जबकि काँग्रेस और उसका समर्थक मीडिया साम्प्रदायिक कार्ड खेलने की कोशिश कर रहा है।हाल ही में एक भारतीय टेलीविजन चैनल पर बोलते हुए नरेन्द्र मोदी ने कार्यक्रम के संचालक को बुरी तरह से डाँटा था, जो यह कोशिश कर रहा था कि मोदी को ’हिन्दू राष्ट्रवादी’ बताया जाए। मोदी ने तब कहा था -- मेरा यह मानना है कि सरकार का सिर्फ़ एक ही धर्म है और वह धर्म है भारत। सरकार के पास सिर्फ़ एक ही धार्मिक पुस्तक है, वह धार्मिक पुस्तक है संविधान और सरकार सिर्फ़ एक ही तरह की वफ़ादारी निभा सकती है, कि वह अपनी जनता के प्रति वफ़ादार हो।चाहे कुछ भी हो, लेकिन नरेन्द्र मोदी के प्रधानमन्त्री बनने की सम्भावना यही दिखाती है कि उनका उद्देश्य यह नहीं है कि आज अपने राजनीतिक विरोधियों पर जीत हासिल की जाए और फिर कल अपने पुराने दुश्मनों से समझौता किया जाए (हालाँकि वे दुश्मन ऐसी बातचीत के लिए तैयार होंगे), बल्कि उनका मुख्य उद्देश्य तो यह है कि अपनी नकारात्मक छवि को तोड़ा जाए, जो उन लोगों ने बनाई है, जो उनके ख़िलाफ़ खुलकर नहीं बोलते, लेकिन इस बात की पूरी-पूरी कोशिश करते हैं कि वास्तविक राजनीतिज्ञ की उनकी छवि को धूमिल किया जा सके।

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