यूं तो जब से केन्द्र में नयी सरकार ने काम संभाला है या यूं कह लें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सत्ता में आए हैं, देश में अजीबोगरीब हलचल मची हुई है। कुछ भाजपा का अतिउत्साह, कुछ मीडिया का अतिशयतापूर्ण बर्ताव, माहौल ऐसा बन गया मानो इससे पहले न इस देश में कोई प्रधानमंत्री बना, न किसी पार्टी ने बहुमत हासिल किया, न केेंद्र के बाद उसी पार्टी ने राज्यों में चुनाव जीता। भाजपा की खुशी, सबकी खुशी बन गई है। प्रधानमंत्री जहां, जिस कार्यक्रम में जा रहे हैं, दूरदर्शन समेत तमाम न्यूज चैनल उसकी लाइव रिपोर्टिंग करते हैं। अपवादस्वरूप एकाध चैनल कोई अलग खबर दिखाते हैं। प्रधानमंत्री के मुखारविंद से निकला कोई भी वचन अनसुना न रह जाए, इसकी कोशिश सबकी रहती है। इसमें देश के कई जरूरी मुद्दे छूटते जा रहे हैं, इसकी फिक्र बहुत कम लोग कर रहे हैं। शिक्षक दिवस पर विद्यार्थियों से बातचीत, जनधन योजना का शुभारंभ, मेक इन इंडिया का ऐलान, मंगल अभियान की सफलता, स्वच्छ भारत अभियान, यहां तक कि भाजपा मुख्यालय में दीपावली के बाद पत्रकारों-संपादकों से अनौपचारिक चर्चा को भी भरपूर कवरेज मिला। हालांकि यहां अनौपचारिक क्या औपचारिक बातचीत के लिए भी स्थान नहींथा। बड़े से बड़ा संपादक और भाजपा मुख्यालय से खबर देने वाले पत्रकारबंधु, सब मोदीजी के प्रफुल्लित चेहरे को देखकर खुश थे, उनके साथ सेल्फी खिंचाने के लिए बेसब्र थे। प्रधानमंंत्री की मीडिया से यह मुलाकात भाईदूज के दिन हुई। उसी शाम मुंबई में मुकेश अंबानी की पत्नी नीता अंबानी, जो भविष्य में अपने सामाजिक कार्यक्रमों के लिए जाने जाएंगी, द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री शामिल हुए। मुंबई के एक सरकारी अस्पताल के नवीनीकरण का कार्य श्रीमती अंबानी ने किया और इसका उद्घाटन पूरी शानो-शौकत से हुआ। प्रधानमंत्री और मुंबई के राज्यपाल के अलावा प्रदेश भाजपा के तमाम बड़े नेता और हिन्दी फिल्म जगत के लगभग सभी बड़े सितारे इसमें शामिल हुए। मंच पर प्रधानमंत्री के स्वागत से पूर्व वंदेमातरम का गान हुआ और राष्ट्रगीत के रूप में स्वीकृत इसके शुरुआती दो पदों के अलावा बाद का पद भी गाया गया, जिसमें मां दुर्गा की स्तुति की गई है। संघ की विचारधारा इस पद को गाने का समर्थन करती है। तो क्या यह माना जाए कि प्रधानमंत्री जिस मंच पर शोभायमान थे, वहां राष्ट्रगीत तो प्रस्तुत हुआ, किंतु संघी मानसिकता का भी ध्यान रखा गया? अस्पताल के उद्घाटन के पहले और बाद में प्रधानमंत्री मोदी जिस गर्मजोशी से मुकेश अंबानी, नीता अंबानी, कोकिला बेन अंबानी, अंबानी दंपती के तीनों बच्चों से मिले, उससे इस परिवार और उद्योग समूह का देश की राजनीति व सत्ता पर रसूख समझना कठिन नहींहै। भाईदूज पर दिल्ली और मुंबई में हुए इन दो बड़े कार्यक्रमों पर मीडिया का भरपूर ध्यान गया, किंतु देश की राजधानी दिल्ली के त्रिलोकपुरी में दीपावली के दिन से जो सांप्रदायिक तनाव छाया, उस की सुध तभी ली गई, जब माहौल काफी बिगड़ गया और पुलिस को यहां कफ्र्यू लगाना पड़ा। इस इलाके में मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सभी हैं। नवरात्रि पर माता की चौकी का आयोजन आमतौर पर यहां होता ही है। लेकिन दशहरे के बाद भी यह क्यों चलता रहा, धर्म के नाम पर किस तरह की हलचलें यहां चल रही थीं, इस पर दिल्ली पुलिस, केेंद्र सरकार यहां तक कि पत्रकारों ने भी संज्ञान लेना आवश्यक नहींसमझा। प्रभात फेरियां पहले भी निकलती रही हैं, लेकिन त्रिलोकपुरी से सटे कुछ इलाकों में यह बाकायदा प्रचार के साथ निकाली गईं। क्या इसका इस तनाव से कोई संबंध है? दीपावली की रात कुछ शराबियों के आपसी झगड़े ने किस तरह सांप्रदायिक तनाव का रूप ले लिया, लोगों पर, पुलिसवालों पर ईंटें फेेंकी गईं, शीशे की बोतलों का भरपूर इस्तेमाल हुआ, ये सब कैसे इस इलाके में इकट्ठा हो गए, इसकी पड़ताल भी की जाना जरूरी है। त्रिलोकपुरी और मयूरविहार फेज़ -1 के बीच से मेट्रो लाइन बन रही है, जिस कारण इस इलाके में जमीन का महंगा होना तय है, क्या सांप्रदायिक तनाव फैलाकर कोई व्यावसायिक मकसद साधा जा रहा है? यह भी पड़ताल का विषय हो सकता है। दिल्ली में फिलहाल कोई सरकार नहींहै और भाजपा सरकार बनाए या नए सिरे से चुनाव हों, इस पर माथापच्ची चल रही है। संभव है यह सांप्रदायिक तनाव राजनीतिक लाभ के लिए भी उत्पन्न किया गया हो। गनीमत रही कि त्रिलोकपुरी का तनाव नियंत्रित हो गया और कोई अप्रिय घटना नहींघटी। अन्यथा ऐसी चिंगारी को भड़का कर तमाशा देखने वाले बहुतेरे हैं। पर इस घटना को खतरे की घंटी की तरह देश को लेना होगा। प्रधानमंत्री, केेंद्र सरकार सब अपनी जिम्मेदारियां निभाएं, नयी घोषणाओं और योजनाओं के साथ-साथ चुनाव में किए गए वादे पूरे करें, इस पर मीडिया और जनता का ध्यान होना चाहिए।