• बहुरंगी दीपकों के साथ दीपावली

    लक्ष्मी की कृपा बरसे, ऐसी मनोकामनाएं जगाते हुए दीपावली का त्योहार अपनी सज-धज और धमाके के साथ फिर आ गया। दीपावली का अर्थ क्या है, कौन सी पौराणिक कथा इसके साथ जुड़ी है, पांच दिनों में कितने भगवानों की, किन-किन मान्यताओं के साथ पूजा की जाती है, दीपावली के साइड इफेक्ट अर्थात इस त्योहार पर अंधविश्वास के नाम से जो बुरे काम किए जाते हैं, उनसे क्या नुकसान हैं, ऐसे कुछ प्रमुख बिंदुओं के साथ मेरा प्रिय त्योहार शीर्षक से निबंध प्राय: हर विद्यार्थी ने लिखा है और अब भी विद्यालयों में ऐसे निबंध लिखे जा रहे हैं। लेकिन अब उनमें कुछ नए बिंदु भी जोडऩे की आवश्यकता है।...

    लक्ष्मी की कृपा बरसे, ऐसी मनोकामनाएं जगाते हुए दीपावली का त्योहार अपनी सज-धज और धमाके के साथ फिर आ गया। दीपावली का अर्थ क्या है, कौन सी पौराणिक कथा इसके साथ जुड़ी है, पांच दिनों में कितने भगवानों की, किन-किन मान्यताओं के साथ पूजा की जाती है, दीपावली के साइड इफेक्ट अर्थात इस त्योहार पर अंधविश्वास के नाम से जो बुरे काम किए जाते हैं, उनसे क्या नुकसान हैं, ऐसे कुछ प्रमुख बिंदुओं के साथ मेरा प्रिय त्योहार शीर्षक से निबंध प्राय: हर विद्यार्थी ने लिखा है और अब भी विद्यालयों में ऐसे निबंध लिखे जा रहे हैं। लेकिन अब उनमें कुछ नए बिंदु भी जोडऩे की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए दीपावली का अर्थ दीपों की कतार से अधिक बिजली से जगमग करते मेड इन चाइना लट्टुओं की लडिय़ों से हो गया है। दीपावली पर हम घरों को तो खूब साफ करते हैं ताकि लक्ष्मी जी इधर ही पधारें, लेकिन सड़कों और वातावरण में कचरे, बारूद के धुएं और धमाके का प्रदूषण करते हैं। हो सकता है भारत में डगमगाती अर्थव्यवस्था का इससे कोई संबंध हो। 2 अक्टूबर से स्वच्छ भारत अभियान खूब सारे विज्ञापनों के साथ चलाया जा रहा है। कई नामी-गिरामी हस्तियां, जिन्हें शायद यह न मालूम हो कि उनके घर में झाड़ू कौन लगाता है, हाथों में दस्ताने पहने बड़े-बड़े झाडुओंंके साथ सड़क की गंदगी साफ करते फोटो खिंचवाती नजर आई हैं। इनमें से अधिकतर लोगों की आंखों पर काला चश्मा चढ़ा होता है, शायद इसलिए कि गंदगी उन्हें अधिक परेशान न करे। नामचीन हस्तियों को सफाई करते देख प्रेरणा मिलनी चाहिए, लेकिन ऐसे दृश्य तब बेहद हास्यास्पद हो जाते हैं, जब वीआईपी के साथ-साथ उनके चमचेनुमा लोग भी बड़े झाडुओं के साथ वहींपर सफाई करते मिलते हैं। कोई उस हस्ती से दूर नहींदिखना चाहता और सबकी झाड़ू वृत्ताकार या कतार में एक साथ चलती है। यो-यो हनी सिंह को लुंगी डांस के बाद एक झाड़ू डांस भी करना चाहिए, बहुत से किरदार इसके लिए मिल जाएंगे। आश्चर्य इस बात का है कि अमूमन हर बात पर फरमान जारी करने वाले देश के वर्तमान कर्ता-धर्ता इस बात पर खामोश हैं। उनका मकसद शायद सफाई का हंगामा खड़ा करना ही है, सूरत बदलना नहीं। अगर देश को सचमुच साफ-सुथरा बनाना है तो इसके लिए सफाई कामगारों को उच्च श्रेणी में लाने की जरूरत है। चुनावी जीत हो या त्योहार का जश्न, बेतहाशा आतिशबाजी पर थोड़ी लगाम कसनी चाहिए। अपनी खुशी का इजहार हवा में बारूदी गंध घोलकर, पक्षियों को डराकर, बीमारों, वृद्धों और नन्हे बच्चों को तंग कर कतई नहींकिया जाना चाहिए। दीपावली पर घरों की सजावट में भी प्लास्टिक ने अतिक्रमण कर लिया है। फूल-मालाएं प्लास्टिक मालाओं में तब्दील हो गई हैं, मिट्टी के दीए, प्लास्टिक के कंदीलों के बोझ में मिट्टी में मिलते जा रहे हैं और उन्हें आकार देने वाले परेशान हैं कि जीवनयापन कैसे करें। क्या मेक इन इंडिया में इनके लिए कोई रिक्त स्थान रखा गया है, जहां इनके काम को सम्मान मिल सके। दीपावली का अवसर रंगोली सजाने, पकवान खाने और दीयों की रौशनी में खुशियां मनाने का है, लेकिन जब आकाश में अंधकार छाने के साथ-साथ धरती पर भी अमावस्या का माहौल बनने लगे तो दीए जलाएंगे, ऐसी योजना बनाने के साथ-साथ रूई की बाती को तेल में भिगोकर जलाने की तैयारी भी होनी चाहिए। अमावस की काली रात, जब धरती का अधिकतर हिस्सा गहन अंधकार में होता है, तब जगमगाते भारत की तस्वीर अंतरिक्ष में पहुंचे उपग्रहों के जरिए देखना बेहद रोमांचक लगता है। दूर की यह चकाचौंध नजदीक पहुंचने पर भी कायम रहे, तभी दीपावली का त्यौहार सार्थक होगा। दीए की लौ एक नजर में सिंदूरी लाल रंग की दिखती है, लेकिन करीब से देखें तो थोड़ी पीली, थोड़ी लाल और भीतर हल्की नीली भी नजर आती है। भारत की विविधता की तरह सुंदर और मनमोहक। ऐसे विविधवर्णी, बहुरंगी, लाखों-लाख टिपटिमाते, झिलमिल करते दीपकों से रौशन दीपावली का त्योहार मनाया जाए, यही शुभकामना है।

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