• मुस्लिम तुष्टीकरण की दौड़ में शामिल राजनाथ

    भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चल ही पड़े. कुर्सी का सवाल है. ...

    बेंगलुरु !  . भाजपा के  राष्ट्रीय अध्यक्ष राजनाथ सिंह भी मुस्लिम तुष्टीकरण की नीति पर चल ही पड़े. कुर्सी का सवाल है. काफी दम है कुर्सी में, कुछ भी करवा सकती है. नीति सिद्धांतों की बात करने वाली भाजपा और इसके मुखिया राजनाथ सिंह अब किस नीति और सिद्धांत का हवाला देंगे. कल राजनाथ लखनऊ में मुस्लिम धर्मगुरुओं से मिले और भाजपा के पक्ष में मतदान का आग्रह किया. आश्वस्त किया कि भाजपा यदि शासन में आई तो मुस्लिम हितों की पूरी रक्षा होगी.राजनाथ सिंह अगर सीधे मुस्लिम समुदाय के आम मतदाताओं से मिलते तो कोई बात नहीं थी. धर्मनिरपेक्ष भारत राष्ट्र में सब का बराबर सम्मान है. जाति, धर्म, मजहब के नाम पर धर्मनिरपेक्षता के दृष्टिगत सामाजिक बंटवारे का कोई स्थान नहीं होता. परंन्तु धर्मगुरूओं से मिल कर राजनाथ सिंह राजनीति के सिवा कौन सा सन्देश देना चाहते हैं?भाजपा देश के मुस्लिम मतदाताओं को क्या इतना बताना ही काफी नहीं समझती कि उसके पास मुख़्तार अब्बास नकवी, शाहनवाज़ हुसैन और एम.जे.अकबर जैसे कद्दावर मुस्लिम नेता प्रमुखता से पार्टी में मौजूद हैं. क्या गारंटी है कि ये सौदेबाजी की राजनीति से कुछ अलग होगी? क्या देश का वर्त्तमान मुस्लिम समाज या अन्य धर्म, समाज के लोग धर्मगुरूओं के कहने मात्र से किसी के पक्ष में मत दे देंगे?क्या राजनाथ सिंह यह बताएँगे कि अब भाजपा और स्वयं राजनाथ सिंह देश की बाकी पार्टियों- कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल या अन्य से कैसे भिन्न है और किस विचारधारा को केंद्र में रख कर देश का मतदाता उन्हें वोट दे.अगर इसी तुष्टीकरण की नीति पर ही चलना है तो बाकि पार्टियों का विरोध आप कैसे कर सकते हैं? भगवान राम के नाम पर देश की जनता का भावनात्मक लगाव पाकर 1980 में गठित भारतीय जनता पार्टी ने 1984 में मात्र 2 सीट से शुरुआत कर 1996 में 161 का आंकड़ा पहुंचा दिया. इतना ही नहीं 1998 और 1999 के उपचुनाव में भाजपा ने अपनी बढ़त को कायम रखते हुए 182 सांसदों की फ़ौज़ खड़ी करने में कामयाब रही. लेकिन तुष्टीकरण की राजनीति की नयी नीति की शुरुआत करने से भाजपा के प्रति आस्था रखने वाले आम मतदाताओं को भाजपा कौन सी मजबूरियां गिनाएगी?देश में लगभग 14 प्रतिशत मुस्लिम  मतदाता हैं. देश की राजनीतिक, सामाजिक और व्यवहारिक परिपेक्ष्य में उनका बराबर सम्मान किया जाना चाहिए परन्तु 14 प्रतिशत के लिए इन राजनीतिक पार्टियों ने अपने मतलब के लिए 86 प्रतिशत को दरकिनार कर दिया, ये सोचनीय विषय है. आप किसी भी धर्म, जाति, मजहब, संप्रदाय के आम मतदाताओं से सीधे संवाद स्थापित करें और उन्हें भरोसा दिलाएं कि शासन और सरकार उनके हित के लिए है, उनके भलाई के लिए काम करेगी, तभी देश की आम जनता का सही मायने में कल्याण होगा वर्ना यही तुष्टीकरण की नीति की राजनीति से अटल बिहारी वाजपेयी की छवि का तमगा लेते रहिये.

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