• परम्परा के नाम पर अव्यवस्था

    सड़कें आवागमन के लिए होती है, बाजार लगाने के लिए नहीं। परम्परा का नाम देकर प्रशासन के उदासीन बने रहने से त्यौहारों के मौसम में यह समस्या अब आम हो गई है। दीपावली के बाजार में निकले लोग महसूस कर सकते हैं कि इस समस्या की उन्हें कैसी कीमत चुकानी पड़ी। सुबह निकले थे और सड़कों पर जाम होने के कारण घर पहुंचने में शाम हो गई। ऐसा अनेक लोगों के साथ हुआ होगा, लेकिन उत्सवी उत्साह में उन्होंने इन अव्यवस्था को परम्परा के नाम पर भुगत लिया। व्यवस्था की निगरानी प्रशासन की जिम्मेदारी होती है और कहीं नियम-कानूनों का उल्लंघन होता है तो उसे कार्रवाई करने का अधिकार है।...

    सड़कें आवागमन के लिए होती है, बाजार लगाने के लिए नहीं। परम्परा का नाम देकर प्रशासन के उदासीन बने रहने से त्यौहारों के मौसम में यह समस्या अब आम हो गई है। दीपावली के बाजार में निकले लोग महसूस कर सकते हैं कि इस समस्या की उन्हें कैसी कीमत चुकानी पड़ी। सुबह निकले थे और सड़कों पर जाम होने के कारण घर पहुंचने में शाम हो गई। ऐसा अनेक लोगों के साथ हुआ होगा, लेकिन उत्सवी उत्साह में उन्होंने इन अव्यवस्था को परम्परा के नाम पर भुगत लिया। व्यवस्था की निगरानी प्रशासन की जिम्मेदारी होती है और कहीं नियम-कानूनों का उल्लंघन होता है तो उसे कार्रवाई करने का अधिकार है। आखिर उत्सव के नाम पर सड़कों पर बाजार लगाने की इजाजत कैसे दी जा सकती है। शायद कोई कोर्ट इस पर संज्ञान ले और प्रशासन को निर्देश दे तब ही कोई कार्रवाई होगी। कभी सड़कों पर इतनी जगह रही होगी जब दुकानदार सड़कों पर दुकान लगा सकते थे, लेकिन आज जब सामान्य दिनों में भी लोगों का चलना मुश्किल हो जाता है तब नियमों की सरेआम धज्जियां उडऩा और प्रशासन का मूकदर्शक बने रहना, आश्चर्यजनक लगता है। चीजें दुकानों में सजाकर रखने से भी बिक सकती हैं, सड़कों पर प्रदर्शित करने की होड़ में लोगों की मुश्किलें बढ़ाकर बाजार-व्यवस्था नहीं चलाई जा सकती। दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसी व्यापारी या संगठन ने इस अव्यवस्था के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा। व्यापारियों को लगता है कि ऐसा करने से बाजार में खरीददारी को बढ़ावा मिलता है पर सच्चाई यही है। भीड़-भाड़ और जाम के कारण ऐसे भी लोग होंगे जिन्होंने बाजार का रुख नहीं किया होगा। छत्तीसगढ़ चेम्बर आफ कामर्स एण्ड इंडस्ट्रीज ने हाल ही में ई-कामर्स का विरोध किया था और सरकार से इस पर रोक लगाने की मांग की थी। चेम्बर यदि सोचे कि आखिर ई-कामर्स का बाजार तेजी से क्यों बढ रहा है तो बाजार की अव्यवस्था और सारी मुनाफाखोरी भी इसका एक बड़ा कारण दिखाई देगा। ई-कामर्स के जरिए लोगों को घर बैठे चीजें मिल रही है, वह भी बाजार से कम कीमत पर। यह बात दीगर है कि उपभोक्ता के लिए कई बार चीजों की खरीदी खुले बाजार की तरह सहज नहीं होती फिर भी लोग ई-कामर्स के जरिए चीजें खरीद रहे हैं। व्यापारी संगठनों को उपभोक्ता हितों पर विचार जरुर करना चाहिए। बाजार-व्यवस्था को भी इससे अलग करके नहीं देखा जा सकता। उन्हें स्वयं यह पहल करना चाहिए कि लोग सड़कों पर दुकानें न लगाएं। एक विकल्प यह भी हो सकता है कि त्यौहारों के समय उपभोक्ता उत्पादों की बिक्री के लिए अलग-अलग मेले लगाएं जाएं। बाजारों में भीड़ का आलम देखकर तो लगता है कि बाजार-व्यवस्था पर नहीं सोचा गया तो आगे चलकर यह समस्या काफी गंभीर हो सकती है।

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