घर-घर पहुंच रहा आतंकवादियों का संदेश, चुनाव प्रचार प्रभावित मतदान को लेकर डोडा के लोगों में खौफ प्रत्याशी भी नहीं कर पा रहे चुनाव प्रचारडोडा /जम्मू कश्मीर ! जिस उधमपुर-कइुआ-डोडा संसदीय क्षेत्र में 17 अप्रैल को मतदान होने जा रहा है उसके एक हिस्से, बारह हजार वर्ग किमी क्षेत्रफल में फैले इस जिले में चुनावी प्रचार की दास्तानें भी अजीब हैं। अगर सुरक्षाबल पूरे जिले में नहीं फैल पाए हैं तो प्रत्याशी भी सारे जिले को कवर नहीं कर पाए हैं लेकिन इतना जरूर है कि आतंकी घर-घर जाकर अपना चुनाव विरोधी प्रचार धमकियों समेत कर रहे हैं।यही कारण है कि मतदान में हिस्सा लेने पर अंग-भंग कर देने की उनकी धमकी के बाद डोडा की जनता प्रलय दिवस के बीतने की प्रतीक्षा कर रही है। प्रचार का मंगलवार को अंतिम दिन था। बावजूद इसके पूरे जिले में प्रचार कर पाना सभी प्रत्याशियों के लिए कठिन साबित हुआ। आतंकी धमकी और हमलों के चलते जहां प्रत्याशियों ने जिले के कई महत्वपूर्ण हिस्सों का दौरा न करना मुनासिब समझा वहीं सुरक्षाधिकारियों ने भी उन्हें ऐसा करने की सलाह दी थी। प्रत्याशी तो आतंकी कहर से बच गए लेकिन मतदाताओं को कौन बचाएगा। आतंकवादग्रस्त इलाकों में घर-घर जाकर लोगों को प्रतिदिन चेतावनी देने का सिलसिला अभी थमा नहीं हैं। 'वे (आतंकवादी) कहते हैं मतदान के दिन शाम को वे सभी के हाथों को जांचेंगे। जिस किसी की अंगुली पर स्याही दिखी तो उसका हाथ काट दिया जाएगा। आतंकी धमकी का प्रभाव सिर्फ यही नहीं है। जिले के महत्वपूर्ण कस्बों को छोड़ कहीं कोई चुनावी सभा नहीं हुई। न ही ऐसे इलाकों मेंं कहीं किसी पार्टी का झंडा, पोस्टर या फि र बैनर नजर नहीं आया है। चौंकाने वाला तथ्य यह है कि पार्टियों के कट्टर समर्थकों ने भी अपने घरों पर पार्टी का झंडा लगाने या फिर दीवारों पर बैनर लिखने से मना कर दिया। ऐसा आतंकवादियों की ओर से जारी अंगभंग करने तथा मतदान में हिस्सा लेने वाले को बतौर सजा मौत देने की चेतावनी व धमकी के कारण है। नतीजतन डोडा की दहशतजदा जनता को प्रलय दिवस अर्थात मतदान के दिन की बीतने की प्रतीक्षा है। उन्हें बस चिंता इस बात की है कि किसी प्रकार 17 अप्रैल का दिन बीत जाए ताकि उनके सिरों पर से आतंकी खतरा कुछ हद तक टल सके हालांकि सरकारी तौर पर सुरक्षाबलों को मतदाताओं की सुरक्षा के लिए तैनात किया गया है। हजारों की संख्या में तैनात सुरक्षाबलों के प्रति रोचक तथ्य यह है कि सारे जिले में उनकी तैनाती सिर्फ कागजों पर है तो मतदान के संपन्न होने के बाद लोगों को सुरक्षा कौन मुहैया करवाएगा का जवाब नहीं है।