चार साल पहले धौलाकुआं में हुए सामूहिक बलात्कार कांड में अदालत ने पांचों दोषियों को उम्रकैद की सजा सुनाई है। विगत 14 अक्टूबर को ही इस मामले में पांच लोगों पर आरोप तय कर उन्हें दोषी करार दिया गया था। निर्भया कांड के बाद से देश में बलात्कार संबंधी मामलों पर समाज का आक्रोश खुलकर सामने आने लगा है और लोग चाहते हैं कि ऐसे अपराधियों को कड़े से कड़ा दंड मिले। अफसोस इस बात का है कि निर्भया कांड के पहले भी बलात्कार के जघन्य अपराध होते रहे हैं और अब भी हो रहे हैं। 23-24 नवंबर 2010 को धौलाकुआं गैंगरेप मामला घटित हुआ। जैसा कि नैतिकता के तथाकथित पहरुए लड़कियों के लिए ये करें और ये न करें के दिशानिर्देश जारी करते हैं, अगर एक पल के लिए उन मानदंडों पर पीडि़ता को परखें, तो पता चलता है कि न उसने अश्लील कपड़े पहन रखे थे, न वह किसी पुरुष मित्र के साथ सार्वजनिक स्थल पर घूम रही थी, न उसने किसी प्रकार के नशे का सेवन किया था, न वह सड़क पर मटरगश्ती कर रही थी, फिर भी उसके साथ यह जघन्य अपराध हुआ। उसकी गलती बस इतनी थी कि वह घर की देहरी से निकल कर एक दूसरे प्रदेश में आजीविका कमा रही थी। गुडग़ांव के जिस बीपीओ में वह काम करती थी, उसकी गाड़ी ने उसे घर के सामने न उतार कर नजदीक ही उतारा था। वह अकेली नहींथी, साथ में उसकी सहकर्मी भी थी। आमतौर पर हमारी धारणा यही रहती है कि एक से भले दो। दो लड़कियों के साथ होने से खतरा नहींहोगा। लेकिन जिस समाज में शराब पीकर, रात को सड़कों पर आवारागर्दी करने वाले लड़कों के लिए कोई मनाही या सामाजिक दंड नहींहै, वहां लड़कियां कभी महफूज रह ही नहींसकतीं। इस कांड के पांचों आरोपियों ने शराब पीकर कुछ और मस्ती करने की इच्छा से बीपीओ की गाड़ी का पीछा किया, क्योंकि उन्हें दिख गया था कि उसमें लड़कियां बैठी हैं। सड़क पर दोनों लड़कियों को इन लोगों ने पकडऩा चाहा, उनमें से एक मदद के लिए चिल्लाती रिहायशी इलाके की ओर भागी, लेकिन दूसरी के सिर पर बंदूक तान कर उसे जबरदस्ती गाड़ी में बिठा लिया गया। फिर सामूहिक बलात्कार के बाद उसे एक सुनसान इलाके में छोड़ दिया। गनीमत थी कि लड़की जिंदा बच गई और बची रह गई उसकी हिम्मत। उसने पुलिस में रिपोर्ट लिखाने से लेकर अपनी आपबीती सुनाने, बलात्कारियों को पहचानने, साक्ष्य जुटाने में मदद करने में अभूतपूर्व हौसला दिखाया। इस वजह से ही आज पांचों आरोपी सलाखों के पीछे हैं। जब उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई जा रही थी तो उनमें से कोई रोने लगा, कोई बेहोश होकर गिर पड़ा। काश अपनी सजा की घबराहट के साथ-साथ उन्हें बलात्कार की पीड़ा क्या होती है, इसका थोड़ा अहसास भी होता, बलात्कार पीडि़ता की चीखें उनके ही कानों में तो पड़ रही होंगी। उनके वकील ने दया का अनुरोध करते हुए कहा कि दोषी युवा हैं और चार साल तक सुनवाई के दौरान मानसिक पीड़ा सह चुके हैं। लेकिन जो दर्द पीडि़ता ने भुगता है और जिस शारीरिक व मानसिक संताप को उसने सहा है, उसके सामने चार साल की अदालती प्रक्रिया की तकलीफ कुछ भी नहींहै। बलात्कार के अपराध के लिए कठोरतम दंड दिया जाना चाहिए, बिना किसी दया के। इसके अलावा समाज को भी अपने रवैये में परिवर्तन करना होगा। बलात्कार पीडि़ता के साथ सहानुभूति तो ठीक है, लेकिन उसे मानसिक संबल देने और यह अहसास कराने की आवश्यकता है कि इस अपराध में वह बिल्कुल निर्दोष है और उसकी जिंदगी इसके बाद भी सामान्य चल सकती है। समाज में बलात्कार पीडि़ता को ससम्मान अपनाने की प्रवृत्ति बढ़ानी होगी। लड़के किन लोगों के बीच उठ-बैठ रहे हैं, क्या कर रहे हैं, कहां आ-जा रहे हैं, अगर इसकी पूछ-परख घर के लोग करने लगें तो भी शायद ऐसी घटनाओं पर थोड़ी रोक लग सके।