भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की मुलाकात पर समूचे देश की निगाहें टिकी थीं। एक अरसे बाद किसी भारतीय प्रधानमंत्री के अमरीका दौरे को लेकर इतनी चर्चा, उत्सुकता और गहमागहमी का माहौल रहा। दूरदर्शन समेत तमाम टीवी चैनलों और न्यूज एजेंसियों ने श्री मोदी के अमरीका दौरे की पल-पल की खबर दी, साथ ही विश्लेषणात्मक ब्यौरा भी लगातार प्रस्तुत किया। नरेन्द्र मोदी अपने देश के मीडिया की प्रवृत्ति से भली-भांति परिचित हैं, अमरीकी सरकार ने भी संभवत: इसका पूरा संज्ञान लिया और शायद इसलिए ही वाशिंगटन पोस्ट अखबार में बराक ओबामा व नरेन्द्र मोदी का साझा संपादकीय प्रकाशित हुआ। दोनों नेताओं की शीर्ष मुलाकात के पहले प्रकाशित इस अग्रलेख में अमूमन वही सारी बातें थींजो उनके बीच चर्चा का विषय बनने वाली थीं। भारत और अमरीका के ऐतिहासिक, व्यापारिक, राजनैतिक संबंधों का उल्लेख हुआ और स्वामी विवेकानंद, महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग का जिक्र भी स्वाभाविक तौर पर हुआ ही। इन महापुरुषों के विचारों, आदर्शों, जीवन-मूल्यों, मानवता के प्रति इनके व्यापक दृष्टिकोण को भले ही अपनाया नहीं जा रहा, लेकिन इनके उल्लेख के बिना राजनीति में गुजारा भी नहींहै। बहरहाल, इस संपादकीय से मोदी-ओबामा मुलाकात की झलक मिल गई। यूं व्हाइट हाउस में जब बराक ओबामा ने केम छो कहकर श्री मोदी का स्वागत किया, तभी इस बात का अहसास हो गया था कि अमरीका भारत से संबंधों की नए ढंग से शुरुआत करना चाहता है। दरअसल यूपीए के दूसरे कार्यकाल में अमरीका-भारत के संबंधों में ठहराव सा आ गया था और देवयानी खोब्रागड़े प्रकरण के बाद तो थोड़ी कटुता भी आ गई। इस बीच भारत की राजनीतिक परिस्थितियां बदलींऔर ओबामा भी अपने देश की आंतरिक उलझनों में उलझे रहे। अफगानिस्तान, इराक जैसे देशों सहित विश्व के कई हिस्सों में जरूरत से ज्यादा दखलंदाजी करने का नुकसान भी अमरीका को उठाना पड़ा और जनता के बीच यह मत प्रबल होता गया कि अमरीका को हर जगह उपस्थित होने से बचना चाहिए। इसलिए आईएस के खिलाफ अमरीका अकेले नहीं विश्व समुदाय को साथ लेकर उतरना चाहता है। संरा में ओबामा के भाषण से यह बात स्पष्ट हो गई। रही बात भारत के साथ संबंधों की, तो अब उसमें अमरीका भी नया जोश भरना चाहता है, यह बात साफ दिखी। दो घंटों की मुलाकात में ओबामा व मोदी के बीच व्यापारिक, आर्थिक, सामरिक, रणनीतिक तमाम पहलुओं पर चर्चा हुई। इसके बाद प्रस्तावित कार्यक्रम से अलग हटकर बराक ओबामा, नरेन्द्र मोदी को मार्टिन लूथर किंग मेमोरियल में स्वयं जिस तरह से घुमा रहे थे, वहां का वर्णन कर रहे थे और श्री मोदी भी उत्फुल्ल मुद्रा में उनसे चर्चा कर रहे थे, इससे यह जाहिर हो गया कि उनके बीच बातचीत में ऐसा कोई मुद्दा नहींउभरा जो तनाव भरा हो। दोनों देशों की ओर से साझा बयान जारी करने के वक्त भी यही एहसास हुआ। नरेन्द्र मोदी के वाकचातुर्य को भारतीय जनता जानती है, अब बराक ओबामा भी इससे परिचित हो गए। हम कुछ दिनों पहले मंगल पर मिले हैं और अब पृथ्वी पर मिल रहे हैं, नरेन्द्र मोदी के इस वाक्य पर बराक ओबामा के चेहरे पर एक अनौपचारिक व स्वाभाविक मुस्कुराहट उभरी, जो आमतौर पर संजीदगी से भरी राजनयिक वार्ता में देखने नहींमिलती। जैसा कि अनुमान था भारत और अमरीका ने व्यापार, रक्षा, तकनीकी, विज्ञान हर क्षेत्र में आपसी संबंधों को बढ़ाने की प्रतिबद्धता दर्शाई। आतंकवाद वैश्विक समस्या बन चुका है और इस पर भी दोनों देशों ने मिलकर काम करने, आतंकवाद को खत्म करने की बात की। अमरीका अफगानिस्तान से अपनी सेनाएं हटा रहा है और चाहता है कि भारत वहां पर अधिक सक्रिय हो, यह नजर आया। किंतु पाकिस्तान में आतंकियों को जो पनाह मिली है, उसके खिलाफ वह कौन सा कदम उठाएगा, इस पर बात नहींहुई। दाऊद इब्राहिम को भारत भेजने का दबाव वह डालेगा, यह चर्चा अवश्य हुई, लेकिन मुंबई हमलों के आरोपी डेविड हेडली और तहव्वुर राणा जो अमरीका में ही है, उन्हें वह भारत को सौंपेगा या नहीं, इसका कोई जिक्र नहींहुआ। स्मार्ट सिटी, नेशनल डिफेेंस यूनिवर्सिटी, पेयजल, शौचालय की व्यवस्था में अमरीकी सहयोग, न्यूक्लियर्स सप्लायर्स ग्रुप में भारत को शामिल करने, असैन्य परमाणु समझौते को लागू करने जैसी कई अच्छी बातों पर दोनों देशों के बीच सहमति बनी। किंतु विश्व व्यापार संगठन में जारी गतिरोध को दूर करने के लिए चर्चा करने के आश्वासन के अतिरिक्त कुछ नहींहुआ। कुल मिलाकर यह नजर आ रहा है कि आर्थिक मंदी के बाद अमरीका अपनी स्थिति सुधारने के लिए भारत को इस्तेमाल करना चाहता है और भारत भी अपने व्यापार को गति देने के लिए अमरीका का साथ चाहता है। इसलिए फिलहाल सब अच्छा-अच्छा नजर आ रहा है। आगे भी यह अच्छाई जारी रहे इसके लिए आवश्यक है कि भारत किसी भी तरह से अमरीका के दबाव में न आए और अपने हितों के खिलाफ कोई समझौता न करे। एनडीए के पहले प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने अमरीका को भारत का स्वाभाविक मित्र बताया था, लेकिन ऐसा बिल्कुल नहींहै। अमरीका का स्वार्थ समय-समय पर जाहिर होता रहा है, भारत उसे पहचाने और फंूक-फूंक कर कदम आगे बढ़ाए।