• नक्सल मोर्चे पर महत्वपूर्ण सफलता

    अब इसे सुरक्षा बलों का दबाव कहें या सक्रिय नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में लाने की सरकार की नई पुनर्वास नीति का असर, नक्सलियों के लगातार आत्मसमर्पण की खबरें शंाति और सुरक्षा की दृष्टिï से किए जा रहे प्रयासों की सफलता का संकेत देती हैं। पिछले कुछ महीनों के भीतर कई नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। सरकार ने जो नई पुनर्वास नीति घोषित की है उसमें ये नक्सली समाज में आत्मनिर्भर होकर नया जीवन शुरु कर सकते हैं। ...

    अब इसे सुरक्षा बलों का दबाव कहें या सक्रिय नक्सलियों को समाज की मुख्यधारा में लाने की सरकार की नई पुनर्वास नीति का असर, नक्सलियों के लगातार आत्मसमर्पण की खबरें शंाति और सुरक्षा की दृष्टिï से किए जा रहे प्रयासों की सफलता का संकेत देती हैं। पिछले कुछ महीनों के भीतर कई नक्सली आत्मसमर्पण कर चुके हैं। सरकार ने जो नई पुनर्वास नीति घोषित की है उसमें ये नक्सली समाज में आत्मनिर्भर होकर नया जीवन शुरु कर सकते हैं। यह संतोष की बात है कि बस्तर में नक्सली हिंसा की कोई बड़ी वारदात नहीं हुई। इसका अर्थ यह नही है कि नक्सलियों ने पूरी तरह हथियार डाल दिए हैं, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि सरकार के प्रयासों से समस्या के उन्मूलन के लिए शांति और सुरक्षा के प्रति विश्वास बढ़ाने में मदद जरुर मिली हैं। आईजी एसआरपी कल्लुरी नक्सल प्रभावित क्षेत्र में एसपी के रुप में काम कर चुके हैं। सरगुजा में नक्सली समस्या से निपटने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। नक्सली हिंसा की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सरकार ने बलरामपुर को नया पुलिस किला बनाते हुए उन्हें वहां एसपी के रुप के पदस्थ किया था। वहां की परिस्थितियां तब काफी चुनौतीपूर्ण थी। पग-पग पर पुलिस के लिए खतरा बना हुआ था क्योंकि तब वहां अच्छी सड़कें तक नहीं थीं। उनके काम करने के तरीके पर हालांकि कुछ असहमतियां भी सामने आईं पर आज वहां ऐसे लोगों की भी कमी नहीं है, जो उनके काम की तारीफ करने से नहीं चूकते। उन्होंने सूचनाओं का एक नया तंत्र विकसित किया और पड़ोसी राज्यों की पुलिस से मदद लेकर नक्सली समस्या के उन्मूलन के लिए चौतरफा अभियान चलाया। इसमें विशेष पुलिस अधिकारी के रुप में स्थानीय लोगों को शामिल करना भी शामिल था। कई बड़े नक्सली पुलिस के जाल में फंसते गए। कइयों ने आत्मसमर्पण कर दिया तो कई मुठभेड़ों में मारे गए। लगभग एक दशक होने को हैं, सरगुजा में शांति है और बचे हुए नक्सली इलाका छोड़ चुके हैं। यदाकदा उनके आमदाफ्त की खबरें जरुर आती हैं, लेकिन वे कोई योजनाबद्घ हिंसक वारदात नहीं कर सके हैं। बस्तर में श्री कल्लुरी के नेतृत्व में पुलिस उसी तरह का अभियान चला रही है। राज्य प्रशासन का भी मानना है कि नक्सली अब तक के सबसे कमजोर स्थिति में है और दबाव बढ़ाकर नक्सली समस्या से बस्तर को मुक्त करने के प्रयासों को अंजाम तक पहुंचाया जा सकता है। यह बात दीगर है कि सरगुजा और बस्तर की भौगोलिक परिस्थितियां एक जैसी नहीं है। वनों से घिरे बस्तर के विस्तृत भू-भाग की निगरानी आसान नहीं हैं। यह स्थानीय लोगों की मदद के बिना संभव नहीं हो सकती। नक्सलियों के आए दिन आत्मसमर्पण करने की घटनाएं बताती है कि पुलिस को लोगों का पूरा सहयोग मिल रहा है। बस्तर को नक्सली हिंसा से  उबार लेने की कोशिशें जनसहयोग से ही सफल हो सकती हैं।

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