• जबान की फिसलन

    नरेन्द्र मोदी नाम की लहर इस वक्त अमरीका में वैसे ही बह रही है, जैसे कुछ महीनों पहले भारत में आम चुनावों के वक्त बह रही थी। पहले अमरीका ने किया अपमान, अब करेगा सम्मान। मोदी एट मैडिसन। राक स्टार मोदी। अमरीका में नमो-नमो। संरा में मोदी का हिंदी में भाषण। न्यूयार्क में अंग्रेजी में बोलकर मन मोह लिया मोदी ने। इस तरह के प्रशंसात्मक और कई बार चाटुकारिता की हद को पार करने वाले शीर्षक, खबरें और टिप्पणियां पिछले तीन दिनों से देखने-सुनने मिल रही हैं। ...

    नरेन्द्र मोदी नाम की लहर इस वक्त अमरीका में वैसे ही बह रही है, जैसे कुछ महीनों पहले भारत में आम चुनावों के वक्त बह रही थी। पहले अमरीका ने किया अपमान, अब करेगा सम्मान। मोदी एट मैडिसन। राक स्टार मोदी। अमरीका में नमो-नमो। संरा में मोदी का हिंदी में भाषण। न्यूयार्क में अंग्रेजी में बोलकर मन मोह लिया मोदी ने। इस तरह के प्रशंसात्मक और कई बार चाटुकारिता की हद को पार करने वाले शीर्षक, खबरें और टिप्पणियां पिछले तीन दिनों से देखने-सुनने मिल रही हैं। मोदी की अमरीका यात्रा किसी भी अन्य भारतीय राष्ट्राध्यक्ष की यात्रा से कहींज्यादा सफल और चैनलों की भाषा में कहें तो सुपर-डुपर हिट हो रही है, यह लगातार साबित किया जा रहा है। फिलहाल जो दिख रहा है, उससे यह बात सच भी लगती है। मैडिसन स्क्वेयर पर मोदी को सुनने के लिए 18 हजार लोगों की भीड़ एकत्र थी और बाहर भी अच्छी-खासी तादाद अनिवासी भारतीयों की थी। नरेन्द्र मोदी जहां भी जा रहे हैं, वहां उनके स्वागत के नारे लग रहे हैं। ऐसा स्वागत सचमुच अनिवासी भारतीयों ने अपने किसी नेता का नहींकिया। चूंकि जमाना इंटरनेट और टीवी चैनलों का है, इसलिए पल-पल की खबर दी जा रही है। जब नेहरू जी या इंदिरा गांधी बतौर प्रधानमंत्री अमरीका यात्रा पर गए, तो उनके दौरे की पल-पल रिपोर्टिंग प्रसारित, प्रकाशित नहींहुई, न ही उसे लेकर अतिशयता का कोई माहौल तैयार किया गया। इंदिरा गांधी चूंकि आंख से आंख मिलाकर (मोदी की भाषा में) बात करने वालों में थींऔर अमरीका के अनुचित दबाव उन्होंने कभी बर्दाश्त नहींकिए, इसलिए उनके अमरीकी समकक्षों ने अपने तरीके से उसकी आलोचना भी की, जो पिछले कुछ सालों में उजागर हुए दस्तावेजों से जाहिर हुई है। भारत के पहले प्रधानमंत्री प.जवाहरलाल नेहरू को 1949 में अमरीकी राष्ट्रपति हैरी एस.ट्रूमैन ने अपने देश आमंत्रित किया था और जब नेहरूजी अमरीका पहुंचे तो विमानतल पर स्वयं राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के साथ उनके स्वागत के लिए उपस्थित थे। क्या इसके बाद किसी भारतीय राष्ट्राध्यक्ष की अगवानी इस तरह समूचे अमरीकी मंत्रिमंडल ने राष्ट्रपति के साथ की? बहरहाल, किस भारतीय प्रधानमंत्री का कैसा स्वागत हुआ और कैसा नहीं, यह कोई प्रतिष्ठा का प्रश्न नहींहै। असली सवाल यह है कि अमरीका और भारत के रिश्ते किस प्रधानमंत्री के काल में कैसे रहे? इतिहास सबके सामने है और उसका मूल्यांकन होता रहेगा। अब प्रधानमंत्री मोदी के कार्यकाल में अमरीका और भारत के संबंध किस तरह आगे बढ़ते हैं, सबका ध्यान इस पर होना चाहिए। यूं श्री मोदी ने अपने भाषणों और वक्तव्यों से यही संकेत अब तक दिए हैं कि वे किसी भी अनुचित दबाव को बर्दाश्त नहींकरेंगे। उनका सर्वाधिक जोर व्यापारिक, आर्थिक विकास पर है, इसलिए व्यापारिक समुदाय को आकर्षित करने का हर संभव प्रयास उनकी ओर से नजर आ रहा है। भारत में मेक इन इंडिया अभियान, उसके पहले जापान की यात्रा और अब अमरीकी दौरे में उन्होंने भारत में निवेश को बढ़ावा देने, नियमों को लचीला बनाने और उद्योगपतियों को अधिकाधिक सुविधाएं मिलें, इस पर बल दिया। रही बात मोदी जी के भाषणों की, तो वे अमरीका में बोले बहुत कुछ, पर उसमें खास उल्लेखनीय कुछ भी नहींहै। मैडिसन स्क्वेयर पर अपने तथाकथित ऐतिहासिक भाषण में उन्होंने वही सब बातें कहींजो हालिया इतिहास में वे बोल चुके हैं। राजीव गांधी के 21वींसदी वाले जुमले को वे बखूबी भुना गए, इसी तरह हम सांप को नहींमाउस को नचाते हैं, यह बात उन्होंने दिल्ली में छात्रों को संबोधित करते हुए भी कही थी। वैसे मोदी जी के प्रशंसक यह भी याद रखें कि भारत में कम्प्यूटर की क्रांति राजीव गांधी के प्रयासों से ही हुई। चुनावों में अपनी भारी जीत का उल्लेख नरेन्द्र मोदी ने किया, उससे यही लगा कि वे जीत की खुमारी से अभी उबरे नहींहैं, बस अच्छे दिन आने वाले हैं, नारे नहींलगे, बाकी सब चुनावी रैली की ही तरह था। पिछली सरकारों को कोसने का काम इस मंच से भी श्री मोदी ने किया और कहा कि वे कानून बनाती थीं, मैं उन्हें मिटाने का काम कर रहा हूं, तो क्या भारत में कानून का राज खत्म हो और अराजकता फैले? मैडिसन स्क्वेयर के मंच से मोदीजी ने जो महाभूल की और जिस पर कहींचर्चा नहींहुई, वह है महात्मा गांधी का नाम गलत बोलना। उन्होंने एम.के.गांधी का पूरा नाम मोहनलाल करमचंद गांधी कहा। क्या भारत के प्रधानमंत्री से ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि वह राष्ट्रपिता का नाम गलत ले। संयुक्त राष्ट्र के मंच से भी अपने ऐतिहासिक हिंदी भाषण में उन्होंने कई  गलतियां की।  उन्हत्तरवें को सिक्स्टीनाइन्थवे कहा, 6 दशक को 60 दशक कहा, एक दशमलव दो पांच को एक दशमलव पच्चीस कहा। दरअसल, ऐसे मौकों पर लिखित भाषण देना बेहतर होता, लेकिन मोदीजी अपनी वाचा पर जरूरत से ज्यादा विश्वास कर बैठते हैं। पाकिस्तान को दो टूक जवाब देना, संरा में सभी देशों को साथ मिलकर काम करना, दुनिया से गरीबी मिटाना, आतंकवाद का मिलकर खात्मा करना, ऐसी बातें तो ठीक हैं, लेकिन भाषण देते-देते मोदीजी भूल गए कि वे चुनावी सभा में नहींहैं, न ही शिक्षक दिवस पर विद्यार्थियों को संबोधित कर रहे हैं, वे इस सभा में पधारे वैश्विक प्रतिनिधियों को समझाने के अंदाज में कहने लगे कि हमें संरा के 70 साल पूरा होने पर क्या करना चाहिए, उसके 80 साल पूरे होने का इंतजार नहींकरना चाहिए, आदि। कुल मिलाकर अपने भाषणों से भारत की जनता को मोदीजी ने भले प्रभावित किया हो, वैश्विक पटल पर उसका खास प्रभाव पड़ा हो, ऐसा नहींलगता। अब देखना यह है कि बराक ओबामा से वे किस अंदाज में मिलते और बात करते हैं।

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