• हमारी जैव विविधता

    हमारा छत्तीसगढ़ जैव विविधता के मामले में भी बेहद समृद्घ राज्य है। धान का कटोरा कहा जाने वाला यह राज्य सिर्फ उत्पादन की दृष्टिï से ही इस संज्ञा का हकदार नहीं है, बल्कि यहां धान की ऐसी-ऐसी किस्मों की खेती होती रही है, जो दुनिया में और कहीं नहीं पाई जाती। इस विविधता पर हमेशा से छत्तीसगढ़ पर दुनिया की नजर रही है। ...

    हमारा छत्तीसगढ़ जैव विविधता के मामले में भी बेहद समृद्घ राज्य है। धान का कटोरा कहा जाने वाला यह राज्य सिर्फ उत्पादन की दृष्टिï से ही इस संज्ञा का हकदार नहीं है, बल्कि यहां धान की ऐसी-ऐसी किस्मों की खेती होती रही है, जो दुनिया में और कहीं नहीं पाई जाती। इस विविधता पर हमेशा से छत्तीसगढ़ पर दुनिया की नजर रही है। कुछ साल पहले देशबन्धु ने ही विदेशी कंपनियों को धान की कुछ खास प्रजातियों का जर्म प्लाज्म बेचे जाने का मामला उजागर किया था और तब से सरंक्षण उपायों पर खास तौर से गौर किया जा रहा है। एक अच्छी खबर यह है कि राज्य में पैदा होने वाली खेकसी अब दक्षिण कोरिया जाएगी। वहां इसके औषधीय गुणों पर अनुसंधान होगा और मधुमेह के उपचार की दवा तैयार करने में इसका इस्तेमाल हो सकता है। खेकसी की बाजार में काफी मांग है पर इसके उत्पादन को प्रोत्साहित करने की कोई योजना तैयार नहीं हो पाई। कृषि विज्ञान केन्द्र अंबिकापुर के वैज्ञानिकों ने इस पर अच्छा काम किया है। उनके काम को आगे बढ़ाकर खेकसी के उत्पादन के प्रयासों को बढ़ावा दिया जा सकता है। कभी हमारे वनों से भी खेकसी की अच्छी पैदावार मिलती थी। इसके संरक्षण तथा विकास पर ध्यान नहीं देने के कारण आज उत्पादन काफी घट गया है। हम अपने वन क्षेत्रों का महत्व अब तक इमारती लकड़ी और पर्यावरण संरक्षण से ही जोड़कर देखते आ रहे हैं जबकि हमारे वनक्षेत्र आर्थिक विकास के अन्यान्य साधन बन सकते हैं। आंबला, चिरौंजी, करोंदा, हर्रा-बहेड़ा तथा औषधीय उपयोग में आने वाले अन्य वन उत्पादों में आई कमी से पता चलता है कि वनों के संरक्षण और विकास की हमारी योजना अधूरी है। वनों के विकास की नई नीति बनाने की आवश्यकता है ताकि हमारे वन हमारी आर्थिक समृद्घि का बेहतर साधन बन सकें। हमारे वनों में प्राकृतिक रुप से उगने वाले मशरुम को भी हम नहीं बचा पा रहे हैं। ग्रामीण आबादी के लिए  ये प्रोटीन के प्रमुख स्त्रोत थे और बारिश के दिनों में बाजार में ये बहुतायत में मिला करते थे।  हमारे वैज्ञानिकों को नष्टï होती जा रही मशरुम की इन प्रजातियों को बचाने पर भी काम करना चाहिए। संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम के तहत औषधीय पौधों की खेती का काम भी बहुत आगे नहीं बढ़ सका। वनों के प्रबन्धन तथा विकास को इस रुप में लेना होगा, जिससे वन क्षेत्रों का अधिक से अधिक उपयोग हो सके। वनों की सुरक्षा भी इसी में है कि लोगों को जीने के अधिकाधिक साधन मिले। वन विकास की नीति में इस सूत्र को पिरोना होगा।

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