जम्मू-कश्मीर में बाढ़ का पानी उतर रहा है, लेकिन अपने पीछे कई परेशानियां छोड़े जा रहा है। बाढग़्रस्त इलाकों से लगभग पौने दो लाख लोगों को सुरक्षित निकाल लिया गया है, लेकिन हजारों अब भी फंसे हैं। मृतकों की संख्या 250 बतलाई जा रही है, लेकिन ऐसी आपदाओं में हताहतों की सही संख्या पता लगाना कठिन होता है। राज्य में चारों ओर पानी ही पानी है, कीचड़ है, मलबा है, लेकिन पेयजल की भारी किल्लत है। जलजनित बीमारियों का खतरा बढ़ गया है और अब प्राथमिकता इस बात की है कि राज्य में कोई महामारी न पनप पाए। यह संतोष की बात है कि राज्य सरकार के साथ एक सर्वदलीय बैठक में सभी राजनीतिक दलों ने सहयोग करने और मिलकर इस मुसीबत से निकलने का भरोसा दिलाया। अन्यथा विधानसभा चुनावों का इंतजार कर रहे प्रदेश में मुसीबतों का राजनीतिकरण करना नयी बात नहींहै। प्रदेश राजनीति के खेल से बच गया, किंतु केन्द्र सरकार अपने राजनीतिक आग्रहों को परे नहींरख सकी। विगत वर्ष जब उत्तराखंड त्रासदी हुई थी, तब बचाव अभियान की बहुत सी खबरों के बीच एक खबर यह भी आई थी कि गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कैसे यहां फंसे गुजरातियों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया। जाहिर है उनकी छवि थोड़ी और मजबूत होकर जनता के सामने आयी। अब भी जम्मू-कश्मीर में उन्होंने तुरंत दौरा किया, राहत कार्यों का जायजा लिया, पड़ोसी देश पाकिस्तान को मदद का प्रस्ताव भेजा और अब अपने जन्मदिन के पहले जनता से अपील की है कि उनका जन्मदिन न मनाएं बल्कि अपना समय और संसाधन जम्मू-कश्मीर के लोगों की मदद में लगाएं। किसी भी संवेदनशील नेता से यही अपेक्षा रहती है। लेकिन इन सबके बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उस संस्थान पर अपेक्षित ध्यान नहींदिया, जो आकस्मिक आपदाओं के वक्त राहत, बचाव व समन्वय करने के उद्द्ेश्य से ही गठित किया गया है। 2004 में आयी सुनामी के बाद राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) का गठन किया गया, जिसके प्रारंभिक दायित्व हैं किसी भी आपदा के वक्त राहत व बचाव कार्य में लगी विभिन्न संस्थाओं के साथ सरकार का तालमेल बिठाना, चिकित्सा कार्यों में मदद के साथ-साथ सूचनाओं का एकत्रीकरण करना, मृतकों, गुमशुदा लोगों के आंकड़े जुटाना, और बीमारियों की जानकारी देना। इस संस्थान की उपयोगिता व कार्यों का महत्व देश ने उत्तराखंड की बाढ़ व आोडिशा के फेलिन तूफान के वक्त समझा और जाना। अपनी कुछेक खामियों के बावजूद एनडीएमए की उपयोगिता बनी हुई है। लेकिन इस वक्त यह संस्थान लगभग निष्क्रिय है। जम्मू-कश्मीर के सैलाब में सेना के जवानों ने चिरपरिचित कौशल का परिचय दिया और नौसेना के बेड़ों व वायुसेना के जहाजों व हेलीकाप्टरों की मदद से लाखों जाने बचायीं। आम जनता, स्वयंसेवी संस्थाओं यहां तक कि रिपोर्टिंग के लिए गए पत्रकार भी अपनी क्षमता के मुताबिक जितनी मदद वहां कर सके, उन्होंने की। लेकिन एनडीएमए की अनुपस्थिति सबको खली। यूं नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स (एनडीआरएफ) ने अन्य एजेंसियों के साथ तालमेल बिठाते हुए जम्मू-कश्मीर में काफी काम किया, लेकिन एनडीएमए जिस विशेषज्ञता के साथ काम करता है, उसकी कमी एनडीआरएफ में महसूस की गई है। जम्मू-कश्मीर से एनडीएमए की गैरहाजिरी का प्रमुख कारण इसके उपाध्यक्ष शशिधर रेड्डी समेत 5 सदस्यों का जून में दिया गया इस्तीफा है। बताया जा रहा है कि ये सभी यूपीए सरकार द्वारा नियुक्त किए गए थे, लिहाजा नयी सरकार के आते ही सबको इस्तीफा देने का संंकेत मिल गया। इसके बाद से अब तक इसमें नये सदस्यों की नियुक्ति नहींहुई, न ही उपाध्यक्ष किसी को बनाया गया। एनडीएमए की अध्यक्षता प्रधानमंत्री ही करते हैं। बिना नेतृत्व के यह संस्था निष्क्रिय हो गई है। पूर्व उपाध्यक्ष श्री रेड्डी ने प्रधानमंत्री से इसके पुनर्गठन का आग्रह भी किया, ताकि उसका संचालन प्रारंभ हो, किंतु वह भी व्यर्थ गया और जब देश को एनडीएमए की जरूरत पड़ी तो वह दृश्य में कहींनहींथा।