• कर्ज लेकर घी पीने वालों पर सख्ती

    कर्ज लेकर घी पीने वाले किस किस्म के लोग होते हैं, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उद्योगपति विजय माल्या हैं। वे विमानन, शराब जैसे उद्योगों के अलावा क्रिकेट में नए उद्योग आईपीएल टीम के भी मालिक हैं, इस लिहाज से बड़े उद्योगपति हैं। बैंक भी उन्हें इसी नजरिए से देखते हैं, इसलिए करोड़ों का कर्ज उन्हें उपलब्ध कराया। विजय माल्या ने इसे चुकाना जरूरी नहीं समझा, उनके स्वामित्व वाली किंगफिशर एयरलाइंस बंद हो गई, ...

    कर्ज लेकर घी पीने वाले किस किस्म के लोग होते हैं, इसका प्रत्यक्ष उदाहरण उद्योगपति विजय माल्या हैं। वे विमानन, शराब जैसे उद्योगों के अलावा क्रिकेट में नए उद्योग आईपीएल टीम के भी मालिक हैं, इस लिहाज से बड़े उद्योगपति हैं। बैंक भी उन्हें इसी नजरिए से देखते हैं, इसलिए करोड़ों का कर्ज उन्हें उपलब्ध कराया। विजय माल्या ने इसे चुकाना जरूरी नहीं समझा, उनके स्वामित्व वाली किंगफिशर एयरलाइंस बंद हो गई, हजारों कर्मचारी सड़क पर आ गए, उन्हें बकाया वेतन नहींमिला और भविष्य में रोजी-रोटी का संकट भी उत्पन्न हो गया। बैंक का धन डूबा सो अलग, लेकिन इसके बावजूद विजय माल्या के ठाठ-बाट में कोई कमी आई हो, ऐसा नहींहै। वे पूर्ववत लिव लाइफ किंग साइज़ यानी राजा की तरह जीवन जीने की शैली अपनाए हुए हैं। करोड़ों रुपए उनकी आईपीएल टीम में लगे हैं, शराब उद्योग से उन्हें कमाई होती है, उनके पास ऐतिहासिक वस्तुओं जैसे टीपू सुल्तान की तलवार खरीदने के लिए धन रहता है, लेकिन बैंक से लिया कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी से वे मुकरते रहते हैं। यही कारण है कि यूनाइटेड बैंक आफ इंडिया (यूबीआई) ने पिछले दिनों उन्हें विलफुल डिफाल्टर अर्थात जानबूझकर कर्ज न चुकाने वाला घोषित किया। विजय माल्या को यूबीआई का यह कदम रास नहींआ रहा है और यूनाइटेड बेवरेज लि.की 15वींसालाना आम बैठक में उन्होंने कहा कि बैंक द्वारा लगाए गए इस ठप्पे को चुनौती देने के लिए वे सभी कानूनी उपायों का सहारा लेंगे। उनका यह वक्तव्य भले अपने शेयरधारकों को भरोसा दिलाने के लिए हो, लेकिन इससे यह संकेत भी मिलता है कि विलफुल डिफाल्टर घोषित करने के बावजूद विजय माल्या से कर्ज की राशि वसूलना आसान नहींहोगा। सार्वजनिक धन के कर्ज से अपने महल खड़े करने वाले वे अकेले उद्योगपति नहींहैं, बल्कि इस जमात में कई बड़े उद्योगपति शामिल हैं। यह अजीब विडंबना है कि कुछ हजार का कर्ज पाने के लिए लघु उद्योगों के मालिकों को एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ता है, किसान तमाम योजनाओं के बावजूद कर्ज के जाल में फंसते हैं और न चुका पाने की स्थिति में आत्महत्या करने को मजबूर होते हैं, और दूसरी ओर करोड़ों का कर्ज लेने वाले इस फिराक में रहते हैं कि कैसे उसे वापिस ही न किया जाए। यही कारण है कि भारतीय बैंकों द्वारा दिए गए कर्ज में पांच प्रतिशत ऐसे कर्ज हैं, जिनकी वापसी की कोई उम्मीद ही नहींहै, अर्थात उसे डूबी राशि माना जाए और पांच फीसदी कर्ज स्ट्रेस लोन की श्रेणी में आते हैं, अर्थात जिन्हें वसूलने के लिए ब्याज दर घटाने या अदायगी की समय सीमा बढ़ाने जैसे तरीके अपनाने पड़ते हैं। जिस राशि को बैंक डूबा हुआ कहते हैं, दरअसल वह ऐसे उद्योगपतियों, व्यापारियों के घर में तैर रही होती है, जो उसे वापस करने की नीयत ही नहींरखते हैं। इसका सीधा असर बैंकों के कारोबार पर पड़ता है। ध्यान रहे कि चार-पांच साल पहले आई वैश्विक मंदी का बड़ा कारण कुछ अमरीकी बैंकों का दिवालिया हो जाना ही था। गनीमत है कि भारत इससे बचा रहा और अब रिजर्व बैंक व सेबी ने विलफुल डिफाल्टर का दायरा बढ़ाकर भावी सुरक्षा के कुछ और इंतजाम किए हैं। रिजर्व बैंक ने कहा है कि अगर किसी कंपनी के कर्ज के लिए समूह की अन्य कंपनियों ने गारंटी दी है, और कंपनी दिवालिया हो जाती है तो दिवालिएपन के दायरे में समूह की फल-फूल रही गारंटर कंपनियों को भी लाया जा सकता है। बैंकों से यह भी कहा गया है कि वे कर्ज वसूली के अन्य उपाय आजमाने से पहले प्रमोटरों द्वारा दी गई निजी गारंटी का इस्तेमाल करें। रिजर्व बैंक के इस निर्देश के एक दिन बाद ही गुजरात हाई कोर्ट ने इससे ही जुड़े मास्टर सर्कुलर के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई है। गुजरात हाईकोर्ट की दलील है कि कंपनी के नॉमिनी, इंडिपेंडेंट डायरेक्टर को विलफुल डिफॉल्टर कहना गलत है। जो लोग रोजमर्रा के काम में शामिल नहीं है, उनको विलफुल डिफॉल्टर कहना गलत होगा। इस तरह की और भी दलीलें भविष्य में सामने आ सकती हैं, जिससे बैंकों द्वारा  सख्ती बरतना थोड़ा कठिन होगा। लेकिन फिलहाल यह गनीमत है कि सार्वजनिक बैंकों में जमा आम लोगों के धन की सुरक्षा में रिजर्व बैंक और सेबी प्रयासरत हैं। थोड़ी सख्ती बैंकों के उन उच्च अधिकारियों और राजनेताओं पर भी करना चाहिए, जिनकी मिलीभगत से कार्पोरेट घराने कर्ज की मोटी राशि हासिल करते हैं और तरह-तरह की आड़ लेकर उन्हें चुकाने से बचते रहते हैं।

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