• मूर्ति विसर्जन स्थलों की उपेक्षा

    धार्मिक उत्सवों में आस्थावान लोगों की भीड़ देख सबसे अधिक खुशी आयोजकों को होती है। अभी दस दिनों के गणेशोत्सव की धूम मची हुई और कुछ दिनों बाद दुर्गोत्सव की तैयारियों में आयोजक जुट जाएंगे। ये उत्सव मूर्ति विसर्जन के साथ संपन्न होंगे। इन उत्सवों के दौरान अव्यवस्था के चलते होने वाली अप्रिय घटनाएं लोगों को आहत करने वाली होती हैं।...

    धार्मिक उत्सवों में आस्थावान लोगों की भीड़ देख सबसे अधिक खुशी आयोजकों को होती है। अभी दस दिनों के गणेशोत्सव की धूम मची हुई और कुछ दिनों बाद दुर्गोत्सव की तैयारियों में आयोजक जुट जाएंगे। ये उत्सव मूर्ति विसर्जन के साथ संपन्न होंगे। इन उत्सवों के दौरान अव्यवस्था के चलते होने वाली अप्रिय घटनाएं लोगों को आहत करने वाली होती हैं। इसकी चिंता न तो आयोजक करते हैं और न ही प्रशासन इस मामले में अपनी भूमिका के प्रति गंभीर दिखाई देता है। विशेषकर मूर्ति विसर्जन स्थलों पर होने वाली दुर्घटनाएं रोकने  तथा मूर्तियों के विसर्जन के लिए समुचित व्यवस्था करने के प्रति उदासीनता जगजाहिर है। हालत यह हो गई कि जिन स्थलों पर मूर्तियां विसर्जित की जाती रही हैं, वहां पिछले वर्षों में विसर्जित की गई मूर्तियों के अवशेष पड़े हुए हैं। हालत यह है कि ये स्थल बेहद उथले हो चुके हैं। इन्हीं हालातों में आयोजकों को मूर्तियों के विसर्जन के लिए दूसरे स्थलों की तलाश करनी पड़ रही है। बिलासपुर में उत्सवों के दौरान रखी जाने वाली मूर्तियों का विसर्जन अरपा नदी में होता आ रहा है। विसर्जन स्थल पर पिछले वर्षों से विसर्जित मूर्तियां और उनके अवशेषों से विसर्जन स्थल आज भी अटा पड़ा है। इस स्थल की सफाई पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। इनमें प्लास्टर आफ पेरिस की मूर्तियां भी हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद इस वर्ष सिर्फ मिट्टïी की मूर्तियां स्थापित करने की ही अनुमति दी गई है। विसर्जन के बाद ऐसी मूर्तियों के कुछ अवशेष ही रह जाएंगे। विसर्जन स्थलों से मूर्तियों के अवशेषों को नहीं हटाने से हर जगह एक से हालात हैं। मूर्तियों को गहरे पानी में विसर्जित करने के लिए उत्साही आयोजक खतरे की परवाह नहीं करते और कई बार दुर्घटनाएं हो जाती हैं। उत्सव तो होते रहेंगे, इसलिए जरुरी है कि मूर्ति विसर्जन स्थलों के बारे में भी सोचा जाए। इन स्थलों की साफ-सफाई तथा सुरक्षा-व्यवस्था भी उतनी ही आवश्यक है, जितनी आवश्यक पूरे उत्सव के दौरान व्यवस्था बनाए रखने के लिए प्रशासन की सक्रियता। यदि इन स्थलों की सफाई नियमित रुप से पहली बरसात के साथ हो तो यह अधिक उपयोगी हो सकती है। कुछ अवशेष यदि बचे रह जाते हैं तो बारिश के दिनों की पानी की तेज धारा में बह जाएंगे और विसर्जन स्थल को पहले की तरह साफ-सुथरा रखा जा सकेगा। यहां प्रश्न सिर्फ व्यवस्था का ही नहीं है बल्कि लोगों की आस्था का भी है। आयोजक मूर्तियों को विसर्जित करने के बाद यह देखने की भी कोशिश नहीं करते कि उन मूर्तियों का क्या हुआ। इन मूर्तियों के अवशेष यत्र-तत्र बिखर जाते हैं और लोगों की आस्था को उनसे ठेस पहुंचती है। आयोजकों को भी चाहिए कि वे प्रशासन से मिलकर मूर्तियों के विसर्जन की ऐसा व्यवस्था बनाएं, जो पर्यावरण के अनुकूल हो और लोगों की आस्था को भी ठेस न पहुंचे।

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