• भाजपा के लिए चुनौती भरे दिन

    नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना भाजपा का बेहद सफल दांव साबित हुआ, जिसके कारण भारी बहुमत से सत्ता पर वह काबिज हो पायी। लेकिन हर दांव इसी तरह सफल हो और हर कदम राह को आसान बनाएगी, ऐसा नहींहै। राजनीति के सफर में कई तरह के अंधे मोड़ आते हैं, इसलिए कई बार दिग्गजों के आकलन और अनुमान भी गलत साबित हो जाते हैं।...

    नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित करना भाजपा का बेहद सफल दांव साबित हुआ, जिसके कारण भारी बहुमत से सत्ता पर वह काबिज हो पायी। लेकिन हर दांव इसी तरह सफल हो और हर कदम राह को आसान बनाएगी, ऐसा नहींहै। राजनीति के सफर में कई तरह के अंधे मोड़ आते हैं, इसलिए कई बार दिग्गजों के आकलन और अनुमान भी गलत साबित हो जाते हैं। लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी का उदाहरण सामने है। राम मंदिर मुद्दे को देशव्यापी प्रचार दिलाने और इसके लिए रथयात्रा निकालने वाले लालकृष्ण आडवानी के कारण ही भाजपा लोकसभा की दो सीटों से केेंद्र की सत्ता तक पहुंची थी। गुजरात दंगों के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी को पद से हटाना चाहते थे, लेकिन श्री आडवानी ने ही श्री मोदी का बचाव किया और उन्हें हिंदुत्व की राजनीति के अपने एजेंडे को आगे ले जाने का मौका दिया। अब स्थिति ये है कि लालकृष्ण आडवानी को बड़ी चतुराई से यह बता दिया गया है कि उनके अच्छे दिन अब बीत गए हैं। उनके साथ-साथ मुरली मनोहर जोशी को भी यही समझाया गया है। एक वक्त भाजपा की त्रिमूर्ति रहे अटल बिहारी बाजपेयी, लालकृष्ण आडवानी और मुरली मनोहर जोशी को भाजपा संसदीय दल में स्थान नहींदिया गया है, बल्कि उन्हें एक मार्गदर्शक मंडल में रखा गया है, जिसके अन्य दो सदस्य नरेन्द्र मोदी और राजनाथ सिंह हैं। श्री बाजपेयी स्वास्थ्य कारणों से एक दशक से सक्र्रिय राजनीति में नहींहैं, उनकी समन्वयवादी राजनीति और उदार चेहरे के कारण भाजपा के पोस्टरों में वे दिखते रहे। लालकृष्ण आडवानी हिंदुत्व का चेहरा थे और मुरली मनोहर जोशी बौद्धिक नेतृत्व देते थे, लेकिन अब हिंदुत्व की ब्रांडिंग करने वाले बहुत से नए चेहरे हैं, जिसमें सबसे लोकप्रिय चेहरा तो नरेन्द्र मोदी का ही है और अब अपवादस्वरूप एकाध दल को छोड़ दें तो बौद्धिकता की जरूरत किसी राजनीतिक दल को नहींहै। ऐसे में श्री आडवानी और श्री जोशी किसका मार्गदर्शन करेंगे और उनकी बातों को कौन तवज्जो देगा। स्पष्ट है भाजपा में एक बड़ा सांगठनिक बदलाव हुआ है और पार्टी पर संघ की छाप अधिक उभर कर दिखने लगी है। राजनीति में यह बदलाव आश्चर्यजनक बिल्कुल नहींहै। स्वयं अटलबिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवानी ने एक समय में बलराज मधोक को किनारे कर पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत बनाई थी। भाजपा में यही इतिहास दोहराया गया है। चूंकि हिंदुस्तान में भावनाएं व्यावहारिकता पर अक्सर हावी हो जाती हैं, इसलिए इस प्रकरण का विश्लेषण भी भावुकता के साथ किया जा रहा है। कोई इसे आडवानी, जोशी को वानप्रस्थ में भेजना बतला रहा है, तो कोई ओल्ड एज होम में घर के बुजुर्गों को भेजना ठहरा रहा है। हकीकत यह है कि संगठन में उनका क्या स्थान रहेगा, इसके संकेत लंबे समय से इन बुजुर्गवारों को दिए जा रहे थे। लेकिन सत्ता के मोह में इन्होंने उन संकेतों को अनदेखा किया और आज नतीजा सबके सामने है। इन दोनों दिग्गज नेताओं का राजनीतिक जीवन ढलान पर पहुंचा दिया गया है, लेकिन भाजपा पर इस बदलाव का क्या असर होगा और युवा चेहरों पर जो जिम्मेदारी दी गई है, उसमें जनता उनका कितना साथ देती है, यह देखने वाली बात होगी। इस बदलाव के बाद अब एक नयी चुनौती भाजपा के सामने पेश हुई है एनडीए के साथियों को जोड़े रखने की। आम चुनावों के पहले भाजपा में नए-नए दल उसी भांति आकर मिले, जैसे छोटी-छोटी नदियां बड़ी नदी से मिल जाती हैं। लेकिन जैसे-जैसे समय बीतेगा, इन दलों की अपनी महत्वाकांक्षाएं भाजपा के निर्देशों से तालमेल कैसे बिठाएंगी, यह देखना रोचक होगा। ताजा प्रकरण हरियाणा में तीन साल पुराने साथी हरियाणा जनहित कांग्रेस (हजकां) का एनडीए से अलग होना है। शीघ्र ही हरियाणा में विधानसभा चुनाव होने हैं, इसके ठीक पहले हजकां सुप्रीमो कुलदीप बिश्नोई ने भाजपा से रिश्ते तोडऩे का ऐलान यह कहते हुए किया कि वह धोखेबाज पार्टी है। बताया जा रहा है कि श्री बिश्नोई 90 में से 45 सीटें भाजपा से चाह रहे थे साथ ही गठबंधन का मुख्यमंत्री उम्मीदवाह भी वे स्वयं को घोषित करवाना चाहते थे। लेकिन भाजपा ने ये दोनों मांगे नहींमानी। लिहाजा हजकां ने भाजपा से नाता तोड़ लिया। इस टूटन का क्या असर चुनाव पर पड़ेगा, फिलहाल कहना जल्दबाजी होगी। लेकिन इस घटना के बाद शिवसेना भी भाजपा से अपने संबंधों पर पुनर्विचार कर रही है, ऐसी खबरें हैं। एनडीए के कुनबे को बनाए रखने और बढ़ाने में भाजपा की नयी टीम कितनी सफल होती है, यह देखना रोचक होगा।

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