• जेड श्रेणी की सुरक्षा में संगीत सोम

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले से दिए गए अपने संबोधन में सांप्रदायिकता और हिंसा के विषय पर कहा था कि खून से धरती लाल ही होगी। इस कथन के जरिए उन्होंने शायद भारत की जनता को इस बात का यकीन दिलाना चाहा हो कि भाजपा केवल विकास की राजनीति करना चाहती है और केद्र सरकार की प्राथमिकता-सबका साथ, सबका विकास ही रहेगी। ...

    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लालकिले से दिए गए अपने संबोधन में सांप्रदायिकता और हिंसा के विषय पर कहा था कि खून से धरती लाल ही होगी। इस कथन के जरिए उन्होंने शायद भारत की जनता को इस बात का यकीन दिलाना चाहा हो कि भाजपा केवल विकास की राजनीति करना चाहती है और केद्र सरकार की प्राथमिकता-सबका साथ, सबका विकास ही रहेगी। चुनावी रैलियों में भी उनका प्रमुख स्वर विकास पर ही सबसे ज्यादा गुंजायमान होता था और कुछ इस अंदाज में कि यूपीए के दस सालों में कुछ भी विकास नहींहुआ और कांग्रेस व उसकी सहयोगी पार्टियां अगर धर्मनिरपेक्षता की बात करती हैं तो यह दरअसल सांप्रदायिकता पर बात करना ही है। बड़े ही राजनीतिक कौशल से धर्मनिरपेक्षता बनाम विकास का मुद्दा भाजपा ने खड़ा किया और उसमें सफलता हासिल की। माहौल ऐसा बन गया कि अगर आप भारत की बहुविध संस्कृति, सामाजिक सौहाद्र्र और धर्मनिरपेक्षता की बात करते हैं तो आप विकास विरोधी श्रेणी में खड़े होते हैं क्योंकि विकास इन सब बातों से बहुत ऊपर की चीज है और भारत जैसे देश को इस वक्त केवल विकास की ही आवश्यकता है। अब जैसे-जैसे केेंद्र सरकार के दिन बीत रहे हैं, यह एहसास हो रहा है कि विकास की गति जहां की तहां है, और कुछ अनावश्यक मुद्दों पर चर्चा में देश का वक्त जाया हो रहा है। उदाहरण के लिए पिछले कुछ दिनों में भारत के हिंदू राष्ट्र होने न होने, हिंदुत्व की व्याख्या, हिंदुस्तान की परिभाषा आदि तमाम विषयों पर बयान आए और चर्चाएं हुईं। पाठ्यक्रम में बच्चों को इतिहास कैसे पढ़ाया जाना चाहिए और कैसे अधिक संस्कारित किया जा सकता है, इस पर बातें हुईं। धर्मसंसद हुई, जिसके मंच से आस्था का केेंद्र कौन हो और कौन नहीं, यह समझाया गया। लव जेहाद का नया जुमला प्रेमप्रसंगों के संबंध में सामने आया। रोजमर्रा की कठिनाइयों में जीते आम भारतीय को एक बार फिर चौंकना पड़ा, जब यह मालूम हुआ कि मुजफ्फरनगर दंगों के आरोपी भाजपा विधायक संगीत सोम को केंद्र सरकार ने जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के सरधना से विधायक सोम को कट्टरपंथी तत्वों से खतरा होने की खुफिया जानकारी के आधार पर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने उन्हें केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के कमांडो के घेरे में लाने का फैसला किया। ज्ञात हो कि संगीत सोम को पहले से वाय श्रेणी की सुरक्षा मिली हुई थी, जिसे अब बढ़ा दिया गया है। केेंद्र सरकार के पास इस फैसले के पक्ष में अनेक तर्क होंगे, लेकिन विपक्ष का यह कहना बिलकुल सही है कि यह दंगा पीडि़तों के साथ क्रूर मजाक है। मुजफ्फरनगर दंगों में किस तरह बेकसूरों को अपने घर-द्वार से बेदखल होकर राहत शिविरों में कड़कड़ाती ठंड में रहना पड़ा, यह देश ने देखा है। उनके साथ पहला मजाक राज्य की समाजवादी पार्टी ने किया था, सैफई महोत्सव मनाकर और लाखों रुपए पानी की तरह उसमें बहाकर। लगभग सभी वर्गों से समवेत स्वर में राज्य सरकार के इस कृत्य की आलोचना हुई थी। दंगा पीडि़त अपने जख्मों पर लगे नमक को हटाते रहे। अब केेंद्र सरकार ने उन जख्मों को फिर कुरेदा है। गौरतलब है कि सोम पर एक विवादित और भड़काऊ वीडियो अपलोड करने और प्रसारित करने के आरोप के बाद पुलिस ने मामला दर्ज किया था। पुलिस का कहना है कि इस वीडियो के बाद ही पिछले साल सितंबर में मुजफ्फरनगर में दंगे भड़के और 65 लोग मारे गए। दंगों के बाद हजारों परिवार बेघर हो गए थे। ये परिवार अभी तक अपने घरों की ओर नहीं लौट पाए हैं। दंगों के आरोपी को सुरक्षा देने से समाज में नफरत फैलाने वाले लोग प्रोत्साहित होंगे और अल्पसंख्यकों में असुरक्षा तथा अलगाव की भावना घर करेगी। लेकिन भाजपा को उस असुरक्षा की भावना की अधिक परवाह नहींहै। वे अपने एक समर्पित कार्यकर्ता और विधायक को सर्वोच्च सुरक्षा कवच देना चाहती है और इसके लिए उसका तर्क है कि कांग्रेस के कई नेताओं को भी सुरक्षा प्रदान की गई है क्योंकि जो लोग वाकई खतरे में हैं, उनकी सुरक्षा सरकार की जिम्मेदारी है। सवाल कांग्रेस या भाजपा के नेताओं की सुरक्षा से अधिक इस बात का होना चाहिए कि देश का आम आदमी चाहे वह किसी भी धर्म, जाति या संप्रदाय का हो, कितना सुरक्षित है। हाल के महीनों में अमित शाह के बाद संगीत सोम दूसरे ऐसे भाजपा नेता हैं जिन्हें जेड सुरक्षा दी गई है। मौजूदा प्रोटोकॉल के अनुसार जेड श्रेणी की सुरक्षा में एक समय में 14 कमांडो तैनात रहते हैं। यूपीए के शासनकाल में जब उद्योगपति मुकेश अंबानी को जेड श्रेणी की सुरक्षा प्रदान की गई थी, तब भी यह सवाल उठा था कि जो व्यक्ति इतना सक्षम है कि अपनी सुरक्षा के लिए सेना तैनात कर ले, उसे केेंद्र सरकार से मदद क्यों मिलनी चाहिए। यह सवाल अब भी उठाया जाना चाहिए कि दंगों के किसी आरोपी को यदि केेंद्र सरकार अपनी ओर से सर्वोच्च सुरक्षा मुहैया कराने लगे, तो पीडि़त किससे न्याय और राहत की उम्मीद रखेंगे? क्या अच्छे दिन इसी तरह आएंगे?

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