• कांग्रेस की मुश्किलें

    लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की फजीहत की क्या वजह थी? शायद यही कि पार्टी नेता एक होकर चुनाव नहीं लड़ सके। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां चुनाव के शुरुआती दिनों में कांग्रेस को बढ़त मिलने की संभावना दिखाई दे रही थी, मतदान की तारीख आते-आते सब कुछ बदल गया। अब भी कांग्रेस नेताओं ने कोई सबक नहीं लिया है ...

    लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की फजीहत की क्या वजह थी? शायद यही कि पार्टी नेता एक होकर चुनाव नहीं लड़ सके। छत्तीसगढ़ जैसे राज्य में जहां चुनाव के शुरुआती दिनों में कांग्रेस को बढ़त मिलने की संभावना दिखाई दे रही थी, मतदान की तारीख आते-आते सब कुछ बदल गया। अब भी कांग्रेस नेताओं ने कोई सबक नहीं लिया है और पार्टी कार्यकर्ताओं को यह सार्वजनिक संदेश देने से नहीं चूक रहे हैं कि वे आपस में किस तरह बंटे हुए हैं। नि:संदेह पार्टी में अजीत जोगी एक बड़ी ताकत हैं, लेकिन अक्सर यह दिखाने की कोशिश की जाती है कि उन्हें किनारे कर दिया गया है। लोकसभा चुनावों के समय भी यह दिखाई दिया, लेकिन टिकट के बंटवारे में उनके समर्थकों को पूरा महत्व मिला और जब लगने लगा था कि कांग्रेस अब जोगी के बिना ही चलेगी तब अचानक पासा पलट गया। एक बार फिर जोगी खेमा प्रदेश नेतृत्व से नाराज चल रहा है और संगठन में महत्व नहीं मिलने की शिकायत पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी तक पहुंचाई गई है। प्रदेश में अंतागढ़ विधानसभा सीट पर उपचुनाव होने जा रहा है। कांग्रेस ने मंतूराय को अपना प्रत्याशी बनाया है। अजीत जोगी उनके नाम पर सहमत नहीं थे और उन्होंने कह दिया कि वे मंतूराय को चुनाव लडऩे से मना कर चुके थे। ऐसे में क्या कोई यह उम्मीद कर सकता है कि अंतागढ़ का उपचुनाव कांग्रेस जीत भी सकती है? वैसे भी उपचुनाव सत्ताधारी दल का चुनाव होता है और पार्टी की जगह सरकार चुनाव लड़ा करती है। कोई खास कारण न ही तो विपक्ष के लिए उपचुनाव जीतने की संभावना काफी कम होती है। देश के चार राज्यों में हुए विधानसभा के उपचुनाव परिणामों में भी यह देखा जा सकता है। कांग्रेस के लिए अंतागढ़ उपचुनाव का विशेष महत्व भले न हो पर उसकी भविष्य की राजनीति की तैयारी का तो इससे पता चलता ही है। पार्टी की राजनीति में विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष टी.एस.सिंहदेव की स्वीकार्यता बढ़ रही है। प्रदेशाध्यक्ष भूपेश बघेल के साथ उनकी अच्छी केमेस्ट्री हैं। पार्टी को फिर से खड़ा करने और पार्टी के फैसलों पर नेताओं में असंतोष को दूर करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है। पार्टी जब तक एक होकर अपने अभियान को आगे नहीं बढ़ाएगी तब तक वह व्यापक जनाधार तैयार करने में सफल नहीं हो सकती। लगातार तीन चुनावों से सत्ता से बाहर होकर भी कांग्रेस के नेता यह समझने की कोशिश नहीं कर पा रहे हैं। ऐसा लगता है कि प्रदेश में पार्टी को भारतीय क्रिकेट टीम की तरह ही प्रदर्शन सुधारने के लिए किसी योग्य और प्रभावशाली डायरेक्टर की जरुरत पड़ गई है

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