भारत-पाकिस्तान रिश्ते इस वक्त जिस तनावपूर्ण स्थिति से गुजर रहे हैं, वह चिंताजनक है। सीमा पार से संघर्षविराम का केवल उल्लंघन नहींहै, बल्कि इस कदर गोलीबारी हो रही है कि आम नागरिक भी उसका शिकार हो रहे हैं। भारतीय सीमा पर बसे सैकड़ों लोगों को सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया जा रहा है। कालारूस के जंगल में आतंकियों से हुई मुठभेड़ में भारतीय सेना के दो जवान शहीद हो गए और केरन सेक्टर में हुई मुठभेड़ में भी एक जवान शहीद हो गया। जबकि भारतीय जवानों ने पांच आतंकियों को मार गिराया। इस इलाके से भारी मात्रा में गोला-बारूद बरामद हुआ है और आशंका है कि सघन जंगल में कुछ आतंकी छिपे हो सकते हैं। पिछले दिनों एक सुरंग भी भारतीय सेना को मिली है, जिससे यह संदेह उपजता है कि सीमापार से घुसपैठ में इसका इस्तेमाल किया जाता हो। यह तमाम घटनाक्रम बेहद चिंतनीय है और नाराजगी उपजाने वाला है। ऐसा पहली बार नहींहै कि पाकिस्तान की ओर से संघर्ष विराम का उल्लंघन किया गया हो या नियंत्रण रेखा से घुसपैठ की कोशिशें की गई हों। विगत छह दशकों में कई बार ऐसा हुआ और हालात इस कदर बिगड़े कि युद्ध की नौबत आ गई। भारत-पाकिस्तान के बीच चार बार लड़ाई हो चुकी है। फिर भी दोनों देशों के बीच पसरी समस्याओं का कोई हल नहींनिकला। बार-बार की लड़ाइयों, मुठभेड़ों और हिंसक तनाव का परिणाम यह हुआ कि हर साल रक्षा बजट में बढ़ोत्तरी दोनों देशों की मजबूरी बन गई। शिक्षा, स्वास्थ्य, गरीबों का जीवन स्तर सुधारने के लिए आवश्यक संसाधनों पर जितना खर्च होना चाहिए, उससे अधिक ध्यान दोनों देशों की सरकारों का इस बात पर रहा कि अत्याधुनिक सामरिक हथियारों से कौन कितना अधिक लैस हो सकता है। भारत ने रूस, इजरायल, फ्रांस जैसे देशों से हथियार और तकनीकें खरीदींतो पाकिस्तान की मदद के लिए चीन, अमरीका आगे आए। इस मदद के बदले पाकिस्तान की राजनीति और सत्ता पर अमरीका का कैसा दबाव रहा, यह सर्वविदित है। भारत पर भी सीधे-सीधे तो कोई दबाव नहींहै, लेकिन जब आर्थिक, सामरिक मदद लेनी पड़ती है तो कई तरह के परोक्ष-अपरोक्ष समझौते करने ही पड़ते हैं। दो पक्षों के युद्ध में फायदा हमेशा तीसरे का होता है, भारत-पाकिस्तान के संबंध में भी यह बात खरी उतरती है। फिर भी इस वक्त जिस तरह भारत को युद्ध करने के लिए उकसाया जा रहा है, उसमें यह सोचने वाली बात है कि यह किसके फायदे में होगा। यूं पाकिस्तान लंबे समय से सीमा पर अवांछित हरकतें कर रहा है, लेकिन जब से 25 अगस्त को विदेश सचिवों की प्रस्तावित वार्ता भारत ने रद्द की, तब से उस ओर से आक्रामकता और बढ़ गई है। ज्ञात हो कि वार्ता से पहले पाकिस्तान के उच्चायुक्त ने कश्मीर के अलगाववादियों को आमंत्रित कर उनसे चर्चा की, इससे नाराज भारत ने इस वार्ता को रद्द कर दिया। हालांकि पाकिस्तान का तर्क है कि सभी पक्षों के साथ संवाद कश्मीर मुद्दे के हल की पाकिस्तान की कोशिशों का अहम हिस्सा है। भारत द्वारा वार्ता को रोके जाने को पाकिस्तान सही नहींमानता। जाहिर है पाकिस्तान हठधर्मिता दिखा रहा है और अपनी गलत बात को सही साबित करने पर अड़ा है। भारत की सख्ती उसे रास नहींआ रही। सीमा पर उसकी ओर से गोलीबारी के जवाब में भारत जो कार्रवाई कर रहा है, उस पर भी वह आपत्ति जतला रहा है। कुल मिलाकर द्विपक्षीय संबंधों की डोर बहुत तन चुकी है और जरा सी चूक इसे एक बार फिर तोड़ सकती है। भाजपानीत केंद्र सरकार पर इस वक्त काफी दबाव पड़ रहा है कि वह पाकिस्तान को ईंट का जवाब पत्थर से दे। शिवसेना ने तो अपने मुखपत्र में सीधे-सीधे युद्ध की सलाह दे दी है। पाकिस्तान के कृत्य पर भारत की नाराजगी स्वाभाविक है, लेकिन हम फिर यह कहना चाहेंगे कि युद्ध किसी समस्या का हल नहींहै। भारत और पाकिस्तान दोनों के लिए वार्ता की राह ही उचित है। अगर एक बार युद्ध छिड़ गया तो किस सीमा पर जाकर रुकेगा और दोनों ही पक्ष इसमें क्या-क्या खोएंगे, इसका अंदाज ही डरावना है। पाकिस्तान में इस वक्त सरकार पर दोहरा संकट है, एक ओर प्रधानमंत्री नवाज शरीफ से इस्तीफे की मांग पर अड़ी तहरीके इंसाफ और पाकिस्तान अवामी तहरीक पार्टियों के कार्यकर्ता सड़कों पर उतर आए हैं, दूसरी ओर सेना और आईएसआई की भारत विरोधी हरकतों से भारत के साथ भावी संबंध कायम रखने की चुनौती पेश हो गई है। नवाज शरीफ किस राजनीतिक कौशल से इन संकटों का सामना करते हैं, यह देखने वाली बात है। फिलहाल चुनौती भारत के सामने भी है कि वह अपनी शांति की नीति को बनाए रखते हुए पाकिस्तान को उसकी सीमाएं समझा दे।