• 'मतदाताओं के पास नकारात्मक मतदान का अधिकार'

    सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र में मतदाताओं के पास इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और मतपत्रों पर इनमें से कोई नहीं (एनओटीए) विकल्प के जरिए सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के नकारात्मक मतदान का अधिकार होना जरूरी है। ...

    नई दिल्ली !   सर्वोच्च न्यायालय ने शुक्रवार को एक ऐतिहासिक फैसले में कहा कि एक जीवंत लोकतंत्र में मतदाताओं के पास इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (ईवीएम) और मतपत्रों पर इनमें से कोई नहीं (एनओटीए) विकल्प के जरिए सभी उम्मीदवारों को खारिज करने के नकारात्मक मतदान का अधिकार होना जरूरी है। सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी. सतशिवम और न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई और न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की पीठ ने कहा, "एक जीवंत लोकतंत्र में मतदाताओं के पास इनमें से कोई नहीं का विकल्प चुनने का अवसर होना चाहिए। इससे राजनीतिक दलों को स्वस्थ प्रत्याशी चुनने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। यह स्थिति स्पष्ट रूप से हमें नकारात्मक मतदान की नितांत जरूरत को दर्शाता है।"अदालत ने अपने फैसले में कहा, "हम इस नजरिए से सहमत हैं कि नकारात्मक मतदान के अधिकार का प्रावधान किए जाने से राजनीतिक प्रक्रिया में स्वच्छता आएगी और यह खास तौर से बड़े पैमाने पर लोगों की भागीदारी के उद्देश्य को भी पूरा करेगा।"फैसला सुनाते हुए न्यायमूर्ति सतशिवम ने कहा कि नकारात्मक मतदान की प्रक्रिया आवश्यक है और यह लोकतंत्र का जीवंत हिस्सा है। न्यायालय ने निर्वाचन आयोग को ईवीएम मशीन में एनओटीए के लिए अतिरिक्त बटन और मतपत्र में इस विकल्प का प्रावधान करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने इसके साथ ही सरकार से निर्वाचन आयोग को एनओटीए विकल्प पेश करने में हर तरह की मदद देने का भी निर्देश दिया।पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (पीयूसीएल) ने 2004 में सर्वोच्च न्यायालय में अपील दायर कर कहा था कि जो मतदाता ईवीएम में सूचीबद्ध किसी को वोट नहीं देना चाहते, उन्हें नकारात्मक मतदान का अधिकार होना चाहिए। पीयूसीएल ने ईवीएम में एनओटीए का विकल्प देने तथा मतदाताओं द्वारा चुने गए विकल्प को गुप्त रखने का निर्वाचन आयोग को निर्देश देने की न्यायालय से मांग की थी।मतदाताओं के इनमें से कोई नहीं का अधिकार और गोपनीयता को बरकरार रखते हुए अदालत ने व्यवस्था दी कि चुनाव संचालन नियमावलि का 41(2) व (3) और 49-ओ भारतीय जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 128 और संविधान के अनुच्छेद 19(1)(अ) के विपरीत है। दोनों नियम मतदान की गोपनीयता का उल्लंघन करते हैं। यह उल्लेख करते हुए कि चुनाव आयोग भी ईवीएम और मतपत्रों पर इनमें से कोई नहीं विकल्प शामिल करने के पक्ष में है इसलिए अदालत इसे मतपत्रों/ईवीएम में इसे अनिवार्य प्रावधान करने का निर्देश देती है ताकि मतदाता इस विकल्प का प्रयोग कर सकें।अदालत ने चुनाव आयोग को यह प्रावधान चरणबद्ध रूप से या सरकार की सहायता से लागू करने के लिए कहा। अदालत ने आयोग से इनमें से कोई नहीं विकल्प के बारे में मतदाताओं को जागरूक बनाने के लिए कार्यक्रम भी आयोजित करने के लिए कहा।

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