• 'मधुबाला ने मात्र एक रूपया लेकर फिल्म का अनुबंध किया था'

    आपको शायद पता न हो कि हिन्दी फिल्मों के शोमैन राजकपूर की चर्चित फिल्म आवारा में उनके दादाजी यानी पृथ्वीराज कपूर के पिता ने भी अभिनय किया था। ...

    नई दिल्ली !     आपको शायद पता न हो कि हिन्दी फिल्मों के शोमैन राजकपूर की चर्चित फिल्म आवारा में उनके दादाजी यानी पृथ्वीराज कपूर के पिता ने भी अभिनय किया था। उनका नाम बसेसरनाथ था और वह जज बने थे तथा मधुबाला ने एक फिल्म में काम करने के लिए केवल एक रूपए में अनुबंध किया था। महान निर्देशक बिमल राय ने अपनी प्रसिध्द फिल्म 'दो बीघा जमीन' का नाम गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर की एक कविता पर रखा था और मदर इंडिया के मशहूर निर्देशक महबूब खान जब मुंबई फिल्मों में काम के लिए पहुंचे तो बिना टिकट लिए ही ट्रेन से गए थे। गुरूदत्त की मशहूर फिल्म 'प्यासा' पहले मधुबाला और नर्गिस को लेकर बनने वाली थी, पर वे दोनों तय नहीं कर पाई कि वे कौन सी भूमिका निभायेंगी और बाद में उसकी जगह माला सिन्हा और वहीदा रहमान ने निभायीं। ऐसी अनेक दुर्लभ जानकारियां हिन्दी सिनेमा के सौ साल पर प्रकाशित पुस्तक 'हाऊस फुल' में दी गई है जिसका लोकार्पण 30 अक्टूबर को प्रसिध्द फिल्म निर्देशक गुलजार, महेश भट्ट और अनुराग कश्यप करेंगे। इस पुस्तक का संपादन मशहूर फिल्म पत्रकार जिया उल सलाम ने किया है जो अंग्रेजी दैनिक 'द हिन्दू' के फीचर संपादक भी हैं। इस पुस्तक की भूमिका महेश भट्ट ने लिखी है और उपसंहार जयाप्रदा ने लिखा है। पुस्तक में हिन्दी सिनेमा के स्वर्णयुग के बारे में स्व. विमल राय. गुरूदत्त, महबूब खान, व्ही.शांताराम के अलावा नवकेतन प्रोडक्शन, शक्ति सामंत, बी आर चोपडा, यश चोपडा के अलावा आजादी के बाद बनी 50 सर्वाधिक हिट फिल्मों के बारे में आलेख दिए गए हैं। इनमें 1951 में बनी फिल्म बैजू बावरा, से लेकर 1969 में बनी खामोशी शामिल है। पुस्तक की भूमिका में श्री महेश भट्ट ने लिखा है कि हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण युग महबूब खान, विमल राय, के आसिफ, गुरूदत्त, राजकपूर और चेतन आनंद ने बनाया था। उन्होंने लिखा है कि पुस्तक में संपादक जिया ने विमल राय की मशहूर फिल्म (सुजाता) के लेखक सुबोध घोष के बारे में जानकारी दी है कि श्री घोष ने न केवल महात्मा गांधी के साथ काम किया था बल्कि वह बस के कंडक्टर के अलावा सर्कस में जोकर और नगर निगम में सफाई कर्मचरी का भी काम कर चुके थे और यही कारण है कि वह जाति व्यवस्था पर प्रहार करनेवाली ऐसी फिल्म की कहानी लिख सके थे। पुस्तक में (गाइड) फिल्म के बारे में लिखा गया है कि इस फिल्म में विवाहेत्तर प्रेम संबंधों पर गंभीर आपत्ति व्यक्त की गई थी और इसे मंत्रिमंडल के सामने प्रदर्शन किया गया था, पर प्रधानमंत्री को छोड़कर शेष सभी मंत्रियों ने यह फिल्म देखी थी, लेकिन फिल्म के आलोचकों ने भी सूचना प्रसारण मंत्रालय से अनुरोध किया कि इस फिल्म को (ए) सर्टिफिकेट नहीं दिया जाना चाहिए। इस फिल्म की अभिनेत्री वहीदा रहमान ने धमकी भी दी थी कि अगर राज खोसला इस फिल्म को निर्देशित करेंगे तो वह इस फिल्म से हट जाएंगी। पुस्तक के अनुसार शक्ति सामंत का चयन भरतीय वायुसेना में हो गया था पर उनकी मां ने सेना में नौकरी करने से मना कर दिया और जब शक्ति सामंत ने 1957 में हावडा ब्रिज फिल्म बनाई तो मधुबाला को 1001 रूपए की पेशकश की गई थी लेकिन फिल्म के अनुबंध के लिए मधुबाला ने केवल एक रूपया लिया और कहा कि वह शेष राशि फिल्म बन जाने के बाद लेंगी। इससे पता चलता है कि हिन्दी सिनेमा का स्वर्ण युग उस जमाने के कलाकारों की निष्ठा-लगन और ऊंचे आदर्शों के कारण संभव हुआ।ू

अपनी राय दें