• दंतेवाड़ा में 21 करोड़ का राजमहल और जनता बेहाल

    दंतेवाड़ा ! नक्सल प्रभावित और आदिवासी बहुल दंतेवाड़ा जिले में प्रशासन और आम आदमी के बीच बढ़ती दूरी हमेशा चिंता का विषय रही है। प्रशासन नक्सल समस्या के चलते सुदूर अंदरूनी इलाकों में अपनी पहुंच नहीं दिखा पाता। ...

    दंतेवाड़ा में 21 करोड़ का राजमहल और जनता बेहाल

    कलेक्टोरेट में तैयार हो रहा महंगा कम्पोजिट बिल्डिंग 12 करोड़ की योजना चार साल में 21 करोड़ की हुई गुजरात की कंपनी तैयार कर रही नई बिल्डिंग 18 बरस पहले एक कमरे में शुरू हुआ जिला दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा !   नक्सल प्रभावित और आदिवासी बहुल दंतेवाड़ा जिले में प्रशासन और आम आदमी के बीच बढ़ती दूरी हमेशा चिंता का विषय रही है। प्रशासन नक्सल समस्या के चलते सुदूर अंदरूनी इलाकों में अपनी पहुंच नहीं दिखा पाता। इन इलाकों में ग्रामीण पुलिस को ही प्रशासन का महत्वपूर्ण हिस्सा मानते हैं। प्रशासन दफ्तरों में रहकर आम आदमी की समस्या सुलझाए ऐसी कोशिश भी होती है, लेकिन इसमें भी कामयाबी हासिल नहीं हो रही है। गरीब दंतेवाड़ा में अफसरों के लिए 12 करोड़ का कम्पोजिट बिल्डिंग बनना शुरू हुआ, जो अभी तक अपूर्ण है। इसकी लागत बढ़ चुकी है और 9 करोड़ और मांग राज्य सरकार से हो रही है। दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा तीनों मिलाकर बनता है दक्षिण बस्तर। 25 मई 1998 को बस्तर से अलग होकर दक्षिण बस्तर दंतेवाड़ा नया जिला बना। इस दौरान कलेक्टोरेट की शुरूआत वर्तमान परियोजना कार्यालय में हुई, जहां कलेक्टर का चेम्बर बना और पहले कलेक्टर के रूप में महिपाल सिंह धुर्वे ने जिले की कमान संभाली थी। यही पर लोक निर्माण विभाग, आदिम जाति कल्याण, रोजगार दफ्तर और अन्य जिला स्तरीय दफ्तर शुरू हुए। पीएचई, कृषि, उद्यान, पशु चिकित्सा, सहित कई विभागों के दफ्तर पहले से ही यहां मौजूद थे। 1 नवंबर 2000 को जब नया छत्तीसगढ़ राज्य बना तो संयुक्त जिला कार्यालय के लिए पहल हुई और आंवराभाटा में कलेक्टोरेट की आधारशिला रखी गई, नया कार्यालय बनकर तैयार हुआ,ज जहां वर्तमान में कलेक्टर कार्यालय, सहित तकरीबन सभी जिला स्तरीय दफ्तर संचालित हो रहे हैं। रोजगार दफ्तर को अभी सुविधा के हिसाब से लाइवलीहूड कॉलेज में संचालित किया जा रहा है। अनुविभागीय का दफ्तर जिला कार्यालय परिसर में चल रहा है। जिला पंचायत, ग्रामीण यांत्रिकी सेवा, महिला एवं बाल विकास विभाग, निर्वाचन कार्यालय भी इसी परिसर में है। पीडब्ल्यूडी दफ्तर अभी भी पुराने कलेक्टोरेट के अपने मूल भवन में संचालित हो रहा है। सिंचाई विभाग का दफ्तर भी यहीं से संचालित हो रहा है। इसके बावजूद जिला प्रशासन के लिए एक और नया कम्पोजिट बिल्डिंग तैयार किया जा रहा है। अक्टूबर 2014 में इसका टेण्डर हुआ था। 12 करोड़ की यह योजना शुरू हुई। करीब 4 साल बाद भी यह अधूरा है। इसकी लागत में बढ़ोत्तरी होने के बाद 21 करोड़ का पुनरीक्षित प्राक्कलन तैयार कर और भेजा गया है। गुजरात से आयी श्रीजीकृपा निर्माण कंपनी इस बिल्डिंग को तैयार कर रही है। यह किसी राजमहल से कम नहीं है। यह तीन मंजिला है। तकनीकी भाषा में कहे तो जी प्लस टू प्लस बेसमेंट इसमें शामिल है। पार्किंग के लिए भी इसमें जगह है। लोक निर्माण विभाग के अफसरों की माने तो और राशि की मांग की गई है। 22 प्रतिशत एबव्ह में यह काम गया था। लोक सुराज अभियान के दौरान अपै्रल में लोक निर्माण मंत्री राजेश मूणत जब दंतेवाड़ा आए थे, तो अगस्त तक इसे पूर्ण करने का निर्देश उन्होंने दिया था, लेकिन बजट के  अभाव में काम थोड़ा प्रभावित हुआ। वैसे निर्माण की रफ्तार को देखते हुए ऐसा माना जा सकता है कि इस भवन को पूर्ण होने में अभी और वक्त लगेगा। जनता की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहे महंगे दफ्तर दक्षिण बस्तर में दफ्तर और अफसर आम आदमी के लिए सर्वसुलभ नहीं रह पाए। भाषायी दिक्कत के कारण भी प्रशासन का जनता से सीधा संवाद नहीं बन पाया है। प्रशासन और जनता के बीच दूरी कम करने की कोशिश के बदले गरीब जिले में महंगा भवन तैयार करना कहा तक जायज है, यह तो सरकार जाने, लेकिन जन समस्या को सुलझाने में गंभीरता दिखती तो ऐसे दफ्तरों की अहमियत भी बढ़ती। वैसे नक्सल प्रभावित दंतेवाड़ा, बीजापुर और सुकमा जिले में महंगे दफ्तर बनाने की परम्परा सी चल पड़ी है। हर अफसर अथवा प्रशासनिक प्रमुख अपने कार्यो से ज्यादा दफ्तरों की साज सज्जा पर ज्यादा ध्यान देते हैं। सुकमा का कलेक्टोरेट जिस आलीशान ढंग से बना है, उसकी चर्चा पूरे प्रदेश में होती है। बीजापुर का भी यही हाल है। वैसे तीनों जिलों में राजभवन जैसा दफ्तर बनाने की प्रतिस्पर्धा जैसी स्थिति है। भले ही इन महंगे दफ्तरों और उसमें बैठने वाले अफसरों से आम जनता अपनी समस्याओं का समाधान पाये या न पाए, इससे सरकार को कहां फर्क पड़ता है।


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