मुंबई ! विगत दस वर्षो में आवासीय विद्यालयों में 740 जनजातीय छात्रों की मौत के मामले का संज्ञान लेते हुए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने मंगलवार को इस मुद्दे पर महाराष्ट्र सरकार से स्पष्टीकरण मांगा। गत 7 अक्टूबर को पालघर जिले में बुखार और कुपोषण के कारण एक 12 वर्षीय किशोरी की मौत के बाद यह मुद्दा सामने आया।
बाद में कुपोषण से संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं को लेकर 10 छात्रों को अस्पताल में भर्ती कराया गया जिनमें अधिकांश जनजातीय गरीब परिवार के थे।
स्कूलों में स्वास्थ्य सेवाओं और मूलभूत सुविधाओं के अभाव का उल्लेख करते हुए एनएचआरसी ने कहा कि नियमों के मुताबिक साल में कम से कम दो बार विद्यार्थियों के स्वास्थ्य की जांच होनी चाहिए, लेकिन सरकारी एजेंसियां इसका अनुसरण नहीं करती हैं।
एनएचआरसी ने राज्य के मुख्य सचिव को भेजे नोटिस में कहा, "स्कूल अधिकारी छात्रों के कानूनी अभिभावक के रूप में उनके कल्याण, सुरक्षा और स्वास्थ्य संबंधी जरूरतों के लिए जिम्मेदार हैं। जनजाजातीय विकास विभाग और स्कूल अधिकारियों की लापरवाही छात्रों के जीवन, मर्यादा और समानता के अधिकार का उल्लंघन है।"
महाराष्ट्र में जनजातीय विकास विभाग द्वारा संचालित 552 आवासीय स्कूल जनजातीय विद्यार्थियों के लिए हैं।
इन स्कूलों में अनेक पद खाली पड़े हैं और आवंटित बजटीय राशि का इस्तेमाल नहीं हो रहा है। इसका परिणाम है कि डेंगू, मलेरिया, विषाक्त भोजन, डूबने और सर्प दंश के कारण अनेक छात्रों की मौत हुई है और पूर्व में आत्महत्या की भी घटनाएं हुईं हैं।