• आखिर आदिवासी छात्रा को कब मिलेगा न्याय

    सहसपुर लोहारा। एक आदिवासी छात्रा पिछले 4 माह से जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए कार्यालयों की खाक छान रही है जिसे पिछले दिनों देशबन्धु ने प्रमुखता से उठाया था। आज भी उसकी समस्या का निराकरण करने वाले हाथ दिखाई नहीं दे रहे। ...

    आखिर आदिवासी छात्रा को कब मिलेगा न्याय

     

    आखिर आदिवासी छात्रा को कब मिलेगा न्याय

    सहसपुर लोहारा। एक आदिवासी छात्रा पिछले 4 माह से जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिए कार्यालयों की खाक छान रही है जिसे पिछले दिनों देशबन्धु ने प्रमुखता से उठाया था। आज भी उसकी समस्या का निराकरण करने वाले हाथ दिखाई नहीं दे रहे। जिसे पढ़ाई के प्रति खासी उत्साहित और उत्सुक किरण मरकाम अब आगे पढ़ाई करेगी इसमें प्रश्नचिन्ह लग गया है।

    ज्ञात हो कि चन्दन सिंह मरकाम के पिता उमेन्द्र सिंह कि मृत्यु बहुत पहले हो चुकी है। जमीन सब चन्दर सिंह के दादा हीरा सिंह मरकाम के नाम पर था इसलिये राजस्व रिकार्ड में चंदन सिंह के पिता का नाम लापरवाही से नहीं आ सका। जब मिसल रिकार्ड निकलवाया जाता है। तो चन्दन सिंह के पिता का नाम उसमें नहीं आ रहा है।

    यानि गलती राजस्व विभाग करे और उसका परिणाम एक गरीब किसान आदिवासी परिवार को भोगनी पड़ रही है। चंदन सिंह कहते हैं कि पिछले चार-पांच माह से सिर्फ जाति प्रमाण पत्र बनवाने के लिये वो सहसपुर लोहारा तहसील और कवर्धा अनुविभागीय कार्यालय के दसों चक्कर लगा चुके हंै। उन्हें न तो ठीक से जवाब मिल पा रहा है न ही इस समस्या का निराकरण कैसे होगा उसे ठीक से बताया जा रहा है।

    चंदन सिंह आगे कहते हैं कि हमारे पिता का नाम आधारकार्ड राशनकार्ड, मतदाता फोटो पहचान पत्र जैसे सरकारी दस्तावेजों में है। मेरी चार संतान है जिसमें दो लड़कियों की शादी हो चुकी है। लड़का को मैं गरीबी की वजह से पढ़ा नहीं पा रहा हूं मेरी छोटी लड़की जो पढ़ाई में होशियार है और उम्मीद है कि वह अच्छे से पढ़ कर अपना और हमारा भविष्य सुधारेगी पर जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पाने के कारण अब शायद ही मैं उसे पढ़ा पाऊ क्योंकि पढ़ाई का जब कोई लाभ ही नहीं मिल पा रहा है तो फिर पढ़ाई का क्या लाभ? 


    किरण को कक्षा बारहवीं तक शासन द्वारा समस्त सुविधा प्राप्त होती रही जो आदिवासियों को दी जाती है पर शासकीय महाविद्यालय सहसपुर लोहारा में अब उससे स्थायी जाति प्रमाण पत्र मांगा जा रहा है जिससे उसे छात्रवृत्ति तथा अन्य सुविधा प्रदान की जा सके जो आदिवासी वर्ग को मिलता है पर उसका स्थायी प्रमाण नहीं बन पाने से उसे कोई सुविधाएं नहीं प्राप्त हो रही है।

    हालांकि तहसील कार्यालय से 18 जुलाई को उसका अस्थायी जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया जिसके आधार पर उसे प्रवेश दिया गया। रोज अपने गांव छिरबांधा से पांच से छ: किलोमीटर साईकिल चला कर कॉलेज पहुंचने वाली किरण मरकाम से बात करने पर एक बात तो स्पष्ट हो जाती है कि वह खूब पढ़ कर अपने परिवार का सहारा बनना चाहती है साथ ही यह चाहती है कि उसकी वजह से उसके  पिता को गर्व महसूस हो। 

    किरण बताती हैं कि वह शिक्षा के महत्व को समझती है। उसकी दो बहनें और एक भाई गरीबी की वजह से नहीं पढ़ पाए। मैं अपने खानदान की सबसे ज्यादा पढ़ाई करने वाली संतान हूं। आज आदिवासियों के लिये कई योजनाएं चल रही हंै जिससे इस वर्ग का विकास हो सके। एक आदिवासी छात्रा को चार-पांच माह से केवल एक जाति प्रमाण पत्र बनाने के लिए भटकना पड़ रहा हो तो फिर बाकी योजनाओं का हाल आप समझ सकते हैं।

    किरण आगे कहती हैं कि मुझे महाविद्यालय से कोई भी सुविधा जो एक आदिवासी छात्रा को मिलनी चाहिये वो नहीं मिल रही है। मेरे पिता की चाहत है कि मैं खूब पढ़ाई करूं पर उनकी स्थिति ऐसी भी नहीं है कि वह पढ़ाई का खर्च उठा सकें। अगर मेरा जाति प्रमाण पत्र नहीं बन पाया तो मेरे सामने पढ़ाई छोड़ने के सिवाय और कोई चारा नहीं बचेगा। क्योंकि अगर मैं जैसे-तैसे पढ़ाई कर भी लूं तो कल अगर सरकारी नौकरी के लिये आवेदन दूंगी तो वहां भी मुझसे जाति प्रमाण पत्र मांगा जाएगा तो मेरी पढ़ाई करने का कोई महत्व ही नहीं रह जायेगा।

    अधिवक्ता एवं सामाजिक कार्यकर्ता कैलाश दुबे ने इस पूरे प्रकरण पर बताया कि प्रशासन पटवारी को गांव भेज कर इस प्रकरण पर पंचनामा बनवाकर भी उसकी जाति प्रमाण पत्र बना सकती है। ग्राम पंचायत के प्रस्ताव के आधार पर भी जाति प्रमाण पत्र बनाया जा सकता है। मान लो चंदन सिंह के पिता का नाम मिसल रिकार्ड से गायब है तो ये गलती राजस्व अमला कि हो शासकीय अमला एक होनहार आदिवासी छात्रा के भविष्य को ध्यान में रखते हुए उसका अतिशीघ्र जाति प्रमाण पत्र जारी करे जिससे बालिका शिक्षा के नारे को बल मिले और आदिवासी उत्थान के दावे को भी पुष्ट किया जा सके। हालांकि इस आदिवासी परिवार ने जिलाधीश कवर्धा को आवेदन देकर न्याय मांगा है और उन्हें उम्मीद है कि उनकी समस्या का निराकरण अब शायद हो ही जाये।

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