बारिश होने पर लेते हैं आंगनबाड़ी की शरण
मरम्मत पर प्रशासन का ध्यान नहीं
रायगढ़ ! रायगढ़ जिले में स्कूल चलो अभियान का नारा केवल कागजों में कैद है और इस अभियान की सच्चाई अगर देखनी है तो आप सरिया ब्लाक के ग्राम तोरा आ जाईये वहां आपको सरकारी स्कूल की बिल्डिंग को देखकर इस बात का अंदाजा हो जाएगा कि बच्चे कैसे अपना सुनहरा भविष्य गढ़ रहें है । यह बिल्डिंग सालों पहले जर्जर हो चुकी है और बाहर लिख भी दिया गया है कि कि भवन की स्थिति अत्यंत जर्जर है और कभी भी हादसा हो सकता है। इतना ही नही यह स्कूल महानदी में आने वाली बाढ़ की चपेट में हमेशा आता है और बाढ में यहां कई दिनों तक स्कूल इसलिये नही लगता चूंकि यहां का भवन पानी में भर जाता है।
कहने को तो सरकार बड़े-बड़े विज्ञापनों में लाखो रूपये खर्च करके स्कूल चलो अभियान का प्रचार प्रसार करते नजर आती है और हकीकत में इसका पालन सरकार के नुमाइंदे कितना करते है इसका जीता जागता नमूना रायगढ़ जिले के सरिया क्षेत्र में स्थित ग्राम तोरा में देखने को मिलता है जहां बीते तीन सालों से सरकारी स्कूल भवन जर्जर हो चला है और शिक्षकों ने भी इसके बाहर चेतावनी भरे शब्दों में लिख दिया है कि स्कूल भवन जर्जर है इसके बाद भी यहां अपना भविष्य गढने वाले बच्चे लगातार आते है उनके लिये न तो स्कूल पहुंचने का रास्ता ठीक से है और न ही स्कूल में पहुंचने के बाद कोई उन्हें मिल पाती है कभी पेड के नीचे तो कभी छुट्टी का मजा यहां के बच्चे लेते है। इस स्कूल में बच्चे क्या पढते है और भारत के प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति मे अलावा जिले के शिक्षा अधिकारी का नाम तक नही बता पाते पर वे अपने प्रधान पाठक तथा स्कूल का नाम जरूर बताते हैं। सरकारी अधिकारियों ने यहां आज तक झांका भी नही और इसीलिये स्थिति यह है कि पढऩे आने वाले बच्चे सडक़ से नहीं बल्कि पगडंडियों से होकर वहां पहुंचते है लेकिन पढ़ाई भी पेड़ के नीचे करते है चूंकि भवन के भीतर शिक्षक भी जाने से डरते हैं। इस पूरे मामले में जिले के जिम्मेदार जिला शिक्षा अधिकारी तो कार्यालय में बार-बार जाने से भी नही मिले पर प्रभारी शिक्षा अधिकारी ने भी चांैकाने वाले अंदाज में हमारे प्रश्न का जवाब देते हुए कहा कि ग्राम तोरा के जर्जर स्कूल की जानकारी उन्हें मीडिया के माध्यम से ही मिल रही है और जल्द ही इसकी जांच करायेंगे और वहां की शिक्षा व्यवस्था भी सुधारने की पहल होगी। बहरहाल जिले के जिम्मेदार शिक्षा अधिकारी की बात को सुनकर यह तो पता चल ही गया कि जिले में सरकारी स्कूलों की हालत बद से बदतर है और इनकी हालात सुधारने के लिये ग्रामीण इलाकों में कोई झांकने तक नही जाता और केवल कागजों में ही स्कूल चलो अभियान के सफलता के दावे किये जाते हंै।