• देश में 'मेक इन इंडिया' के साथ ही 'इनोवेशन इन इंडिया' की जरूरत : डॉ. अमित शर्मा

    नई दिल्ली । इंफोसिस साइंस फाउंडेशन के इंफोसिस पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ. अमित शर्मा ने कहा कि भारत में 'मेक इन इंडिया' के साथ ही 'इनोवेशन इन इंडिया' की जरूरत है। शर्मा को दिल्ली में शनिवार को इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। शर्मा ने कहा, "विज्ञान ऐसा क्षेत्र है जहां बहुत अधिक निवेश की जरूरत होती है। जो देश जितना इस पर खर्च करेगा, वह उतना ही आगे बढ़ेगा। हम जितना खर्च करते हैं उस हिसाब से हमारे यहां काफी अच्छी रिसर्च हो रही है। जीव विज्ञान के क्षेत्र में आजादी के बाद से ही भारत ने अपना अहम योगदान दिया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई जानेमाने वैज्ञानिक भारतीय हैं।"...

    नई दिल्ली । इंफोसिस साइंस फाउंडेशन के इंफोसिस पुरस्कार विजेता वैज्ञानिक डॉ. अमित शर्मा ने कहा कि भारत में 'मेक इन इंडिया' के साथ ही 'इनोवेशन इन इंडिया' की जरूरत है। शर्मा को दिल्ली में शनिवार को इंफोसिस पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। शर्मा ने कहा, "विज्ञान ऐसा क्षेत्र है जहां बहुत अधिक निवेश की जरूरत होती है। जो देश जितना इस पर खर्च करेगा, वह उतना ही आगे बढ़ेगा। हम जितना खर्च करते हैं उस हिसाब से हमारे यहां काफी अच्छी रिसर्च हो रही है। जीव विज्ञान के क्षेत्र में आजादी के बाद से ही भारत ने अपना अहम योगदान दिया है और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के कई जानेमाने वैज्ञानिक भारतीय हैं।" उन्होंने कहा, "लेकिन अगर हमें अपना स्तर और बढ़ाना है तो ज्यादा निवेश करना होगा। क्योंकि तथाकथित विकसित देशों जैसे अमेरिका, जापान, चीन इत्यादि अपने जीडीपी का जितना फीसदी शोध पर खर्च करते हैं वह भारत के मुकाबले 2 गुणा से 5 गुणा ज्यादा है। तो ऐसे में हमारा उनसे मुकाबला काफी मुश्किल है।" इंफोसिस साइंस फाउंडेशन पुरस्कार 2015 के विजेता वैज्ञानिक शर्मा का कहना है कि अमेरिका में अरबपति-खरबपति अपनी जायदाद विज्ञान के नाम लिख जाते हैं।


    लेकिन यह चलन हमारे यहां नहीं है। मुझे लगता है कि शोध क्षेत्र में बड़े-बड़े कारपोरेट घरानों को आगे आना चाहिए। हम जेनेरिक दवाईयों के निर्माण से लेकर, बाहर के देशों के लिए आउटसोर्सिग तक में अव्वल हैं। लेकिन हमें नई शोध और नई दवाईयों की खोज में भी आगे बढ़ना होगा। इसलिए हमें 'मेन इन इंडिया' के साथ ही 'इनोवेशन इन इंडिया' पर भी जोर देना होगा।  डॉ. शर्मा ने अमेरिका और ब्रिटेन से जीव विज्ञान के क्षेत्र में उच्च शिक्षा हासिल की है। वे ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में शोध कर चुके हैं और फिलहाल इंटरनेशनल सेंटर फॉर जेनेरिक इंजीनियरिंग एंड बायलॉजी (आईसीजीईबी), नई दिल्ली के प्रमुख है। उन्हें मलेरिया परजीवी पर किए गए शोध के लिए इन्फोसिस पुरस्कार 2015 से सम्मानित किया गया। राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी दिल्ली में शनिवार को विजेताओं को सम्मानित करेंगे। इन्फोसिस पुरस्कार की शुरुआत साल 2009 में हुई थी।  डॉ शर्मा का कहना है कि मनुष्यों में मलेरिया के कारण सबसे ज्यादा मौतें 0 से 5 साल तक के बच्चों की होती है। अंतर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण के मुताबिक भारत में मलेरिया से 50 हजार से एक लाख मौत हर साल होती है और डेढ़ से दो करोड़ लोग इससे बीमार होते हैं। अपने प्रयोगशाला में हम पिछले 15 सालों से इस बीमारी की दवा बनाने का शोध कर रहे हैं। हमने नई जेनरेशन की दवाईयों पर काम किया है जो अगले 15-20 सालों तक प्रभावी रहेंगी। इससे मलेरिया पर काबू पाने में मदद मिलेगी।  वे बताते हैं कि उनका लक्ष्य मलेरिया के खिलाफ नई-नई दवाएं विकसित करना है। क्योंकि यह परजीवी धरती पर मनुष्य के आने से पहले से है और उसकी संरचना इतनी जटिल है कि हर नई दवा के खिलाफ वह प्रतिरोध विकसित कर लेता है। इसलिए मलेरिया पर काबू पाने और उसका पूर्णत: उन्मूलन करने की जंग काफी लंबी खिंचने वाली है।  शर्मा ने कहा कि दुनिया के बहुत कम देश हैं जो इस पर पूरी तरह से काबू कर पाए हैं। हमारे स्वास्थ्य मंत्री जे.पी. नड्डा ने शुक्रवार को कहा कि अगले 10-15 सालों में हम मलेरिया पर काबू पा लेंगे। लेकिन यह आसान नहीं है। इसके लिए हमें इसके खिलाफ नई-नई दवाईयों को विकसित करते रहना होगा। इन्फोसिस साइंस फाउन्डेशन के बारे में उनका कहना है कि वे युवा वैज्ञानिकों को प्रोत्साहित करते हैं ताकि वे और भी बेहतर काम कर पाएं। यह बहुत ही अच्छा कदम है। 

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