फतेहपुर ! दो सूबों की पुलिस को दो दशक से ज्यादा समय तक नाको चना चबवाने वाला आतंक का पर्याय बने डकैत शिव कुमार उर्फ ददुआ के मरने के बाद भी उसकी तस्वीर को लेकर समर्थकों और जिला प्रशासन के बीच घमासान मचा है।
दस्यु ददुआ की आदमकद मूर्ति राजस्थान से तैयार होकर ददुआ द्वारा निर्मित कराए गए मंदिर में स्थापित करने के लिए यहां आ पहुंची गई है।
पर इस विशाल मंदिर पर मूर्ति लगाने को लेकर प्रशासन की सख्ती के कारण अभी तक मूर्ति स्थापित नहीं हो पा रही है।
इस मंदिर में दस्यु ददुआ की जीवन संगीनी रही उसकी पत्नी की भी मूर्ति लगाई जानी है।चित्रकूट जिले के रैपुरा क्षेत्र के देवकली निवासी राम प्यारे सिंह का बड़ा बेटा दस्यु शिव कुमार उर्फ ददुआ पढ़ाई लिखाई में कमजोर था और वर्ष 1983 के फरवरी माह में घर छोड़कर बागी जिंदगी का सपना लेकर जंगल में जाने के बाद उसने मुड़कर नहीं देखा।
उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बागी जिदंगी का इतिहास भी दस्यु ददुआ ने कायम किया। पूरे 24 वर्ष तक जंगल में 70 सशस्त्र साथियों के साथ बेखौफ घूमता रहा। ऐसा नहीं है कि ददुआ की बागी जिदंगी में पुलिस और उनके जानी दुश्मनों से मुठभेड़ न हुई हो पर जिदंगीभर बागी रहने के समय उसे एक बार भी चोट नहीं लगी। इसी बागी जिदंगी में दस्यु ददुआ ने अपनी पूरी समाजिक जिम्मेंदारियों को भी निभाया।
दस्यु शिव कुमार उर्फ ददुआ की शादी 17 वर्ष की अवस्था में ही कृष्णावती उर्फ बड़की से हो गई थी। इसके बाद इनसे एक बेटा वीरसिंह और दो बेटियां चिरौजी देवी और उदा देवी पैदा हुई। बागी जिदंगी में ही उसने तीनों बच्चों की शादी की लेकिन पुलिस को इसकी भनक तक नहीं लगने दी। दस्यु ददुआ का पैत्रिक घर 1983 में पुलिस ने ढहा दिया। पूरा परिवार बेघर हो गया। छोटे-छोटे बच्चों को लेकर ददुआ के पिता राम प्यारे फतेहपुर जिले में धाता क्षेत्र के घटईपुर गांव में अपने साढू के यहां रहने लगे। जीवोकोपर्जन के लिए ददुआ का छोटा भाई छोटा व्यापार करने लगा । पुलिस यहां भी समय समय पर छापे मारी करती रही । परिजनों को बेघर देखकर दस्यु ददुआ ने अपना राजनैतिक साम्राज्य कामय करने के लिए अपने छोटे भाई बाल कुमार को इलाहाबाद जिले के करछना विधान सभा क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ाया लेकिन विजय नहीं मिली । इसके बाद दस्यु ददुआ का राजनीतिक कद घटने की जगह बढ़ता ही गया। सांसद, विधायक बनाना, मनचाहे अधिकारियों की तैनाती कराना उसके हाथ में था। घनघोर जंगल में फतेहपुर, इलाहाबाद, चित्रकूट, बांदा, प्रतापगढ़, मध्य प्रदेश के सतना, रींवा, ग्वालियर, भिंड के अधिकांश राजनीतिक नेता दस्यु ददुआ से संरक्षण मांगने जाते थे। एक पूर्व मंत्री ने दस्यु ददुआ के पलतू हिरन को मांगा और उसने दे दिया।
22 जुलाई 2007 को चित्रकूट में जलमल के जंगल में एक मुठभेड़ में दस्यु सरगना शिव कुमार उर्फ ददुआ समेत चार लोग मारे गए। ददुआ के मारे जाने के 24 घंटे के अंदर ददुआ का चेला ठोकिया ने उन छह स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) के जवानों को मार कर ददुआ का बदला लिया।
दस्यु ददुआ की कहानी राबिन हुड से काफी मिलती जुलती है। धनाढ्य परिवारों से वसूली गई राशि को गरीब विधावाओं और निराश्रित बालिकाओं की शादी में दान करता था। अब जिस मंदिर में मूर्ति लगाने को लेकर घमाशान शुरू है यह 14 फरवरी 1922 के दिन दहाड़े उस मुठभेड़ का संकल्प है, जब दस्यु ददुआ अपने पूरे 70 सशस्त्र साथियों के साथ फतेहपुर जिले के धाता थाना क्षेत्र के घटईपुर और नरसिहं पुर कबरहा के गन्ने के खेतों में घिर गया था।
इलाहाबाद के तत्कालीन पुलिस कप्तान आर के तिवारी, बांदा के पुलिस कप्तान बीएस सिद्धू और फतेहपुर के पुलिस कप्तान गुरू दर्शन सिंह के नेतृत्व में पांच सौ पुलिस कर्मियों ने पूरे दो किलो मीटर का घेरा रात भर में बना लिया था।
इस घेरे की भनक दस्यु ददुआ गिरोह को नहीं लगी।
सुबह चारो तरफ वर्दीधरियों को देखकर पूरा क्षेत्र सकपका गया।
किसी ने ददुआ तक खेत को चारों तरफ से घेरे जाने की खबर पहुंचा दी।
उसी समय दस्यु ददुआ ने यह संकल्प लिया कि यदि आज मैं बचता हूं तो यहां पर हनुमान मंदिर की स्थापना जरूर होगी।
ददुआ बिना कुछ खोए बाल बाल बच गया।
पुलिस कप्तान से लेकर पुलिस महानिदेशक तक हाथ मलते रह गये।
12 जनवरी वर्ष 1996 को बांदा पुलिस ने एक बार फिर बिना फतेहपुर पुलिस को बताए धाता में दस्यु ददुआ की टोह में छापा डाला इस छापेमारी में दस्यु ददुआ का भांजा राम बल को पुलिस ने पकड़ लिया।
जैसे ही लोगों को यह बात मालुम हुई हजारों की तादात में लोग इक_ा होकर पुलिस का विरोध करने लगे और पुलिस का विरोध कर रामबल को छुड़ा लिया और दरोगा जिलेदार सिंह पर पेट्रोल डाल कर भीड़ ने जला दिया।