• स्वास्थ्य सुविधाओं के अभाव में हुई 2 मासूमों की मौत

    कोण्डागांव ! जिला व तहसील कोण्डागांव के अतिसंवेदनशील एवं पहुंचविहीन क्षेत्र में बसे ग्राम पंचायत नवागांव के आश्रित ग्राम खोडसानार में अज्ञात बीमारी से एक ही आदिवासी परिवार के 2 मासूम बच्चों की मौत सप्ताह भर में होने और वहीं 10 से अधिक परिवारों के बच्चे/किशोर व युवक बीमार पडे...

    ग्रामीण बैगाओं की शरण में देशबन्धु की खबर के बाद पहुंचा स्वास्थ्य अमला कोण्डागांव !   जिला व तहसील कोण्डागांव के अतिसंवेदनशील एवं पहुंचविहीन क्षेत्र में बसे ग्राम पंचायत नवागांव के आश्रित ग्राम खोडसानार में अज्ञात बीमारी से एक ही आदिवासी परिवार के 2 मासूम बच्चों की मौत सप्ताह भर में होने और वहीं 10 से अधिक परिवारों के बच्चे/किशोर व युवक बीमार पडे होने की खबर देशबंधु समाचार पत्र में 24 नवम्बर को प्रकाशित होने के तत्काल बाद 24 नवम्बर को ही स्वास्थ्य विभाग कोण्डागांव का स्वास्थ्य अमला ब्लॉक मेडिकल ऑफिसर डॉ.सागर कश्यप के नेतृत्व में ग्राम खोडसानार तक पहुंचा एवं यहां बीमार पडे बच्चों का स्वास्थ्य परीक्षण कर उन्हें आवश्यक दवाएं दी गयी। इसके अगले दिन 25 नवम्बर को उक्त खबर लगभग सभी समाचार पत्रों में प्रकाशित हुआ, जिसे पढकर ज्ञात हुआ कि जिला स्तरीय प्रशासनिक अधिकारीगण ग्राम खोडसानार में हुए दो आदिवासी मासुमों की मौत का ठिकरा झोलाछाप डॉक्टर पर फोडकर अपने आपको जस्टीफाई कर रहे हैं, ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि जिला मुख्यालय कोण्डागांव से 30 किमी दूर संवेदनशील क्षेत्र में बसे ग्राम मर्दापाल में शासन-प्रशासन के द्वारा इस क्षेत्र में बसे ग्रामीण जनता को स्वास्थ्य सुविधाएं देने के लिए लगभग रूपए साढे 21 लाख खर्च करके एक प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र भवन का निर्माण कराया गया है और उसमें दो आयुर्वेदिक चिकित्सकों, कुछ नर्सों एवं स्वास्थ्य कर्मचारियों को पदस्थ कर अस्पताल का संचालन किया जा रहा है, यहां तक कि इस अस्पताल में कुछ मरीजों को भर्ती करके उपचार करने की भी व्यवस्था की गयी है और इस अस्पताल से लगभग 5 किमी दूर ग्राम खोडसानार स्थित है, अडचन है तो केवल एक बडी नदी की। यहां इस बात का उल्लेख भी आवश्यक है कि 18 वर्षीय दशरथ कोर्राम ने बीमार पडने के बाद मर्दापाल में स्थित शासकीय प्रा.स्वा.केन्द्र में 14 नवम्बर को पहुंचकर अपना स्वास्थ्य परीक्षण कराया था, स्वास्थ्य परीक्षण उपरांत यहां पदस्थ स्वास्थ्य कर्मचारियों के द्वारा उसे मलेरिया हुआ है बताते हुए इंजेक्शन लगाकर मलेरिया की दवाएं दी गयी थी, लेकिन उक्त इलाज के बावजुद भी 25 नवम्बर तक दशरथ कोर्राम का बुखार नहीं उतर सका है और वह 25 नवम्बर को ग्राम के ही एक गुनिया के घर पर माता/चेचक का सेवा कराता नजर आया, यही नहीं 24 नवम्बर को यहां मेडिकल केम्प लगाने वाले स्वास्थ्य अमले की पहुंच से भी परे रहा दशरथ, जिससे साफ जाहिर होता है कि 21 वीं सदी/वर्तमान में भी अनेक ग्रामवासियों में जमीनी स्तर के महिला-पुरूष स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, मितानीनों के द्वारा स्वास्थ्य संबंधी जागरूकता नहीं लायी जा सकी है और न ही ग्रामवासी के अंधविश्वास को दूर किया जा सका है। यहां यह भी एक बडा प्रश्न है कि शासन-प्रशासन द्वारा मर्दापाल में लाखों रूपए खर्च करके प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र खुलवाने के बावजुद भी इस क्षेत्र में तथाकथित झोलाछाप डॉक्टरों की ओर ही ग्रामवासियों का रूझान क्यों कर है ? क्यों कर ग्रामवासी शासकीय अस्पताल तक नहीं पहुंच पाते या फिर नहीं जाना चाहते ? यह भी कि शासन द्वारा मर्दापाल में प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र तो खोल दिया गया है लेकिन यहां एक भी एमबीबीएस डॉक्टर की व्यवस्था नहीं की जा सकी है, यही नहीं इस अस्पताल में मरीजों को भर्ती करके उपचार किए जाने की भी व्यवस्था है लेकिन संभवत: यहां मरीजों को भर्ती करके उपचार करने की व्यवस्था का संचालन प्रारंभ नहीं हो सका है। अन्यथा जब दशरथ कोर्राम यहां उपचार हेतु आया और उसे मलेरिया होना पाया गया, तब क्यों नहीं स्वास्थ्य अमले के द्वारा उसको अस्पताल में भर्ती करके उसका उपचार नहीं किया गया ? यहां इस बात का उल्लेख भी आवश्यक है कि प्रशासन उक्त मामले को गंभीरतापूर्वक लेते हुए, बीमारी से मृत दोनों मासूम आदिवासी बच्चों का शव परीक्षण कराए जाने की बात भी कहती नजर आ रही है। अब देखना यह है कि शव परीक्षण कब तक हो पाता और उसका परिणाम क्या आता है।   कुल मिलाकर अतिसंवेदनशील और दुर्गम क्षेत्र में बसे ग्राम खोडसानार में निवासरत आदिवासी सहित अन्य जनों की मानसिकता में कब तक सुधार आ पाता है और स्वास्थ्य के प्रति ग्रामवासियों में जागरूकता लाने के लिए शासन-प्रशासन क्या सकारात्मक उपाय उठाता है।


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