• भारत के प्रत्येक नागरिक के पास निर्णय लेने का अधिकार ..हामिद अंसारी

    ग्वालियर ! उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा है कि भारत के गणतंत्र के प्रत्येक नागरिक के पास निर्णय लेने का अधिकार और कर्तव्य हैं। श्री अंसारी आज यहां आईटीएम यूनिवर्सिटी में डॉ. राम मनोहर लोहिया स्मृति प्रथम राष्ट्रीय व्याख्यान माला में लोकतंत्र और विसम्मति विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे...

    ग्वालियर  !   उप राष्ट्रपति मोहम्मद हामिद अंसारी ने कहा है कि भारत के गणतंत्र के प्रत्येक नागरिक के पास निर्णय लेने का अधिकार और कर्तव्य हैं। श्री अंसारी आज यहां आईटीएम यूनिवर्सिटी में डॉ. राम मनोहर लोहिया स्मृति प्रथम राष्ट्रीय व्याख्यान माला में लोकतंत्र और विसम्मति विषय पर अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होने डॉ. लोहिया के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि वे एक आदर्शवादी व्यक्ति थे और शुरूआती दौर में उनके कुछ आदर्श लोग थे, जैसे महात्मा गांधी ने उनके स्वपन , नेहरू ने उनकी इच्छा और सुभाष बोस ने उनके कार्य का प्रतिनिधित्व किया था। इसी आदर्शवाद ने उन्हें विश्व नेताओं के समक्ष चार सूत्रीय प्रस्ताव के लिए गांधी जी से अनुरोध करने के लिए उन्मुख किया गया। पहला एक देश द्वारा दूसरे देश में किए गए पिछले समस्त निवेशों को रदद करना, दूसरी पूरी दुनियां में किसी भी व्यक्ति का बिना रोक-टोक आवागमन और वास करने का अधिकार तीसरी विश्व और संविधान सभाओं के समस्त लोगों और राष्ट्रों की राजनैतिक स्वतंत्रता और चौथी किसी तरह की विश्व नागरिकता । श्री अंसारी ने कहा कि गांधी जी उदार हृदय के थे , परंन्तु उन्होंने इस सुझाव पर कोई कार्रवाई नहीं की। उन्होंने कहा कि लोहिया समाजवादी थे और साम्यवाद विरोधी के तौर पर जाने जाते थे। वह उन गिने चुने लोगों में से थे जिन्होंने समाजवाद की विचारधारा को यूरोप से गैर यूरोपीय सांस्कृतिक क्षेत्रों तक स्थानांन्तरित करने की कठिनाई के साथ संघर्ष किया। वह अनेक मुददों पर कांग्रेसी नेतृत्व से मतभेद थे। इसमें 1947 के विभाजन के निर्णय को स्वीकार करना भी शामिल है। उन्होंने दि गल्टी मेन ऑफ इंडियाज पार्टिशन नाम से एक विस्तृत लेख लिखा। श्री अंसारी ने कहा कि भारत के स्वतंत्रता आंदोलन तथा प्रारंभिक वर्षों की अति प्रसंशा के बावजूद 1940 के दशक के शुरूआती वर्षों के बाद नेहरू और उनकी नीतियों के संबंध में लोहिया की आलोचना प्रखर हो गई थी। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के सिद्धांतों के संबंध में उनकी स्पष्टवादिता के फलस्वरूप उन्होंने पचास के दशक में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। 1955 में उन्होंने अपने पार्टी के सहयोगियों से कहा कि बगावत के रास्ते की बजाए उन्हें जहां जरूरी हो संवैधनिक तरीके और नागरिक प्रतिरोध के संतुलित मिश्रण को चुनना चाहिए। लोहिया द्वारा किसानों से संबंधित मामलों के समर्थन ने वर्ष 1954 में एक बडा व्यावहारिक आकार धारण किया जब उत्तर प्रदेश में नहरों से किसानों को की जा रही जल पूर्ति के लिए सिंचाई दरों में वृद्धि कर दी । उन्होंने किसानों को बढी दरों का भुगतान नहीं करने के लिए उकसाया था। वह राज्य सरकार के पुरजोर आलोचक थे। राममनोहर लोहिया की राजनैतिक विरासत तथा उससे सृजित प्रवर्तन आज भी सुस्पष्ट रूप से विद्यमान हैं, और यह प्रर्वतन विगत दो से अधिक दशकों से रहा है। 1950 में भारत की जनता ने स्वयं एक संविधान का निर्माण किया था। जिसमें सभी नागरिकों के लिए अन्य बातों के साथ साथ विचार अभिव्यक्ति , आस्था ,धर्म तथा उपासना की स्वतंत्रता का वादा किया गया है। इस वादे को अनुच्छेद 19 तथा 25 द्वारा प्रत्याभूत विशिष्ट अधिकारों और उनके कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने वाले संबंद्ध ढांचे द्वारा एक मूर्त रूप प्रदान किया गया था। उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण की ओर बढती हुई आज की दुनियां में और जब अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था है, विसम्मति की अभिव्यक्ति और इसी प्रकार उसे हासिए पर डालने और उसे दबाए जाने में सिविल सोसायटी की भूमिका पर विस्तार से चर्चा होती रही है।


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