• पटौदी परिवार को हाईकोर्ट से राहत

    जबलपुर ! एडीजे कोर्ट में आठ वर्ष बाद आदेश को चुनौती दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में स्व मंसूर अली खान पटौदी की पत्नी शर्मिला टैगौर,पुत्र सैफ अली खान पटौदी,पुत्री सबा व सोहा सहित बहन साबिहा खान के खिलाफ लगाई याचिका आज खारिज का दी गई । हाईकोर्ट जस्टिस एस के गंगेले ने याचिका को खारिज करते हुए ...

    जबलपुर !   एडीजे कोर्ट में आठ वर्ष बाद आदेश को चुनौती दिये जाने के खिलाफ हाईकोर्ट में स्व मंसूर अली खान पटौदी की पत्नी शर्मिला टैगौर,पुत्र सैफ अली खान पटौदी,पुत्री सबा व सोहा सहित बहन साबिहा खान के खिलाफ लगाई याचिका आज खारिज का दी गई । हाईकोर्ट जस्टिस एस के गंगेले ने याचिका को खारिज करते हुए याचिकाकर्ता पर दस हजार रूपये की कॉस्ट भी लगाई है। एकलपीठ ने अपने आदेश में कहा है कि कॉस्ट लगाना इसलिए आवश्यक है कि जनता के बीच यह संदेश जाना आवश्यक है कि याचिकाकर्ता तथ्यों को छुपाकर न्यायालय को गुमराह व अनावेदकों को परेशान नहीं करें।  करम मोहम्मद अली की तरफ से दायर की गयी याचिका में कहा गया था कि सिविल जज वर्ग दो ने वर्ष 2006 में सुल्लतानिया रोड लालघाटी स्थित ढ़ाई एकड़ जमीन की डिग्री उनके पक्ष में जारी की थी। सिविल कोर्ट द्वारा पारित डिग्री के खिलाफ वर्ष 2014 में एडीजे कोर्ट में अनावेदकों द्वारा आवेदन प्रस्तुत किया गया। जिसे एडीजे कोर्ट ने स्वीकार करते हुए उस पर सुनवाई भी शुरू कर दी है। याचिका में कहा गया था कि आदेश को आठ वर्षो बाद चुनौती दी है,जो लिमिटेशन एक्ट का उल्लंधन है। निर्धारित समय सीमा के भीतर अनावेदकों ने आदेश को चुनौती नहीं दी थी,इसलिए उनका आवेदन सुनवाई योग्य नहीं है।  अनावेदकों की पैरवी करते हुए अधिवक्ता राजेश पंचौली ने एकलपीठ को बताया कि उक्त जमीन राजस्व रिकॉर्ड में बेगम साजिदा सुल्लतान के नाम पर दर्ज है। उक्त बेशकिमती जमीन पर उनकी बेटी साबिहा व पुत्र के परिवार का मालिकाना हक है। याचिकाकर्ता ने जब राजस्व कोर्ट में नामांतरण के लिए आवेदन किया तो उन्हें उक्त आदेश की जानकारी मिली। सिविल कोर्ट में दायर प्रकरण में उन्हें अनावेदक नहीं बनाया गया था,इसलिए उन्हें आदेश की जानकारी नहीं थी। लिमिटेशन एक्ट के इस बात का उल्लेख है कि आदेश की जानकारी मिलने पर निर्धारित समय सीमा प्रारंभ होगी। इसके अलावा याचिकाकर्ता ने सिविल कोर्ट में दायर आवेदन में इस बात का उल्लेख नहीं किया था कि वर्ष 2004 में उन्होंने एडीजे कोर्ट के समक्ष आवेदन पेश किया था।  पटौदी परिवार को अनावेदक नहीं बनाये जाने पर एडीजे कोर्ट ने उक्त आवेदन को खारिज कर दिया था। याचिकाकर्ता के द्वारा हाईकोर्ट में दायर याचिका में भी एडीजे को दायर किये गये आवेदन का उल्लेख याचिकाकर्ता ने नहीं किया है। जिसे गंभीरता से लेते हुए एकलपीठ ने दस हजार रूपये की कॉस्ट लगाते याचिका को खारिज कर दिया। 


अपनी राय दें