• विश्व हिंदी सम्मेलन : मोदी के जाते ही व्यवस्था बदरंग

    भोपाल ! विश्व हिंदी सम्मेलन का नजारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति तक जितना लुभावना था, उनके जाते ही उतना ही बदरंग हो गया। हर तरफ अव्यवस्थाओं ने पैर पसार लिए। ऐसा लग रहा था, मानो दूल्हा सहित बारात की विदाई हो गई हो। मध्यप्रदेश की राजधानी के लाल परेड मैदान यानी तात्कालिक 'माखनलाल चतुर्वेदी नगर' को 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए भव्य और आकर्षक रूप दिया गया है।...

    भोपाल !  विश्व हिंदी सम्मेलन का नजारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की उपस्थिति तक जितना लुभावना था, उनके जाते ही उतना ही बदरंग हो गया। हर तरफ अव्यवस्थाओं ने पैर पसार लिए। ऐसा लग रहा था, मानो दूल्हा सहित बारात की विदाई हो गई हो। मध्यप्रदेश की राजधानी के लाल परेड मैदान यानी तात्कालिक 'माखनलाल चतुर्वेदी नगर' को 10वें विश्व हिंदी सम्मेलन के लिए भव्य और आकर्षक रूप दिया गया है। सम्मेलन स्थल में प्रवेश करते ही यहां भी भव्यता का अहसास हो जाता है। गुरुवार की सुबह यहां की रौनक देखते ही बनती थी। ऐसे लग रहा था, मानो हर तरफ उत्साह और उमंग हो। प्रशासनिक अमले से लेकर केंद्र और राज्य सरकार के कई मंत्री, खासकर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता पूरी तरह सक्रिय थे, क्योंकि उद्घाटन करने प्रधानमंत्री मोदी आ रहे थे।  उद्घाटन की रस्म और संबोधन के बाद मोदी के जाते ही आयोजन स्थल का नजारा बदल गया। लगा, जैसे कार्यक्रम का समापन हो गया हो। कोई किसी को पूछने वाला नहीं, पीने के पानी और चाय तक के लिए देसी और विदेशी मेहमानों को तरसना पड़ा। कहने को कार्यक्रम स्थल था वातानुकूलित, मगर वहां हर कोई पसीने से तर-बतर नजर आ रहा था। जर्मनी में हिंदी पढ़ाने वाली सुशीला शर्मा व्यवस्थाओं को लेकर काफी नाराज दिखीं। वह खुद अपने कंधे पर थैला टांगे घूम रही थीं, जबकि आयोजकों का दावा था कि हर विदेशी मेहमान के साथ एक सहायक रखा गया है। सुशीला ने आईएएनएस को बताया कि आयोजन स्थल पर हाल यह है कि कोई समस्या सुनने को तैयार नहीं है। पश्चिमी तरीके का शौचालय नहीं है। चाय मिल नहीं रही है।  उन्होंने कहा कि इस आयोजन ने यह साफ कर दिया है कि हम आयोजन भी ठीक तरह से नहीं कर सकते है। वह कई सम्मेलनों में गई हैं, मगर ऐसे हालात उन्होंने कहीं नहीं देखे। उन्होंने इसकी शिकायत मीडिया की मौजूदगी में विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप से की, जिस पर उनका कहना था कि वे इसे देखेंगे।  इसके अलावा एक प्रतिनिधि ने नाम न छापने की शर्त पर कहा कि पीने के पानी के लिए ताम्रपात्र रखे गए हैं, जो अच्छी बात है, मगर उसके साथ तांबे के एक से तीन गिलास रखे हैं। लोग बगैर साफ किए पानी पिए जा रहे हैं। इससे बीमारी तक फैल सकती है। वे चाहकर भी अपनी बात नहीं कह पा रहे हैं क्योंकि सुनने वाला कोई नहीं है। प्रदेश भर से बुलाए गए विद्वानों की कोई खबर लेने वाला नहीं था। विभिन्न जिलों से बुलाए गए शिक्षक और प्राचार्य बुधवार की देर रात और गुरुवार की सुबह भोपाल पहुंचे मगर उनका न तो कहीं ठहरने का इंतजाम था और न ही खाने पीने की व्यवस्था। शिक्षक और प्राचार्य सरकारी कर्मचारी हैं, लिहाजा वे अपना दर्द चाहकर भी बयां नहीं कर पाए।  भोपाल आकर परेशान हुए शिक्षकों ने अपना नाम बताए बगैर कहा कि वे देर रात को यहां पहुंचे थे। कहीं रुकने का इंतजाम नहीं था, किसी तरह अपने स्तर पर इंतजाम कर रात काटी। सम्मेलन का उद्घाटन हो गया है अब तो वे अपने शहर, गांव को लौट रहे हैं।  यहां बता दें कि इस आयोजन में प्रदेश और राजधानी के नामचीन साहित्यकार, लेखक व कवियों को आमंत्रण नहीं दिया गया है। इस पर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरुप का कहना है कि यह आयोजन भाषा को लेकर है। यही बात विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भी कह चुकी हैं। फिर भी साहित्यकारों को आने से किसी ने रोका नहीं है।


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